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दुर्ग: ब्रह्माकुमारीज आनंद सरोवर बघेरा में संस्था की प्रथम प्रशासिका “ओम राधे” की पुण्यतिथि का आयोजन

दुर्ग (छत्तीसगढ़): ब्रह्माकुमारीज “आनंद सरोवर ” बघेरा दुर्ग में 24 जून को संस्था की प्रथम मुख्य प्रशासिका “ओम राधे” की पुण्यतिथि का आयोजन किया गया । इस अवसर पर दुर्ग संचालित समस्त सेवाकेन्द्रों से 500 से भी अधिक संख्या में भाई बहनें उपस्थित हो अपनी भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित किये व मौन तपस्या का आयोजन किया गया ।
इस अवसर पर विस्तार से जानकारी देते हुए रीटा बहन (संचालिका ब्रह्माकुमारीज दुर्ग ) ने बताया कि 1936 में अविभाजित भारत के कराची सिंध हैदराबाद में दादा लेखराज जो कि सिंधी समाज के प्रतिष्ठित व ख्यातिनाम जौहरी थे उनके साकार तन में निराकार परमपिता परमात्मा “शिव” का दिव्य अवतरण हुआ जिन्हें परमात्मा ने दिव्य कर्तव्य हेतु दिव्य नाम प्रजापिता ब्रह्मा दिया व कलियुगी सृष्टि के विनाश व सतयुगी सृष्टि का दिव्य साक्षात्कार कराया । इसी समय ओम मंडली के नाम से संस्था की शुरुआत हुई उस समय इस दिव्य कर्तव्य को पूर्ण करने अनेक भाई बहनें ने इस कार्य हेतु अपना सर्वस्व समर्पण कर परमात्म कार्य में सहयोगी बने । इसी समय एक छोटी कन्या जिनका नाम “ओम राधे” था उनका भी इस ओम मंडली में आगमन हुआ जिन्हें परमात्मा ने दिव्य नाम जगदंबा सरस्वती दिया व सभी बच्चे उन्हें “मम्मा” नाम से संबोधित करते थे ।
अल्पायु में मातृत्व पालना का ऐसा गुण जिसके कारण उनको जन्म देने वाली माँ भी उन्हें मम्मा कहती थी । मम्मा कुशाग्र बुद्धि की धनी और परमात्मा के हर आज्ञा को शिरोधार्य कर उनका स्वरूप बनने का प्रत्यक्ष सबूत दिया तथा परमात्म कार्य में सभी सहयोगी आत्माओं की दिव्य पालना कर उन्हें दिव्य गुणों से भरपूर किया । कहा जाता है आधार सशक्त व मजबूत हो तो संपूर्ण संरचना भी सशक्त होती है । संस्था की प्रथम प्रशासिका के दायित्व का दैवी गुणों के द्वारा ऐसा सिंचित किया जो ओम मंडली संस्था कालांतर में प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय के नाम से विश्व व्यापी हो विशाल वटवृक्ष के भांति विश्व के पाँचों महाद्वीपों में 140 से भी अधिक सेवाकेन्द्रों के द्वारा ईश्वरीय संदेश दे अनेक आत्माओं का जीवन सुख शांति समृद्धि से भरपूर कर नवीन दैवी स्वराज्य की स्थापन में अपनी महती भूमिका निभा रही हैं ।
श्रद्धा सुमन अर्पित करने इस आयोजन में शहर से अनेक गणमान्य नागरिक उपस्थित हुये व आये हुए भाई-बहनों ने मातेश्वरी जी की दिव्य शिक्षाओं को जीवन में धारण कर परमात्म के कार्य में सहयोगी बन औरों को भी सहयोगी बनाने का श्रेष्ठ संकल्प लिया ।

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