ब्रह्माकुमारी शिवानी दीदी ने अपने प्रेरणादायी उद्बोधन से सभी का दिल जीत लिया…- इण्डोर स्टेडियम में शिवानी दीदी को सुनने भारी तादाद में लोग उमड़ पड़े…
– अच्छी सोच के लिए हमारा सोचना, बोलना और करना तीनों एक हो…
रायपुर,छत्तीसगढ़ : जीवन प्रबन्धन विशेषज्ञा एवं मोटिवेशनल स्पीकर ब्रह्माकुमारी शिवानी दीदी ने कहा हमारा सोचना, बोलना और करना समान होना चाहिए तभी हमारे विचारों की तरंगें अच्छी होंगी। इसलिए सदैव अच्छा सोचें, सबके कल्याण का सोचें, सभी को दुआएं देंं। क्योंकि जो हम संकल्प करते हैं वह तरंगित होकर प्रकम्पन (वायब्रेशन) के रूप में दूसरों तक पहुंचते हैं। पुरानी बातों को क्षमा करें और भूल जाएं। उसे गांठ बांधकर न रखें।
इण्डोर स्टेडियम में शिवानी दीदी को सुनने के लिए पूर्व मंत्री एवं विधायक बृजमोहन अग्रवाल, विधायक एवं छ.ग. गृहनिर्माण मण्डल के अध्यक्ष कुलदीप जुनेजा, संसदीय सचिव विकास उपाध्याय, महिला आयोग की अध्यक्ष श्रीमती किरणमयी नायक, शदाणी दरबार के सन्त साईंयुधिष्ठिर लाल, पूर्व मंत्री चन्द्रशेखर साहू, आर्मी के ब्रिगेडियर विग्नेश सिंह, केन्द्रीय सुरक्षा बल के उप महानिरीक्षक संजय सिंह, महापौर एजाज ढेबर, नगर निगम के सभापति प्रमोद दुबे, पूर्व विधायक श्रीचन्द सुन्दरानी, छ.ग. सिंधी अकादमी के अध्यक्ष राम गिडलानी, क्षेत्रीय निदेशिका ब्रह्माकुमारी हेमलता, बीके आशा, बीके सविता सहित भारी संख्या में गणमान्य नागरिक उपस्थित रहे।
ब्रह्माकुमारी शिवानी दीदी ने अच्छी सोच बेहतर जिन्दगी विषय पर बोलते हुए कहा कि हमें अपने दिन की शुरुआत सकारात्मक विचारों के साथ राजयोग मेडिटेशन से करना चाहिए। निज स्वरूप की याद से हमारी सोच अच्छी बनेगी। उन्होंने बतलाया कि हमारी स्क्रीन को देखने की आदत बन गई है। हम सारा दिन मोबाइल और टेलीविजन की स्क्रीन को देखते हैं जिससे हमारी आंखों पर बुरा असर पड़ता है। यह भी एक तरह का नशा बन गया है जो कि हमारी आदत में शामिल हो चुका है। इसे बदलने की जरूरत है। हम अपने संस्कार को बदलकर दूसरों के लिए प्रेरणा स्रोत बन सकते हैं। इसे लीडरशिप क्वालिटी कहते हैं।
उन्होंने कहा कि हम अपना निरीक्षण करने की बजाए दूसरों को देखने लगते हैं और उनकी गलतियाँ निकालने लगते हैं। इसलिए हमें अपने ऐसे बुरे संस्कारों को बदलने की जरूरत है। संस्कार कैसे बनता है यह प्रोग्रामिंग ज्ञात होने पर संस्कार बदलना आसान हो जाएगा। उन्होंने बतलाया कि आत्मा तीन कार्य करती है। मन, बुद्घि और संस्कार इसकी तीन शक्तियाँ हैं। मन का कार्य है विचार करना। उन विचारों में से बुद्धि निर्णय करती है कि कौन सा उचित है और कौन सा अनुचित? जैसे आज बरसात होने पर सभी के मन में विचार चला होगा कि कार्यक्रम में जाएं या न जाएं? ऐसे मौसम में भी आप लोग इतनी अधिक संख्या में आए यह प्रशंसनीय है। किसी काम को बार-बार करने से वह हमारे संस्कार बन जाते हैं। हम अपनी दृढ़ इच्छा शक्ति के बल पर अपने संस्कार को भी बदल सकते हैं।
इस अवसर पर क्षेत्रीय निदेशिका ब्रह्माकुमारी हेमलता दीदी ने अपने आशीर्वचन में कहा कि जीवन का सारा खेल हमारी सोच पर आधारित है। हमारी सोच के अनुसार हमारे विचारों पर आधारित तरंगें किसी को सुकून देते हैं तो किसी को कष्ट भी पहुंचाते हैं। हमारे सोच से प्रकृति और वायुमण्डल बनता है।