इंदौर, मध्य प्रदेश। प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय के संस्थापक पिताश्री ब्रह्मा बाबा की 56 वीं पुण्य तिथि – (दो दिवसीय) श्रद्घापूर्वक मनायी गई। इस अवसर पर संस्थान की प्रेमनगर प्रभारी ब्रह्माकुमारी शशि दीदी ने बतलाया कि दादा लेखराज कृपलानी हीरे-जवाहरात के मशहूर व्यापारी थे। उनके जीवन में ऐसा महत्वपूर्ण मोड़ आया जब एकान्तवास के दौरान बनारस में हुए दिव्य साक्षात्कार ने उनके अन्दर वैराग्य उत्पन्न कर दिया। उन्होने कहा कि सनातन संस्कृति से ही स्वर्णिम भारत का निर्माण होगा।
18 जनवरी पर ब्रह्मवत्स ने पंक्तिबद्ध होकर पुष्पांजलि अर्पित की एवं गहन योग तपस्या की |
19 जनवरी को ब्रह्मा बाबा के 56 वीं पुण्यतिथि पर ” विश्व शांति दिवस ” का कार्यक्रम रखा गया | इस अवसर पर प्रेमनगर सेवाकेंद्र पर ब्रह्माभोजन का आयोजन हुआ तथा विशेष अतिथियो का स्वागत पुष्प गुच्छो एवं माला से किया गया | अतिथि इस प्रकार थे –
1. लालचंद वाधवानी ( अध्यक्ष, एकता ग्रुप, एवं समाज सेवी )
2. जयपाल बजाज ( वाईस प्रेजिडेंट, एकता ग्रुप )
3. श्यामलाल राजदेव ( पूर्व पार्षद, एवं समाज सेवी )
4. मनोहर मोटवानी ( अध्यक्ष, लाड़काना सिंधु परिवार )
5. सुंदरलाल कुकरेजा ( ट्रस्टी, लाड़काना सिंधु परिवार )
6. ब्र.कु. हेमलता दीदी जी ( निदेशिका , इंदौर जोन )
7. ब्र.कु.शशि दीदी जी ( प्रभारी, प्रेमनगर यूनिट)
8. ब्र.कु. अनीता दीदी जी ( प्रभारी, रतलाम सेवाकेंद्र )
9. ब्र.कु. उषा दीदी जी ( प्रभारी, मंदसौर संभाग )
इस अवसर पर ब्र. कु. शशि दीदी जी ने ब्रह्माकुमारी संस्था के संस्थापक ब्रह्मा बाबा का परिचय देते हुए कहा की – पिताश्री ब्रह्मा बाबा ने अपना तन-मन-धन और सर्वस्व प्रभु अर्पण कर ईश्वरीय निर्देश का पालन करते हुए ब्रह्माकुमारी संस्थान की स्थापना की। उन्होंने परमात्मा द्वारा बतलाए गए मार्ग पर चलकर समाज को एक नई दिशा दी। उन्होने नारी शक्ति को आगे करके उनका मान बढ़ाया और महिला सशक्तिकरण का कार्य किया। उन्होंने महिलाओं में छिपी नैतिक और आध्यात्मिक शक्तियों को सामने लाकर उनको विश्व परिवर्तन के निमित्त बनाया।
ब्रह्माकुमारी हेमा दीदी ने वैश्विक बदलाव की चर्चा करते हुए कहा कि जब सृष्टि प्रारम्भ हुई तो यह सतोप्रधान थी। उस समय यह दैवभूमि कहलाती थी। सभी मनुष्य दैवी गुणों से सम्पन्न होने के कारण देवी और देवता कहलाते थे। चहुं ओर सुख शान्ति व्याप्त थी। किन्तु द्वापर युग से समाज में नैतिक पतन होने से दु:ख-अशान्ति की शुरुआत हुई। तब विभिन्न धर्म पैगम्बरों ने अपने-अपने धर्मों की शिक्षा देकर नैतिक और सामाजिक गिरावट को रोकने का कार्य किया। इससे अधोपतन की गति में कमी जरूर आयी लेकिन पूरी तरह से उस पर रोक नही लग सकी।
भ्राता श्यामलाल राजदेव ने ब्रह्माकुमारी बहनो को शाल एवं तुलसी माला देकर सम्मानीत किया तथा आभार व्यक्त किया |
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