बूंदों की थिरकन के बीच कवियों की हास्य ठिठोली
– काव्यपाठ से अध्यात्म, संस्कृति और देशभक्ति दिखाई तो हास्य व्यंग्य से खूब गुदगुदाया
– ब्रह्माकुमारीज़ एवं सारथी परिवार के संयुक्त तत्वावधान में राष्ट्रीय कवि सम्मेलन आयोजित
आबू रोड,राजस्थान। रिमझिम बारिश के बीच कवियों ने काव्यपाठ से जहां भारत की गौरवशाली परंपरा, संस्कृति व अध्यात्म की महिमा बताई तो देशभक्ति के जज्बे के साथ हास्य व्यंग्य से खूब गुदगुदाया। मौका था ब्रह्माकुमारीज़ संस्थान के कला एवं संस्कृति प्रभाग द्वारा आनंद सरोवर में आयोजित राष्ट्रीय कवि सम्मेलन का। इसमें देशभर से पधारे कवियों ने ओजपूर्ण कविता पाठ से श्रोताओं को मोटिवेट किया तो हंसाया भी।
शुभारंभ पर कला एवं संस्कृति प्रभाग की अध्यक्षा बीके चंद्रिका दीदी ने कहा कि कवि अपनी कविताओं से बताते हैं कि जीवन को हंसी-खुशी के साथ जीना चाहिए। जीवन में कितनी भी समस्याएं हों लेकिन अपनी खुशी कभी नहीं खोनी चाहिए। कविता हमारे हृदय को छूती है। भीलवाड़ा से आए देश के जाने-माने वरिष्ठ कवि, गीतकार राजेंद्र गोपाल व्यास ने हास्य कविताओं से सभी को खूब गुदगुदाया। होली स्नेह मिलन की मैं दुहाई दे दूं, ऐसी कुछ बात तुम्हारे जहन की कह दूं, इस नए सेल से एक नए मोड़ जिंदगी ले ले, हम बाहर की नहीं भीतरी होली खेलें।
कविता से बताई हिंदी की महिमा-
उदयपुर के अंतरराष्ट्रीय मंच संचालक राव अजातशत्रु ने कहा कि अंग्रेजी ए फॉर एपल से शुरू होती है और जेड फॉर जेब्रा, जानवर बनाकर छोड़ती है और हिंदी अ फॉर अनपढ़ से शुरू होती है और ज्ञ फॉर ज्ञानी बनाकर छोड़ती है। यह है हमारी हिंदी की महिमा और गाथा। जब तक भारत मां के माथे पर बिंदी नहीं लग जाती है उनका शृंगार अधूरा रहता है। इस दौरान अजातशत्रु ने जहां हास्य कविता पाठ कर श्रोताओं को गुदगुदाया तो राजनीति पर कविता प्रस्तुत कर वर्तमान राजनीति और व्यवस्था पर व्यंग्य किया। मेरा पुनर्जन्म के पुण्य होंगे कि ब्रह्माकुमारीज़ के इस दिव्य मंच पर कविता पाठ करना का अवसर मिला।
प्रतापगढ़ के फिल्मी पैरोड़ी शैलेंद्र शैलू ने कुछ गीत जिंदगी के अनुभव से लाया हूं, जमाने की ठोकर से मैं मझा-मझाया हूं, मैं आपके लिए प्रतापगढ़ से आया हूं से शुरुआत की। इसके बाद न मोहब्बत को दिल में दबाया करो, हाल कोई भी हो मुस्कुराया करो, आप जैसे श्रोता मिलेंगे कहां, इसलिए तालियां बजाया करो। आपने कविताओं से लोगों को हंसा-हंसाकर लोट-पोट कर दिया।
ये मिट्टी वो जहां कण-कण सच्चिदानंद बन जाए…
मप्र, नीमच के ओज की एडवोकेट व कवियत्री दीपशिखा रावल ने देशभक्ति से ओतप्रोत कविता पाठ किया। उन्होंने कहा कि भारत ने विश्व को एक ऐसा संस्थान दिया जो विश्व को नई राह दिखा रहे है वह है ब्रह्माकुमारीज़ आश्रम। ये मिट्टी वो जहां कण-कण सच्चिदानंद बन जाए, हर एक पत्थर में शालिकराम, तरुवर विंध्य बन जाए, यूं शाश्वत है यहां पर संस्कृति हर एक युवा में, मिले गर हमको परमहंस तो हर एक विवेकानंद बन जाए। धवल धरा, मरु धरा, वसंुधरा का गीत ये, मातृभक्ति की प्रथा, परंपरा का गीत ये, धीरता से हीरता के सुत्र का प्रवाह गीत, गीत ये स्वतंत्रता का गीत ये… कविता से आपने लोगों में देशभक्ति की भावना से सराबोर कर दिया।
मावली के हास्य कवि मनोज गुर्जर डरता नहीं किसी के बाप से, न शर्मिंदा हूं अपने आप से, गुंडे हो या दादा, बजीर हो या प्यादा, आज भी कोई कितना खतरनाक हो, जवाब देता हूं पहले अकड़कर फिर माफी मांग लेता हूं सीधे पांव पकड़कर… कविता सुनाकर सभी को लोट-पोट कर दिया। पंचकूला की डॉ. प्रतिभा माही ने मिट गई इंसानियत, हो गया इंसान, पत्थरों की शहर में, कहीं पर फूल, कहीं पर कांटे खिलाती है ये कुदरत कविता सुनाई।
कवियों कह दो ऐसी कविता….
कला एवं संस्कृति प्रभाग के मुख्यालय संयोजक व आध्यात्मिक कवि बीके सतीश ने कवियों कह दो ऐसी कविता, कवियों रच दो ऐसी कविता, जड़ता में चेतनता आए, घोर अविद्या तंद्रा भागेस जड़ता में चेतनता जागे, तुम सरिता बन चमको हर मन में, कवियों कह दो ऐसी कविता… कविता सुनाकर सभी को अध्यात्म की गहराई से रुबरु कराया। कार्यक्रम संयोजक व गायक बीके भानू ने सभी कवियों का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि आज के इस राष्ट्रीय कवि सम्मेलन में कवियों ने अपनी ओजपूर्ण कविता से समां बांध दिया। कवि बीके डॉ. विवेक ने कविता पाठ करते हुए कहा कि देवों की भूमि ईश्वर जिसका निर्माता है, संस्कृति के मिलने वाला आदर से पहले झुक जाता है, जर्रे-जर्रे में कला है जिसके नाम भारत आता है।