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पीपलखेडा: शासकीय हायर सेकेंडरी स्कूल में ब्रह्माकुमारी सेवा केन्द्र ए-33 मुखर्जी नगर द्वारा कार्यक्रम आयोजित किया

”मेरे साथ क्या हो रहा है इसे छोड़ मुझे क्या करना है” इस पर ध्यान दो- बीके रुकमणी बहन

पीपलखेडा,मध्य प्रदेश। प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय ए-33 मुखर्जी नगर द्वारा शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय पीपलखेड़ा में बच्चों के लिए कार्यक्रम आयोजित किया गया जिसमें ब्रह्माकुमारी रुकमणी दीदी ने अपने विचार रखते हुए कहा कि जो सफलता के शिखर पर पहुंचते हैं जब उनसे पूछा गया कि आपकी सफलता का राज क्या है तो उनके उत्तर इस प्रकार थे कि यह मेरा सपना था समाज का कुछ उपकार करना ही जीवन का उद्देश्य था हर कदम मुझे मंजिल ही दिखाई देती थी प्राणों की बाजी लगाकर भी मुझे यह साधना करनी ही थी आदि आदि। इससे स्पष्ट है कि इतिहास रचने वाले सदा ही सोचते रहे कि ”मुझे कुछ करना” है। इस महामंत्र ने समाज को कई अमूल उपहार प्रदान किए। मैडम क्यूरी जब बालिका थी तब उनके पास स्कूल में दाखिल होने के लिए भी पैसे नहीं थे, फिर भी विश्व प्रसिद्ध वैज्ञानिक बन दों नोबेल पुरस्कारों की पात्र बनी। बुद्धिमता के कारण स्कूल से निकाला हुआ अल्बर्ट आइंस्टीन नामक का एक बालक आगे चलकर सापेक्ष सिद्धांत का पितामह बना। एक बालक के मां बाप ने समाज के क्रूर सांप्रदायिक नियमों के दबाव में आकर जल समाधि ले ली पर आगे चलकर बालक आध्यात्मिक साधना के शिखर पर पहुंच संत ज्ञानेश्वर के नाम से प्रसिद्ध हुआ। शारीरिक, मानसिक, आर्थिक, सामाजिक रीति से इनके साथ अनुचित घटनाएं घटी लेकिन आश्चर्य तो इस बात का है कि बेहद कष्टकर परिस्थितियों में भी इन्होंने अपनी साधना को जारी रखा और असंभव को भी संभव में परिवर्तन किया। इस उपलब्धि का आधार केवल एक ही लक्ष्य पर इनकी एकाग्रता थी कि ”मुझे कुछ करना” है।

ब्रह्माकुमारी रेखा दीदी ने अपनी बात रखते हुए कहा कि अपने अंतर्मन में यह शब्द बसा ले कि – मैं एक महान आत्मा हूं। सफलता मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है। मेरा जन्म महान कार्यों के लिए हुआ है। मुझ पर सदा परमात्मा की छत्रछाया है। ईश्वर सदा मेरे साथ है, तो जीवन वैसा ही महान और दिव्य बन जाएगा उपरोक्त सभी बातों को धारण करने के लिए हमें राजयोग का अभ्यास करना अत्यंत आवश्यक है राजयोग एक ऐसा माध्यम है जो हमारे संबंध परमात्मा से जोड़कर जीवन को दिव्य गुणों से भर देता है। राजयोग हमारी समझदारी को बढ़ा देता है दूसरों की छोटी-छोटी गलतियों का पहाड़ ना बनाकर हम उन्हें क्षमा करते चलें। शुभ भावना में बड़ा भारी बल है शुभ भावना के द्वारा बिगड़े हुए संबंधों को सुधारा जा सकता है। कोई हमारा कितना भी बुरा सोचे हम उसका भला ही सोचें इससे दूसरों की उन्नति के साथ-साथ हम खुद भी उन्नति कर पाएंगे यह कला अगर हमने सीख ली तो समझ लीजिए सुखी जीवन और संबंधों को खूबसूरत बनाने की महान कुंजी हमारे साथ लग गई। तो आइए हम सभी वसुंधरा को सुंदर बनाते हुए आपसी संबंधों में मिठास घोले और समरसता लाएं कार्यक्रम के अंत में सभी टीचर्स का ब्रह्मा कुमारी द्वारा सम्मान किया गया अधिक संख्या में बच्चों ने कार्यक्रम का लाभ लिया।

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