अलीराजपुर,मध्य प्रदेश। समय गतिशील है अर्थात समय की धारा लगातार बहती चली जा रही है,और अगर हम दुखों के ही पन्ने पलटते रहेंगे, तो निश्चित ही वही हमारे सामने आयेगा I लेकिन अगर हम खुशी के लिए कोई एक कारण भी ढूंढ लेते हैं,जिससे हमारी खुशी बढ़ती ही चली जाती है,तो वह भी पर्याप्त है। अतः कोशिश हमारी सदा खुश रहने की ही होनी चाहिए, क्यूंकि जब हम किसी भी विषय के बारे में ज्यादा विस्तार से सोचते हैं तो ज्यादा सोचने से हमारी मानसिक स्थिति को हलचल के अलावा कुछ भी प्राप्त नही होता है. इसलिए जितनी जल्दी हम हर बात के सार को समझ कर, उसमें स्थिर हो जाते हैं, उतना ही जल्दी हमारा जीवन उतना ही सुकून से भर हो जाता है। आध्यात्मिक मूल्य मानव जीवन की सबसे बड़ी संपत्ति है, यह वह शिक्षा है जो जीवन को अधिक मूल्यवान व अर्थपूर्ण बनाती है।वैसे तो इस मानव जीवन में हर इंसान का दिल से सम्मान करना हम सभी का परम कर्तव्य है,लेकिन आज की इस कलयुगी दुनिया में सबसे बड़ी दुःख की बात है ,कि इंसान का सम्मान भी हालात और माहौल के आधार पर होता है। यही एक ऐसी दुखद स्थिति है, कि आज इंसान को इंसान से दूर गहरी खाई किए हुए है । अतः हमें यह विशेष ध्यान देना है कि आपसी प्रेम और एकता से एक दूसरे के सहयोगी बनकर सभी दूरियां समाप्त करके और आध्यात्मिक मूल्यों से अपने जीवन को श्रेष्ठ बनाना है.,तभी हम सुखमय संसार की रचना कर सकेंगे। यह विचार इंदौर से पधारे जीवन जीने की कला के प्रणेता ब्रह्माकुमार नारायण भाई ने महात्मा गांधी मार्ग पर स्थित ब्रह्माकुमारी सभागृह में नगर वासियों को जीवन जीने की कला के बारे में संबोधित करते हुए बताया । इस अवसर पर ब्रह्मा कुमारी प्रमिला बहन ने बताया कि मनुष्य जीवन में कोई भी रास्ता अपने आप नही बनता है, परन्तु हम अपने कर्मों के द्वारा अपना रास्ता खुद बनाते है,और हम जैसा रास्ता बनाते है,हमें वैसी ही मंजिल मिलती है। इसलिए अगर हम चाहते हैं कि हमें ऊंची मंज़िल मिले,तो हमें अपने कर्मों को भी उतना ही श्रेष्ठ बनाना पड़ेगा। क्योंकि दुनिया में प्रत्येक व्यक्ति अपने श्रेष्ठ कर्मों से ही योग्य बनता है,और अपनी योग्यता के अनुसार चमकता है ,इच्छा अनुसार नहीं..। अतः हमेशा अच्छाई और सच्चाई के रास्ते पर चलते रहो, कर्मों में श्रेष्ठता लाओ। देखना एक दिन हम आवश्य ही ऊंची मंज़िल पर पहुंच जायें। कार्यक्रम के अंत में सभी को मानसिक शांति हेतु राज्यों का अभ्यास कराया गया।
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