भारत ने सिखाई विश्व को श्रेष्ठ जीवन पद्धति – महामंडलेश्वर स्वामी धर्मदेव
– अखिल भारतीय भगवद्गीता महासम्मेलन का हुआ शुभारम्भ
– बड़ी संख्या में साधु, सन्त और महात्माएं हुए सम्मिलित
– ब्रह्माकुमारीज के ओम शांति रिट्रीट सेंटर में हुआ आयोजन
– महामहिम राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू ने कार्यक्रम के प्रति भेजा शुभकामना संदेश
भोरा कलां ,गुरुग्राम, हरियाणा।
भारत ने विश्व को जीवन जीना सिखाया। ब्रह्माकुमारीज में आकर शान्ति के स्वर सुनाई देते हैं। उक्त उचार पटौदी, हरी मंदिर के महामंडलेश्वर स्वामी धर्मदेव महाराज ने ब्रह्माकुमारीज के ओम शान्ति रिट्रीट सेंटर में व्यक्त किए। तीन दिवसीय अखिल भारतीय श्रीमद भगवद्गीता महासम्मेलन के उद्घाटन सत्र में उन्होंने ये बात कही। उन्होंने कहा कि ब्रह्माकुमारीज संस्था मानव को देवता बनाने का श्रेष्ठ कार्य कर रही है। भारत ने विश्व को आध्यात्मिकता का मूलमंत्र दिया। विश्व शान्ति के लिए ब्रह्माकुमारीज अदभुत भूमिका निभा रही है।
हरिद्वार से महामंडलेश्वर दिनेशानंद भारती ने कहा कि ईश्वर कभी भी गर्भ से जन्म नहीं लेते। उन्होंने कहा कि गीता नव जीवन का निर्माण करती है। गीता का ज्ञान हमें अविनाशी तत्व की ओर ले जाता है। ये ज्ञान विराट संसार से सूक्ष्म ईश्वर की तरफ ले जाने वाला है। ब्रह्माकुमारीज संस्था गीता ज्ञान के रहस्य को सम्पूर्ण विश्व में फैला रही है।
– कर्म में अकर्ता भाव प्रकट करना ही सबसे बड़ी बुद्धिमानी
गुरुग्राम से महामंडलेश्वर स्वामी दुर्गेशानंद जी ने कहा कि मनुष्य जीवन सर्वश्रेष्ठ है। उन्होंने कहा कि कर्म में अकर्ता भाव का अनुभव करना ही सबसे बड़ी बुद्धिमानी है। कई बार जो जैसा दिखाई देता है, वैसा होता नहीं। इसी प्रकार दिखाई देने वाला संसार भी वैसा नहीं है। अज्ञान की स्थिति में हमें चीज़ें वैसे ही दिखाई देते हैं। आत्म ज्ञान के द्वारा ही सतयुग का उदय होता है।
– धार्मिक और सांस्कृतिक भिन्नता के बावजूद भी भारत एक
युगांडा में भारत के उच्चायुक उपेंद्र सिंह रावत ने कहा कि ब्रह्माकुमारीज समूचे विश्व में शांति और सौहार्द का संदेश दे रही है। उन्होंने कहा कि धार्मिक और सांस्कृतिक भिन्नता के बाद भी भारत एक है। वास्तव में गीता सबको जोड़ती है। क्योंकि गीता एक सार्वभौमिक संदेश देती है। गीता एक आध्यात्मिक ग्रंथ है।
– गीता के ज्ञान से ही होगी सतयुग की पुनर्स्थापना
कार्यक्रम के उद्देश्य को स्पष्ट करते हुए ब्रह्माकुमारीज के अतिरिक्त महासचिव राजयोगी बीके बृजमोहन ने कहा कि गीता ज्ञान को सही परिप्रेक्ष में समझने की जरूरत है। जिस समय परमात्मा ने गीता सुनाई, उसके बहुत समय पश्चात गीता को धर्मग्रंथ का रूप दिया गया। गीता शास्त्र वास्तव में भगवान द्वारा सुनाए गए ज्ञान का यादगार है। बहुत समय के बाद लिखे जाने के कारण गीता ज्ञान का भाव परिवर्तन हो गया। उन्होंने कहा कि गीता का ज्ञान निराकार परमात्मा शिव ने कलयुग के अंत में दिया। क्योंकि गीता ज्ञान से ही सतयुग की स्थापना हुई।
– पवित्रता के आधार से ही की जा सकती है नूतन विश्व की संकल्पना
माउंट आबू से आई वरिष्ठ राजयोग शिक्षिका बीके उषा ने कहा कि साधु-महात्माओं के कारण ही भारत भूमि आज तक थमी हुई है। श्रीमद्भगवत गीता ही ऐसा शास्त्र है, जिसमें भगवानुवाच लिखा है। उन्होंने कहा कि गीता में परमात्म अवतरण की जो विधि बताई है, वो वास्तव में आलौकिक और विचित्र है। पवित्रता के आधार से ही नए विश्व की संकल्पना की जा सकती है।
ओआरसी की निदेशिका राजयोगिनी आशा दीदी ने अपने अध्यक्षीय संबोधन में कहा कि हरेक को जीवन में सुख-शांति और पवित्रता चाहिए। जोकि परमात्म श्रीमत के सिवाए मिल नहीं सकती। उन्होंने कहा कि गीता हमें यही संदेश देती है कि आत्मा स्वयं ही अपना मित्र और अपना शत्रु है। फिर कोई दूसरा हमारा शत्रु कैसे हो सकता है। उन्होंने कहा कि हमें स्वधर्म को समझने की जरूरत है। आत्म ज्ञान के द्वारा ही स्वधर्म में टिक सकते हैं।
कार्यक्रम के प्रति विशेष रूप से महामहिम राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू ने भी अपना शुभ कामना संदेश भेजा। जिसे आशा दीदी ने पढ़कर सुनाया।
कार्यक्रम में महामंडलेश्वर स्वामी अभिषेक चैतन्य, स्वामी गणेशानन्द महाराज, स्वामी त्रिदंडी चिन्ना जीयर, रामाकृष्ण मिशन के स्वामी सर्वलोकानंद, उत्कल विश्व विद्यालय की पूर्व कुलपति मधुमिता दास, सोनीपत से बीके लक्ष्मी एवं जबलपुर से डॉ. पुष्पा पाण्डेय ने भी अपने विचार रखे। कार्यक्रम का संचालन बीके वीणा ने किया।