गुरुकुल के सभी छात्रों को ब्रहमा कुमारी की ओर से रक्षाबंधन के पर्व पर रक्षा सूत्र बाँधा गया, मुख मीठा कराया गया

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पढ़ाई में अच्छी सफलता व एकाग्रता हासिल करने के लिए टिप्स,चित में इर्षा ,घृणा ,नफरत है तो परमात्मा से शांति, प्यार प्राप्त नहीं कर सकता व उसका मन एकाग्र नहीं हो सकता। दूसरे की गलती को क्षमा करने वाला अपनी  गलती को महसूस करने वाला ही एक अच्छी सफलता प्राप्त कर सकता है। ब्रहमा कुमार नारायण भाई ।

जीवन ईश्वर का दिया हुआ सुंदर  उपहार है…ब्रह्मा कुमारी आशा बहन।      

इंदौर, मध्य प्रदेश। हम सभी से जाने-अनजाने में ना जाने कितनी गलतियाँ होती हैं किन्तु गलती का एहसास होना अर्थात अपने गलत कर्म का भान होना और गलती के लिए माफ़ी मांग लेना,उस गलती के बोझ को समाप्त कर देता है। गलती होना वास्तव में गलती तो है पर इतनी बड़ी नही,परन्तु अपनी गलती को महसूस ना करना यह उस से भी भारी गलती है।महसूस नही किया तो स्वयं के बदलने के द्वार बंद हो जाते हैं और वही गलती बार-बार दोहराई जाती है सच्चे दिल से माफ़ी मांगने का अर्थ है कि हम उस गलती को इतनी गहराई से महसूस करें कि दोबारा कभी भी किसी के भी साथ वो गलती ना दोहराएँ।अगर एक व्यक्ति बदला ले कर दूसरे को नीचा दिखाना चाहता है तो इस प्रयास में वह खुद भी नीचे उतर जाता है। दूसरी ओर क्षमा करके व्यक्ति स्वयं भी ऊँचा उठता है और सामने वाले को भी ऊँचा उठने की प्रेरणा देता है।यदि चित में ईर्ष्या,घृणा,द्वेष की अग्नि धधक रही है तो वह चित को भारी कर देती। ऐसा बोझिल मन भगवान के किस काम का जो पहले से ही भरा है,भगवान उसमे और क्या भरेंगे? इसलिए प्रतिदिन अपनी गलती के लिए क्षमा मांग कर और दूसरो की गलती के लिए क्षमा दे कर मन को खाली अवश्य कर लीजिये तभी शान्ति के सागर परमात्मा की शान्ति की किरणे अन्दर प्रवेश करेगी। इस तरह की हमारे मन कीधारणा  ही मन को शांत करेगी , जिससे हमारी पढ़ाई एकाग्र वृति से हो सकेगी और हमारी सफलता सत प्रतिशत निश्चित हो जाएगी। यह विचार जीवन जीने की कला के प्रणेता धार्मिक प्रभात के जोनल कोऑर्डिनेटर मैं देवी अहिल्या वेद विद्यालय में  छात्राओं  को संबोधित करते हुए बताया। इस अवसर पर  ब्रहमा कुमारी आशा बहन ने जीवघात महापाप है इस विषय पर संबोधित करते हुए बताया कि जीवघात करना अर्थात परिस्तिथियो से मुख मोड़ना। जीवघात करने से शरीर तो छूट जाता है परन्तु हिसाब-किताब आत्मा में ज्यों का त्यों बना रहता है।आत्मा जहाँ भी जाए,कर्मो के बंधन,संस्कारों के बंधन उसके साथ ही रहते हैं।अत:परिस्तिथियो से मुख मोड़ कर जीवघात करना बहादुरी नही कमजोरी है। जीवघात होते ही आत्मा सूक्ष्म शरीर के साथ,स्थूल शरीर से अलग हो जाती है।वह खुद के मृत शरीर को देख पश्चाताप करती है परन्तु तब तक शरीर की नस,नाड़ी सब जवाब दे चुके होते हैं इसलिए शरीर में दोबारा प्रवेश करने में असफल रहती है।अपने मन में दबे रहस्य अपने परिवार जनों को बताना चाहती है लेकिन उसकी बात कोई नही सुन पाता।कितनी बेबस हो जाती है आत्मा? उससे भी कई गुणा ज्यादा तड़फ आत्मा को अपने ही शरीर को जलते देख कर होती है।रोते-बिलखते परिजनों को सांत्वना देने का प्रयास तथा उनसे बात करने की कोशिश करती है परन्तु सूक्ष्म शरीर में होने के कारण कोई उसे देख व सुन नही पाता। अपनी उपस्तिथि का एहसास दिलाने के लिए कई बार किसी वस्तु की उठा-पटक भी करती है परन्तु  परिवार वाले उसे भूत-प्रेत समझ उस से किनारा करतें हैं। कार्यक्रम का शुभारंभ विद्यालय प्रिंसिपल मिथिलेश पाठक में  किया और बताया कि शैक्षणिक कार्य में ध्यान , योग, पार्थना का महत्व पूर्ण योगदान होता है ।ध्यान हमारी मन की शात अवस्था पर निर्भर करता है। कार्यक्रम में ब्रहमा कुमारी नीतू  ब्रहमा कुमारी रजनी धर्मा कुमार हरिभाई मौजूद थे कार्यक्रम के अंत में गुरुकुल के सभी छात्रों को  ब्रहमा कुमारी की ओर से रक्षाबंधन के पर्व पर रक्षा सूत्र बाँधा गया सबको मुख  मीठा कराया गया। 

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