प्रश्न : हम यदि 108 की माला में आना चाहते हैं तो उसके लिए हमारा क्या पुरूषार्थ होना चाहिए? क्योंकि अभी हम अंत में आये हैं। बाबा ये कहते हैं कि लास्ट सो फास्ट, फास्ट सो फस्र्ट तुम जा सकते हो। तो क्या हम 108 की माला में आ सकते हैं?
उत्तर: वाह! इतना सुन्दर प्रश्न, जैसे लौकिक पढ़ाई में भी मनुष्य एक अच्छा टार्गेट रखता है। इस अलौकिक पढ़ाई में, स्पिरिचुअल पाथ पर बहुत ऊंचा लक्ष्य रखना ही है और 108 की माला में आना है। ये सभी फस्र्ट डिविज़नर हैं। जो 108 की माला में आते हैं। अष्ट रत्न पास विद ऑनर होने वाले। और 100 जो रत्न हैं वो फस्र्ट डिविज़न वाले हैं। फस्र्ट डिविज़न वालों को बहुत होशियार स्टूडेंट माना जाता है। विजय माला भक्ति मार्ग में जो पूजी जाती है वो 108 की होती है। और एक फूल होता है। विजय माला ये आत्माओं की यादगार है जिन्होंने तब जब भगवान इस धरा पर आये थे उनकी आज्ञाओं पर चलकर, उनसे राजयोग सीखकर, उससे शक्तियां लेकर माया को सम्पूर्ण रूप से जीत लिया। काम जीत बन गये, क्रोधजीत बन गये, सभी विकारों को जीत लिया। विजय हो गई और जो विकारों को जीत लेता है वो इस संसार में सबसे अधिक शक्तिशाली होता है। पहले से ही मैं तो एक बात सुनता आता हूँ। किसी चिंतक ने कहा था कि किसी शक्तिशाली सेना को हराना सहज हो भी सकता है लेकिन अन्दर के ये पाँचों शत्रुओं को हराना बहुत कठिन काम है। कईयों ने तो कह दिया कि ये इम्पॉसिबल है लेकिन ईश्वरीय शक्ति से, शिव बाबा की शक्ति से हम इसको जीत लेते हैं। तो बाबा ने कहा है कि एक बहुत अच्छी बात, जो भगवान बोलता है वो परमसत्य होता है। लास्ट वाले भी फास्ट जा सकते हैं। और एक बार बहुत गहरी बात कही थी कि इस विजय माला में आखिरी अंत तक भी सीट खाली रखी जाती है। कोई भी तेज पुरूषार्थ करके, दौड़ कर सीट पर बैठना चाहे तो बैठ सकता है। तो पहले तो मैं आपको ये श्योरिटी दे दूं कि कुछ सीटें खाली हैं। तो निश्चित रूप से आप आ सकते हैं। आठ घंटे योग की ओर चलना, बैठकर नहीं भले अधिक से अधिक दो घंटे बैठना, बाकी कर्मयोग करना सीख लेना है। भिन्न-भिन्न स्मृतियों में रहना योग है। सम्पूर्ण निरहंकारी बनना, मैंपन, मेरापन। बिल्कुल अन्दर में एक कटुता है आत्मा में, मैल है, उसको पूरी तरह से निर्मलता में बदल देना है और प्युरिटी बहुत सुन्दर, बहुत डिवाइन, बहुत संतुष्ट हम आत्मा बन जायेंगे। बहुत अच्छे स्वमान में आप रहेंगे। सेवाओं में निष्काम भाव आप अपनायेंगे। चाहे कोई भी कर्म आप करते हैं उसमें निष्काम भाव अपनायेंगे। भले ही आप लौकिक जॉब्स में हों लेकिन एक संकल्प कर लेना कि मेरा हर कर्म प्रभु प्रति है। कर्म करने के बाद उसको अर्पण भी और मन में ये संकल्प भी कि परमात्म अर्थ हम जी रहे हैं। परमात्म अर्थ कर्म हम कर रहे हैं तो बस आपका नम्बर फिक्स हो जायेगा।
प्रश्न : क्या वर्तमान समय अनुसार कुमारी जीवन में रहते हुए सम्पन्नता का पुरूषार्थ श्रेष्ठ है या समर्पित होने से वहाँ सहज होगा? यानी बाबा लिफ्ट हमें कहां ज्य़ादा करायेंगे?
उत्तर : बाबा का प्यार बाबा के प्रति सच्चे दिल की समर्पणमयता यही हमें आगे बढ़ाने वाली है। सेंटर पर रहकर भी ये हो सकता है, घर में रहकर भी हो सकता है। सेंटर पर रहकर नहीं भी हो सकता है। घर पर रहकर नहीं भी हो सकता है। ये तो करने वालों पर है। जिन्हें करना है उन्हें कोई नहीं रोक सकता। पर सेंटर की जीवन में कई बार बहुत व्यस्तता हो जाती है। कई जगह योग-तपस्या का बहुत अच्छा माहौल है तो वहाँ सहज होता है। लेकिन कई जगह सेवा ज्य़ादा होती है तो वहाँ थोड़ा कठिन हो जाता है। ये रास्ता आपको खुद चुनना है लेकिन जो बातें मैंने बताई इनको आप अपने जीवन में लायें। जहाँ भी आप होंगे वहीं तीव्र पुरूषार्थ चलेगा। सवेरे उठना, बहुत अच्छा योग करना, मुरली सुनना टोटल अपने जीवन को बाबा की ओर ढाल दो, लौकिकता तो रहती है ना संसार में। कोई डबल रखते हैं लौकिक भी, कि दुनिया में क्या हो रहा है? वो भी सुनें, नेट देखें वो भी करें। थोड़ा रूचि उधर भी रहती है लेकिन कम्प्लीट रूचि अध्यात्म की ओर हो तो तीव्र पुरूषार्थी सहज बन जायेंगे।
प्रश्न : मैं सीए हूँ, अभी समय की मांग क्या है? क्या हम घर में रहकर कार्य करते हुए, जॉब करते हुए पुरूषार्थ करें? या फिर सेवाओं में लग जायें। ये कंफ्यूजन बना रहता है।
उत्तर : सेवाएं तो अब से 100 गुणी होने वाली हैं। लेकिन चाहे हम सेवा करें, जॉब करें, घर में काम करें, काम तो मनुष्य को चाहिए। जो लोगों के अनुभव आ रहे हैं, जिन लोगों को काम नहीं था लॉकडाउन में तो उन्हों की बुद्धि डाउन जैसी हो गई। सोने को ही मन करता है। तो मनुष्य के मन में एक क्रिएटिव एनर्जी है उसको यदि हम यूज़ नहीं करेंगे तो सब डल होगा। कोई कहे कि मैं सब काम-धंधा छोडक़र पुरूषार्थ ही करूं, असंभव। सेवाएं भी खूब करो। देखो हम लोग भी कर रहे हैं। हम लोग तो लॉकडाउन में ज्य़ादा बिज़ी हो गए। सेवाएं भी खूब करो, जॉब भी करो। लेकिन ऐसी जॉब नहीं, कई सीए बहनें हमारे पास आती हैं तो बताती हैं कि भाई जी हम सुबह 8 बजे जाते हैं और रात को 10 बजे आते हैं। मैंने कहा कि तुम्हारा कुमारी जीवन का फायदा क्या? उठे, खा-पीकर सुबह ऑफिस चले गए। आए, खा-पीकर सो गए ये तो कोई लाइफ नहीं। तो आपकी जॉब के घंटे भी ठीक-ठीक हों। अगर किसी को छह घंटे की मिल जाए तो बहुत अच्छा। भले थोड़ा कम पैसे मिलें। लेकिन आठ घंटे से ज्य़ादा तो बिल्कुल नहीं। मैं इसमें किसी का अनुभव सुना देना चाहता हूँ। किसी की मैरिज़ हुई थी लेकिन वो ज्ञान में बहुत मज़बूत थी। उसने कहा मुझे मैरिज़ लाइफ पसंद नहीं है। मुझे योगी लाइफ बनानी है। तो माँ-बाप ने कहा कि जब बच्ची इसमें खुश है, अभी सिर्फ शादी ही हुई थी। तो छुड़ा दिया, डायवोर्स करा दिया। अभी वो भी इसमें है आईटी में, कुछ दिन तो अच्छा चला और फिर सवेरे उठते ही भागना और फिर रात को आके खाना खाके सो जाना। मेरे से मिलती रहती थी, मैंने कहा कि ये तो आपका त्याग भी निष्फल गया। केवल धन कमाना, चलो एक लाख रूपए सैलरी है, क्या करोगी आप? तो उसने कहा ठीक बात है। उसके माँ-बाप भी अच्छे साहूकार, बड़े बिज़नेसमैन थे। कहते कि तुम कुछ भी ना करो। देखिए ये हालात हैं। सभी कन्याओं को ये संकल्प दे रहा हूँ कि अपनी लाइफ को इज़ी कर दो। भागदौड़ की लाइफ ठीक नहीं इस समय। आप थोड़ा समय सेवाओं में दे सकें। आप अमृतवेले भी उठ सकें। मुरली भी सुन सकें और जॉब भी कर सकें। कोई सोच रहे होंगे कि इतने सारे काम। आप मैनेज ऐसे करें कि सवेरे उठकर अच्छा योग करें, मैं ये नहीं कहूंगा कि आप दो बजे, तीन बजे उठो। आप चार बजे ही उठो। रेस्ट की ज़रूरत है तो 5-6 के बीच आप कर लो। और बहुत फ्रेश होकर मुरली सुनो। ताकि सवेरे-सवेरे आत्मा स्पिरिचुअली चार्ज हो जाये। फिर अपना जॉब भी करो लेकिन सीखना ये होगा कि कार्य व्यवहार करते हुए कुछ न कुछ अच्छे अभ्यास कैसे करें। ये अगर कोई सीख लेता है तो ही आप अपने वर्क को एन्जॉय कर सकते हैं। कर्म को, अपने सम्बन्धों को सबको एन्जॉय करें। बहुत हल्के रहें तो जॉब भी करेंगे, कार्य भी करेंगे और बाबा की सेवा भी करेंगे और बहुत उन्नति भी करेंगे।