राखी मजबूत करती मर्यादाओं की डोर

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यह त्योहार एक धाॢमक त्योहार है और यह इंद्रियों पर विजय प्राप्त करने के संकल्प का सूचक है, अर्थात् भाई और बहन के नाते में जो मन, वचन और कर्म की पवित्रता समाई हुई है, यह उसका बोधक है

रक्षाबंधन का त्योहार भारत के प्रमुख त्योहारों में से एक है। चिरातीत काल से ही बहनें भाई की कलाई पर श्रावणी पूर्णिमा को राखी बांधती चली आ रही हैैं। भारत का यह त्योहार विश्व-भर में अपनी प्रकार का एक अनूठा ही त्योहार है। भाई को स्नेह के सूत्र में बांधने वाला यह एक बहुत ही मर्मस्पर्शी और भावभीति रस्म है। यह त्योहार बहन और भाई के पारस्परिक स्नेह और सम्बन्ध के रूप में मनाया जाता है। इस दिन बहनें भाई को राखी बांधती हैं और उनका मुख मीठा कराती हैं। कैसी है भारत की यह अद्भुत परम्परा कि भाई अपने हृदय में अपनी बहन के प्रति स्नेह-समुद्र को बटोरे हुए सहर्ष ही इसे स्वीकार कर लेता है। 4-10 मिनट की इस रस्म में भारतीय संस्कृति की वह झलक देखने को मिलती है कि किस प्रकार यहां बहन और भाई में एक मासूम उम्र से लेकर जीवन के अंत तक एक-दूसरे से प्यार का यह सम्बन्ध अटूट बना रहता है। यह धागा तो एक दिन टूट भी जाता है, परंतु मन को मिलाने वाले स्नेह के सूक्ष्म सूत्र नहीं टूटते। यदि वह तार किसी पारिवारिक तूफान के झटके से टूट भी जाता है, तो फिर अगली राखी पर फिर से नया सूत्र उस स्नेह में एक नई जिंदगी और एक नई तरंग भर देता है। इस प्रकार यह स्नेह की धारा जीवन के अंत तक ऐसे ही बहती रहती है जैसे कि गंगा, अपने उद्गम स्थान से लेकर सागर के संगम तक कहीं तीव्र और कहीं मधुर गति से प्रवाहित होती रहती है। रक्षाबंधन को केवल कायिक अथवा आर्थिक रक्षा का प्रतीक मानना इस त्योहार के महत्व को कम कर देने के बराबर है। भारत मुख्यत: एक आध्यात्मिकता प्रधान देश है। यहां मनाये जाने वाला हर त्योहार आध्यात्मिक पृष्ठ-भूमि के लिए हुए है। यदि उसी परिप्रेक्ष्य में देखा जाए तो रक्षाबंधन का भी आध्यात्मिक महत्व है।
भारत में सूत्र सदा किसी आध्यात्मिक मनोभाव को लेकर ही बांधे जाते हैं। दूसरे शब्दों में कहें, सूत्र बांधने की रस्म शुद्ध, धार्मिक है और हर धार्मिक कार्य को शुरू करने के समय कुछ व्रतों अथवा नियमों को ग्रहण करने के लिए यह रस्म अदा की जाती है। जब भी किसी व्यक्ति से कोई संकल्प कराया जाता है तो उसे सूत्र बांधा जाता है और तिलक भी दिया जाता है। सूत्र बांधना और संकल्प करना तथा तिलक देना- इन तीनों का सहचर्य आध्यात्मिक संकल्प का ही प्रतीक है क्योंकि यह रस्म सदा किसी धाॢमक अथवा पवित्र व्यक्ति द्वारा ही कराई जाती है और सूत्र बंधवाने वाला व्यक्ति संकल्प कराने वाले को दक्षिणा भी देता है- इसी का रूपांतर यह ‘रक्षाबंधन’ त्योहार है। यह त्योहार एक धाॢमक त्योहार है और यह इंद्रियों पर विजय प्राप्त करने के संकल्प का सूचक है, अर्थात् भाई और बहन के नाते में जो मन, वचन और कर्म की पवित्रता समाई हुई है, यह उसका बोधक है।
यह ऐसे समय की याद दिलाता है, जब परमपिता परमात्मा ने प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा कन्याओं-माताओं को ब्राह्मण पद पर आसीन किया, उन्हें ज्ञान का कलश दिया और उन द्वारा भाई-बहन के सम्बन्ध की पवित्रता की स्थापना का कार्य किया, जिसके फलस्वरूप सतयुगी पवित्र सृष्टि की स्थापना हुई। उसी पुनीत कार्य की आज पुनरावृत्ति हो रही है।
यदि ज्ञान की दृष्टि से देखा जाये तो रक्षाबंधन एक बहुत ही रहस्ययुक्त पर्व है। यदि इसकी पूरी जानकारी हो और ज्ञान-युक्त रीति से इस बंधन को निभाया जाये तो मनुष्य को मुक्ति और जीवनमुक्ति की प्राप्ति हो सकती है। किंवदंती है कि इसको मनाने से स्वर्ग की प्राप्ति भी होती है। इसके बारे में एक जगह यह भी वर्णन आता है कि जब असुरों से हारकर इंद्र ने अपना राज्य-भाग्य गंवा दिया था तो उसने भी इंद्राणि से यह रक्षाबंधन बंधवाया था और इसके फलस्वरूप उसने अपना खोया हुआ स्वराज्य पुन: प्राप्त कर लिया था। इसी प्रकार, एक दूसरे आख्यान में यह वर्णन मिलता है कि यम ने भी अपनी बहन यमुना से रक्षाबंधन बंधवाया था और कहा था कि इस बंधन को बांधने वाले मनुष्य यमदूतों से छूट जायेंगे। स्पष्ट है कि ऐसा रक्षाबंधन जिससे कि स्वर्ग का स्वराज्य प्राप्त हो अथवा मनुष्य यम के दण्डों से बच जाये, पवित्रता का ही बंधन हो सकता है, अन्य कोई बंधन नहीं। अब प्रश्न उठता है कि इस त्योहार से इतनी बड़ी प्राप्ति कैसे होती है? इसका उत्तर हमें इस त्योहार के अन्यान्य नामों से ही मिल जाता है। रक्षाबंधन को ‘विष तोडक़ पर्व’, ‘पुण्य प्रदायक पर्व’ भी कहा जाता है जो इसके अन्नय नाम हैं उससे यह सिद्ध होता है कि यह त्योहार पवित्रता की रक्षा करने, पुण्य करने और विषय-विकारों की आदत को तोडऩे की प्रेरणा देने वाला त्योहार है।

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