मकर संक्रांति हमें सिखाती है खिचड़ी हो चुके संस्कारों को परिवर्तन करके अब दिव्य संस्कार धारण करने हैं- ब्रह्माकुमारीज
छतरपुर,मध्य प्रदेश। उलझे रिश्तों को सुलझाने के लिए पतंग की तरह ढील देना है और उन्हें कटने से बचाना है मकर संक्रांति पर प्रतिवर्ष लाखों श्रद्धालुओं का मेला विभिन्न नदियों के घाटों पर लगता है। वास्तव में इन स्थूल परम्पराओं में आध्यात्मिक रहस्य छुपे हुए हैं। इस दिन खिचड़ी और तिल का दान करते हैं, इसका भाव यह है कि मनुष्य के संस्कारों में आसुरियता की मिलावट हो चुकी है, अर्थात उसके संस्कार खिचड़ी हो चुके हैं, जिन्हें परिवर्तन करके अब दिव्य संस्कार धारण करने हैं । इसका अर्थ यह है कि प्रत्येक मनुष्य को ईर्ष्या-द्वेष आदि संस्कारों को छोडकर संस्कारों का मिलन इस प्रकार करना है, जिस प्रकार खिचड़ी मिलकर एक हो जाती है। परमात्मा की अभी आज्ञा है कि तिल समान अपनी सूक्ष्म से सूक्ष्म बुराइयों को भी हमें तिलांजलि देना है। जैसे गंगा में खुद भी डुबकी लगाते हैं और ज़ोर जबर्दस्ती से भी एक दूसरे को डुबकी लगवाते हैं खुद डुबकी लगाकर दूसरों को डुबकी लगवाना शुभ मानते हैं इसी प्रकार अब हमें ज्ञान गंगा में डुबकी लगाकर एक दो को भी ज्ञान की डुबकी लगवाना है और सबको मुक्ति-जीवनमुक्ति का मार्ग दिखाना है। इस अवसर पर हम जो पतंग उड़ाते हैं यदि पतंग अकेले आकाश में उड़े तो अच्छी नहीं लगती लेकिन जब बहुत सारी पतंगे उड़ती हैं तो अच्छी लगती हैं लेकिन जब ज्यादा होती हैं तो आपस में उलझती भी हैं और जब उलझी तो कटी इसीलिए उसे कटने से बचाने के लिए हम उसे थोड़ा सा ढील दे देते हैं ऐसे ही जब हम खूब सारे लोग संगठन में रहते हैं, परिवार में रहते हैं तो उलझते भी हैं लेकिन भगवान कहते हैं जब रिश्ते उलझे तो उसे थोड़ा ढील दे दो तो उलझे रिश्ते भी सुलझ जाएंगे।
उक्त उद्गार प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय छतरपुर किशोर सागर द्वारा मकर संक्रांति के पावन पर्व पर आयोजित कार्यक्रम में ब्रह्माकुमारी रमा बहन ने व्यक्त किये।
इस अवसर पर ब्रह्माकुमारीज परिवार के सभी भाई बहनें, बीके रीना, बीके रजनी सहित अन्य बहने एवं नगर के अनेक गणमान्य नागरिक उपस्थित रहे।
कार्यक्रम के अंत में खिचड़ी और लड्डू के रूप में सभी ने ईश्वरीय प्रसाद ग्रहण किया।