रुड़की: आध्यात्मिक सशक्तिकरण पर ब्रह्माकुमारीज ने की संगोष्ठी- महिला प्रभाग की राष्ट्रीय संयोजिका बीके शारदा दीदी ने किया संबोधित

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रुड़की,उत्तराखंड: प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय के रुड़की सेवा केंद्र द्वारा दक्षिण सिविल लाइंस के नए ब्रह्माकुमारीज भवन में आध्यात्मिक सशक्तिकरण से सामाजिक परिवर्तन विषय पर संगोष्ठी का आयोजन किया गया। जिसमें समाज के विभिन्न वर्गों से जुड़े लोगों ने बड़ी संख्या भाग लिया और राजयोग की विधि सीखी। 

ब्रह्माकुमारीज महिला प्रभाग की राष्ट्रीय संयोजिका बीके शारदा दीदी ने कहा कि परिवर्तन सृष्टि का नियम है,जिस प्रकार वर्ष में 6 ऋतुएं बदलती है,उसी प्रकार हम भी अपनी सोच,संस्कार व कर्मो के माध्यम से परिवर्तित होते रहते है।यदि हमारे संस्कार अच्छे है तो हम सामाजिक परिवर्तन के द्वारा देश व समाज को अच्छा बना सकेंगे। बस जरूरत है की हम अपने अंदर श्रेष्ठ गुणों को धारण करें।उन्होंने कहा कि व्यक्ति से ही समाज बनता है और समाज से ही देश। व्यक्ति के अंदर की सोच बदलने से ही समाज बदलेगा।जिसकी पहल स्वयं से करनी होगी।

राष्ट्रीय ज्योतिष परिषद के अध्यक्ष मोदीनगर से आए डॉ चंद्रशेखर शास्त्री ने कहा कि अपनी विद्वता पूर्ण उद्बोधन में कहा कि आध्यात्मिकता हमें अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाती है।उन्होंने वेदों व श्रीमद्भागवत गीता के विभिन्न श्लोकों के माध्यम से कहा कि परमात्मा शिव ही वह परम शक्ति है,जिसे प्राप्त करने के लिए हमे राजयोग विधि से ध्यान करने व असुरता का त्याग कर देवत्व मार्ग चलने की आवश्यकता है।उन्होंने ब्रह्माकुमारीज संस्था को विश्व कल्याण व नारी सशक्तिकरण की विश्वव्यापी संस्था बताया। उन्होंने कहा कि मनुष्य अपने आध्यात्मिक गुणों को भूल गया है, उन्होंने सदाचरण करने पर बल दिया और सभी से सद्गुणी मार्ग पर चलने का आह्वान किया। 

स्वतंत्रता सेनानी उत्तराधिकारी कांग्रेस प्रकोष्ठ के प्रदेश अध्यक्ष मुरली मनोहर ने कहा कि आज उनका सौभाग्य है कि उन्हें विश्व की श्रेष्ठतम आध्यात्मिक व चरित्र निर्माण करने वाली संस्था ब्रह्माकुमारीज में आने और आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त करने का अवसर मिला है।उन्होंने कहा कि हम सब अपने आप में आत्मा रूपी एक शक्तिपुंज है और इसी शक्ति पुंज को आध्यात्मिकता से जागृत कर हमें को शांति, अहिंसा को प्राप्त करना है।‌ उन्होंने गांधी जी की विशेषताओ को भी आत्मसात करने की अपील की।उन्होंने दैवी गुणों को अपने अंदर धारण करने की भी जरूरत बताई।

राजयोगिनी ब्रह्मकुमारी गीता दीदी ने सभी अतिथियों का पुष्पगुछ देकर व राजयोगिनी शारदा दीदी ने शाल ओढ़ाकर व स्मृति सौगात देंकर अभिनन्दन किया।विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ के उपकुलपति एवं वरिष्ठ साहित्यकार श्रीगोपाल नारसन ने ब्रह्माकुमारीज महिला प्रभाग की राष्ट्रीय संयोजिका बीके शारदा दीदी का शाल ओढ़ाकर,स्मृति चिन्ह व श्रीमद्भागवत गीता शिव परमात्मा उवाच, दादी जानकी एक व्यक्तित्व व विविधताओं का शहर रुड़की विषयक पुस्तकें भेंट कर उनका सम्मान किया,साथ ही धन्यवाद उदबोधन में जीवन को आध्यात्मिकता से जोड़ने व ईश्वरीय याद में रहने के लिए नियमित राजयोग अपनाने की अपील की।

कार्यक्रम की शुरुआत दीप प्रज्वलन से हुई।‌ कुमारी खुशी ने स्वागत गीत प्रस्तुत किया। ब्रह्माकुमार सुशील भाई के कुशल संचालन में इस संगोष्ठी में ब्रह्माकुमारीज सब जोन इंचार्ज बीके मंजू दीदी,हरिद्वार सेवा केंद्र इंचार्ज बीके मीना दीदी,बीके रजनी,रुड़की एआरटीओ रॉक्सी एल्विन, पार्षद डॉ नवनीत शर्मा, डाक विभाग के एसपी रहे अरविंद कुमार, प्रतिबिंब संस्थान के निदेशक शरद पांडेय, हरिद्वार से पार्षद नितिन गर्ग ,आदि भाई बहन मौजूद रहे।

राजयोगिनी बीके शारदा दीदी ने किया सुनहरा वट वृक्ष के शहीदों को नमन!       

रुड़की-ब्रह्माकुमारीज महिला प्रभाग की राष्ट्रीय संयोजिका राजयोगिनी बीके शारदा दीदी ने रुड़की प्रवास के दौरान सन 1824 के क्रांति के अमर शहीदो की यादगार सुनहरा वटवृक्ष जाकर शहीद स्मारक पर आजादी के महानायकों को भावपूर्ण श्रद्धांजलि दी।अमर शहीद जगदीश वत्स के भांजे श्रीगोपाल नारसन व ब्रह्माकुमारीज रुड़की सेवाकेंद्र की प्रभारी बीके गीता के साथ उन्होंने सन 1857 से भी पहले की देश में सन 1824 में कुंजाबहादुरपुर रियासत के राजा विजय सिंह द्वारा अंग्रेजों के विरुद्ध की गई बगावत की गाथा सुनी और सुनहरा वटवृक्ष पर एक ही दिन में 152 राष्ट्र भक्तों के बलिदान को नमन किया।

उन्होंने सन 1846 में बनाई गई गंगनहर के उस ऐतिहासिक एक्वाडक्ट को भी निहारा जहां नदी के ऊपर से नहर बहने का इंजीनियरिंग का बेहतरीन नमूना है,साथ ही उन्होंने पुरानी गंगनहर के बंद रहने और उसमें पानी की जगह रेत बढ़ने पर अफसोस व्यक्त किया तथा कहा कि सरकार को इसे हेरिटेज के रूप में पर्यटन की दृष्टि से विकसित करना चाहिए।उन्होंने रेल इंजन के उस लोकोमोटिव मॉडल को भी देखा ,जो 22 दिसंबर 1851 को देश मे पहली बार रुड़की से पिरान कलियर रेल चलने का प्रतीक है।

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