दुर्ग, छत्तीसगढ़ : विजया दशमी के अवसर पर रावण दहन कर्यक्रम में प्रसिद्ध व्यापारी जितेश जैन, नितेश जैन, प्राची सिंग व बी.के. रीटा बहन व रूपाली बहन।
-बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक दशहरा उत्सव प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय बघेरा के आनंद सरोवर में मनाया गया इस अवसर पर “धर्मराज के दरबार में ट्रायल कोर्ट” नाटक का सुंदर मंचन किया गया जिसमें यह बताया गया कि परमात्मा ने हमें इस सृष्टि पर भिन्न -भिन्न नाम रूप जाति धर्म के नाम से अभिनय करने भेजा किंतु हम सभी देह के धर्म को ही अपना वास्तविक धर्म मानकर परमात्मा को भूल बैठे व आपस में ही एक दूसरे की बुराई देखते सतयुगी सृष्टि को कलयुगी सृष्टि बना दिए इस समय कलि काल के अंत में परमपिता परमात्मा ने आकर ज्ञान दिया व स्वयं को परिवर्तन करने का समय भी दिया किंतु बहुत आत्माएं अपने देह के अभिमान के वश व अज्ञान नींद के कारण परमात्मा को पहचान नहीं सके व जो आत्माएं, परमात्मा को पहचान अपना जीवन श्रेष्ठ बनाए व कुछ आत्माएं भगवान को पहचानने के बाद भी आलस्य के कारण अपने जीवन को परिवर्तन नहीं किये उनका धर्मराज के दरबार मे पुण्य और पाप कर्मो का हिसाब-किताब होता है, इसे ही भिन्न-भिन्न धर्मों में भी बताया गया है कि कयामत के समय सातवें आसमान से खुदा आकर तमाम कब्र दाखिल रुहों को कब्र से जगाते हैं व उनके नेकी (अच्छाई)व बदी(बुराई)का हिसाब किताब करते हैं जो रूहें अच्छाई पर चलती हैं उन्हें जन्नत (स्वर्ग) अता फरमाते हैं व जो रूहें बदी के रास्ते पर चलती है उन्हें दोजक(नर्क) भेजते हैं। नाटक के पश्चात रावण दहन किया गया जिसमें नितेश जैन , जितेश जैन, प्राची बहन , रीटा बहन (संचालिका ब्रम्हाकुमारी जी दुर्ग) रुपाली बहन वरिष्ठ राजयोगी शिक्षिका उपस्थित थे ब्रह्माकुमारी चैतन्य प्रभा ने सभी उपस्थित भाई बहनों को दृढ़ संकल्प कराया कि जिस प्रकार राम ने रावण पर जीत पाई व लंका दहन किया उसी प्रकार हम सभी परमपिता परमात्मा के सत्य मार्ग पर चलकर अपने विकारों पर जीत प्राप्त करेंगे व परमात्मा की शुभ इच्छा जो है दुःखमय सृष्टि को सुखमय बनाने की उसमें अपना तन मन धन समय श्वांस संकल्प सब कुछ सफल करेंगें । इस नाटक के मंचन में मुख्य रूप से दाऊ भाई देवाशीष भाई डॉ.पंखुड़ी बहन गीता धारिणी प्रगति आंचल प्रीति पूजा प्रिया भुनेश्वरी कौशल्या दिलेश्वरी नीलम वैभवी ऐश्वर्या मौसमी जागृति आरम्भवी विभा खुशी और वीणा ने सुंदर अभिनय कर नाटक में वास्तविक धर्मराज की सभा का एहसास कराया।