अलीराजपुर: दूसरों को सिखाने के लिए स्वयं में धर्यता बहुत चाहिए, ज्यादा सोचने वाले का जीवन समस्याओं से गिर जाता है- ब्रह्माकुमार नारायण भाई

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अलीराजपुर ,मध्य प्रदेश। यह ईश्वरीय मार्ग बिल्कुल सहज है, बस हमें अटेंशन ही तो रखना है। परन्तु सोच-सोच कर परिस्थितियों से न्यारा होने की बजाए, उसमें फँस, हम कंप्लेंट स्वरूप नहीं बनना, क्योंकि इसमें हमारा ही अकल्याण समाया है और इससे परिस्थितियाँ बढ़ेंगी, घटेगी नहीं…। क्योंकि *किसी से शिकायत होना अर्थात् अपना हिसाब-किताब लम्बा करना है…। शिकायत स्वरूप आत्मा, परमात्मा बाप का सहयोग भी प्राप्त नहीं कर सकती।हमारी आशा एक परमात्मा है, हमारा सहारा एक परमात्मा है, हमारा विश्वास एक परमात्मा है, हमारे आगे बढ़ने के कदमों की शक्ति जो है, वह भी परमात्मा ही है। भीतर के अंधेरे को दूर करने का साधन और हमारी लाइट भी एक परमात्मा पिता ही है। जीवन जीने का आधार भी एक वही है।इसलिए उसके इलावा अगर और कुछ सोचेंगे, कुछ और बात मन में रखेंगे, तो अंधेरा ही दिखेगा … और अगर खाली परमात्मा सोचेंगे, अर्थात “बाबा मेरे साथ है” … उसके साथ पर निश्चय रखेंगे, उसकी शिक्षाओं को जीवन में यूज़ करेंगे और दिल से सब कुछ परमात्मा को समर्पण करेंगे…, तब रोशनी में बढ़ जायेंगे।धैर्यता अथवा धीरज की शक्ति (patience power) – यह ईश्वरीय शक्ति है। ईश्वर में तो हर तरह की शक्ति होती है, वह सर्व शक्तियों का सागर है, परन्तु जो उनमें सबसे powerful शक्ति है, वह धर्यता की…। भगवान में इतनी धर्यता है कि वह हर तरह की आवाज़ सुन भी सकता है, हर तरह का कार्य कर भी सकता है … और साक्षी होकर देख भी सकता है। यह विचार इंदौर से पधारे जीवन जीने की कला के प्रणेता ब्रह्माकुमार नारायण भाई ने दीपा की चौकी पर स्थित ब्रह्माकुमारी सभागृह में नगर वासियों को संबोधित करते हुए बताया कि ईश्वर सबसे बड़ी शक्ति है कि वह सब कुछ कर सकता है, पर फिर भी हमसे करवाता है, खुद नहीं करता, करन-करावनहर है … वह समय का इंतज़ार करता है। क्योंकि केवल धीरज (पेशेन्स) वाला ही इंतज़ार कर सकता है।जैसे किसी को कुछ सिखाने के लिए भी बहुत ज्यादा धीरज चाहिए, धीरज चाहिए…, क्योंकि जैसे ही हमारी पेशेन्स घटेगी, तो तुरन्त हम अपनी सीट से उतर जाते हैं और हमारे मन की स्थिति भी हलचल में आ जाती है…! परन्तु परमात्मा, बिल्कुल अपनी सीट पर रह करके ही अपना कार्य करवाता है। निरहंकारी ही कल्याणकारी बन सकता है। जिसमें अहंकार होगा, वह कल्याणकारी नहीं बन सकता।क्योंकि कल्याणकारी बनने के लिए अहंकार का त्याग चाहिए, तभी कोई कल्याणकारी बन सकता है।जहाँ अहंकार का अंश भी आ जाता है, वहाँ कल्याण कम होना शुरू हो जाता है।यदि जीवन में कुछ बनना चाहते हो तो अपना स्वभाव “जल” की भांति शीतल बनाओ…।       जैसे जल सभी की प्यास भी बुझाता है ,और बाधाओं को लांघ कर अपना रास्ता भी स्वयं बनाता है।  परंतु “पत्थर” की भांति मत बनाओ,क्योंकि वो तो दूसरों का भी रास्ता रोक लेता है….। और एक बात हमेशा याद रखो कि सबके साथ हमारा व्यवहार बहुत ही नम्रता पूर्ण हो क्यूंकि जो झुक सकता है,वो संसार को झुका सकता है,अकड़ने वाले तो अधिकतर टूट जाते हैं। कार्यक्रम के अंत में ब्रह्माकुमारी प्रतिभा  ने राजयोग मेडिटेशन द्वारा सबको ज्ञान शांति की अनुभूति करवाई।

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