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राजयोग से शिक्षण कार्य प्रभावशाली होता है

शिक्षक और विद्यार्थी दोनों ही शैक्षिक वातावरण को उत्पन्न करने के लिए सशक्त माध्यम राजयोग…. ब्रह्माकुमार नारायण भाई

अलीराजपुर,मध्य प्रदेश। वर्तमान समय में प्रदान की जा रही शिक्षा में मनुष्य की समज, चेतना, आंतरिक शक्तियों और मूल्यों का विकास करने की मौलिक सोच का समावेश नहीं है। इसीलिए यह शिक्षा भौतिक जीवन जीने के लिए ज्ञान और दक्षता का विकास तो कर रही है, परंतु इसके साथ ही जीवन में अनेक प्रकार की विसंगतियां पैदा कर रही है। सकारात्मक शैक्षिक वातावरण में ही शिक्षण कार्य प्रभावशाली ढंग से संपन्न होता है। शिक्षक और विद्यार्थी दोनों ही शैक्षिक वातावरण को उत्पन्न करने के लिए सशक्त और चैतन्य माध्यम है। मनुष्य द्वारा उत्पन्न विचार तरंगे वातावरण का निर्माण करती है। सकारात्मक चिंतन करने से शैक्षिक वातावरण रुचिकर बनता है और सीखने की प्रक्रिया सहज होती है ।अरुचिकर शैक्षिक वातावरण के कारण ही विद्यार्थी प्राय अध्ययन से दूर भागते हैं तथा मानसिक दबाव पड़ने पर गलत आदतों का शिकार हो जाते है और कई बार मादक द्रव्यों का सेवन भी करने लगते हैं। यह विचार इंदौर से पधारे धार्मिक प्रभाग के राष्ट्रीय कार्यकारी सदस्य ब्रह्मा कुमार नारायण भाई ने जनपद शिक्षा केंद्र , सोडवा में शिक्षकों को संबोधित को संबोधित करते हुए बताया कि शिक्षा की सबसे बड़ी समस्या का समाधान राजयोग द्वारा संभव है। इस क्षेत्र में किए गए प्रयोग से यह बात प्रमाणित हुई है कि कक्षा में शिक्षण कार्य प्रारंभ करने से पूर्व 3 मिनिट साइलेंस का वातावरण बनाने से शिक्षण कार्य प्रभावशाली हो जाता है। विद्यार्थियों का ध्यान इधर-उधर से हटकर विषय वस्तु की ओर आ जाता है ।मानसिक एकाग्रता शैक्षिक वातावरण का निर्माण करने में सहायक होती है ।मानसिक एकाग्रता बढ़ाने हेतु मन में सकारात्मक संकल्पों को उत्पन्न करने के लिए शिक्षण कार्य करते समय बीच-बीच में संकल्प के ट्रैफिक कंट्रोल की विधि को अपनाने से विद्यार्थी के मन में उत्पन्न होने वाले व्यर्थ संकल्प से ध्यान हट जाता है और केवल पवित्र , आवश्यक, सकारात्मक संकल्प का मन में शक्तिशाली प्रवाह चालू रहता है इससे सकारात्मक प्रकंपन उत्पन्न होते जो पूरे वातावरण में फेलते हैं। प्राचीन भारत की गुरुकुल शिक्षा प्रणाली की सफलता का यही रहस्य था ।प्राकृतिक वातावरण में खुले आसमान और वृक्षों के नीचे चलने वाले इन गुरुकुल में शैक्षिक वातावरण बनाने के लिए मंत्रोच्चारण आदि किया जाता था। जिससे शक्तिशाली प्रकंपन उत्पन्न होते थे ।मानसिक शक्तियों का परिष्कार एवं परिवर्तन होता था ।छात्रों को दंड देने के बजाय सहनशीलता, प्रेम से समझा कर शिक्षा देने पर शीघ्र अपने आचरण में सुधार कर लेते थे ।कक्षा में शिक्षण कार्य आरंभ करने से पूर्व 3 मिनट मौन का अभ्यास कक्षा के शैक्षिक वातावरण को रुचिकर बनाने की वैज्ञानिक विधि है। कार्यक्रम में ब्रह्मा कुमारी माधुरी ने सबको राजयोग का अभ्यास भी कराया। कार्यक्रम का शुभारंभ बस सभी का आभार धर्मेंद्र कटारा जी खंड स्रोत समन्वयक ने किया और कहा कि वर्तमान शिक्षण कार्य को सरल व रुचिकर बनाने में ध्यान सकारात्मक विचारों की मुख्य भूमिका रहती है। कार्यक्रम में अनेक शिक्षक मौजूद थे।

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