अलीराजपुर: अंतरात्मा से संपर्क कमजोर होने के कारण उदासी व तनाव हम सफर बन जाता है ब्रह्मा कुमार नारायण भाई

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अलीराजपुर ,मध्य प्रदेश। हमारी जिंदगी का सबसे बड़ा रहस्य यह है कि “हम खुद को ही नहीं जानते”, शायद हम अपनी प्रकृति या मूल स्वभाव को ही नहीं जानते या फिर शायद जानते हुए भी अनजान है।जिस तरह हमें पता है कि पानी का स्वभाव तरल होता है, उसी तरह क्या हमें पता है कि मनुष्य का मूल स्वभाव क्या है? क्या है हमारा मूल स्वभाव….आत्म बोध…. हर व्यक्ति के अन्दर एक शांत शक्ति मौजूद है जिसे हम अपनी अंतरआत्मा कहते है। यह अंतरात्मा हर परिस्थति में सही होती है। यह अंतरात्मा हमेशा हमें सही रास्ता दिखाती है। जब भी हम कुछ गलत कर रहे होते है, तब हमें बड़ा अजीब सा लगता है जैसे कोई यह कह रहा कि वह कार्य मत करो। यह हमारे अन्दर मौजूद आतंरिक शक्ति ही होती है जो हमें बुरा कार्य करने से रोकती है। कहा जाता है कि हर मनुष्य के अन्दर ईश्वर का अंश होता है, यह ईश्वर का अंश हमारी अंतरआत्मा ही होती है। हमारी प्रकृति या स्वभाव – शांत, शक्ति, प्रेम, सुख, आनंद, पवित्रता, ज्ञान, सद्भाव, दूसरों की सहायता और अच्छाई है। यह विचार इंदौर से पधारे जीवन जीने की कला के विशेषज्ञ ब्रह्माकुमार नारायण भाई ने राजपूत धर्मशाला में साइलेंस शक्ति द्वारा शारिरिक व मानशिक रोगो व समस्याओं पर विजय विषय पर नागरिको बताया कि हर मनुष्य के अन्दर यह शांत और अद्भुत शक्ति मौजूद है, चाहे वह एक अपराधी हो या संत या और कोई व्यक्ति। लेकिन फिर क्यों एक संत सही मार्ग पर चलता है और अपराधी गलत मार्ग पर? ऐसा इसलिए होता है क्योंकि संत को अपनी अंतरात्मा की आवाज सुनाई देती है लेकिन अपराधी को वह आवाज अब सुनाई नही देती।   दरअसल जब हम अपनी अंतरात्मा की आवाज को अनसुना कर देते है तो हमारा अपनी अंतरात्मा से संपर्क कमजोर हो जाता है। जब हम दूसरी बार कुछ बुरा करने जा रहे होते है तो हमें अपनी अंतरात्मा की आवाज फिर महसूस होती है लेकिन इस बार वह आवाज इतनी मजबूत नहीं होती क्योंकि हमारा अपनी अंतरात्मा से संपर्क कमजोर हो चुका होता है।  जैसे जैसे हम अपनी अंतरात्मा की आवाज को अनसुना करते जाते है वैसे वैसे हमारा अपनी अंतरात्मा के साथ संपर्क कमजोर होता जाता है और एक दिन ऐसा आता है कि हमें वो आवाज बिल्कुल नहीं सुनाई देती।जैसे जैसे हमारा अपनी अंतरात्मा के साथ संपर्क कमजोर होता जाता है वैसे वैसे हम उदास रहने लगते है और खुशियाँ भौतिक वस्तुओं में ढूंढने लगते है। हम समस्याओं को हल करने में असक्षम हो जाते है जिससे “तनाव” हमारा हमसफ़र बन जाता है। कार्यक्रम के अंत में  सभी का आभार प्रकट करते हुए भ्राता उमेश जी वर्मा मुख्य न्यायाधीश मजिस्ट्रेट  रीडर ने बताया ने बताया कि खुशी हमारे श्रेष्ठ विचारों पर निर्भर करती है ना कि भौतिक साधनों पर ।सत्य विचार हमें राजयोग के द्वारा मिलते हैं जो वर्तमान समय स्वयं निराकार परमात्मा इस सृष्टि पर आ कर के हमें सत्य ज्ञान प्रदान कर रहे हैं ।उस सत्य ज्ञान को धारण करने से हमारी चेतना में निखार आने लगता है हमारी अंतरात्मा से संबंध जुटने लगते हैं।  अंतरात्मा के अनुसार कर्म करने से जीवन खुशनुमा बनने लगता है। कार्यक्रम का संचालन ब्रह्माकुमारी ज्योतिबेन ने किया। सर्वप्रथम महाराणा प्रताप के छायाचित्र पर समाज के सभी वरिष्ठ नागरिकों ने माला अर्पण करके किया ।कार्यक्रम में समाज के नटवर सिंह सिसोदिया, अरविंद गहलोत, भैरू सिंह चौहान ,सीताराम राठौर, बाबूलाल चौहान ,श्रीमती आशा सिसोदिया, राजेश चंदेल राजपूत समाज के अध्यक्ष, उमेश जी वर्मा, अरुण गहलोत व अनेक शहर के गणमान्य नागरिक उपस्थित थे।

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