अम्बिकापुर: पिताश्री ब्रह्मा बाबा का 54 वां अव्यक्तारोहण विश्व शांति दिवस के रूप में मनाया गया

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अम्बिकापुर,छत्तीसगढ़: प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईष्वरीय विष्व विद्यालय नव विश्व भवन चोपड़ापारा अम्बिकापुर में ब्रह्माकुमारीज़ संस्थान के साकार आदिदेव पिताश्री ब्रह्मा बाबा का 54 वां अव्यक्तारोहण विश्व शांति दिवस के रूप में मनाया गया।

सरगुजा संभाग की सेवाकेन्द्र संचालिका ब्रह्माकुमारी विद्या दीदी पिताश्री ब्रह्मा बाबा के साकार जीवन चरित्रों की झलकियों को सुनाते हुये कहा कि प्रजापिता आदिदेव पिताश्री ब्रह्मा बाबा का नाम दादा लेखराज था। दादा का जन्म 1876 में सिंध के कृपलानी परिवार में हुआ था। दादा मेघावी, विशाल और चमत्कारी बुद्धि वाले थे। वो अपने इसी बुद्धि बल से अल्पायु में ही एक साधारण गेहूँ के व्यापारी से जौहरी के जाने- माने व्यापारी कहलाये। उन्हें हीरे- जवाहरातों का अचूक परख भी था। साथ ही साथ इतना धनाण्ढ्य होते हुये भी धन वैभव में रिंचक मात्र भी लोभ नहीं था। संसार में व्याप्त दुःख, अशांति, कलह- क्लेश को देख मन में सदैव लोगों के कल्याण की भावना रहती थी वो प्रभु से कहते थे, हे! प्रभु संसार का कल्याण हो। और उस समय नारियों का जीवन नर्क के समान था वो पुरूषों की जुत्ती समझी जाती थी परन्तु दादा सोचते थे कि इन नारियों का समाज में समान अधिकार हो, वो अपने जीवन को सुखी से जीये। इसी शुभ संकल्प से दादा ने ऐसी निर्बल, असहाय स्त्रियों को विश्वकल्याण की जिम्मेवारी दे उन्हें शक्तिस्वरूपा बना दिया। और आगे उन्होंने कहा कि दादा का जीवन अनेक विशेषताओं से परिपूर्ण था- बाबा त्यागी- तपस्वी थे तो विनम्रता की मूर्ति भी थे, मृदुभाषी, व्यवहार कुशलता, आज्ञाकारी और गुरू के प्रति शिष्टाचारी थे। और आगे उन्होंने कहा कि 60 वर्ष की आयु में दादा लेखराज के अन्दर 1936 में निराकार परमात्मा का दिव्य अवतरण होने के बाद उनका नाम पिताश्री ब्रह्मा बाबा पड़ा। पिताश्री ब्रह्मा सदा प्यार से कहते थे कि सच्चाई- सफाई से रहे और अर्न्तमुखी हो मेहनत करके अपने मंजिल को प्राप्त करें। बाबा सदा ही शिक्षा देते थे कि अपने विचारों को शुद्ध और पवित्र बनाकर लोगों के विचारों को भी शुद्ध बनाये।

आगे विद्या दीदी ने बताया कि जैसे दुनिया में चार धाम यात्रा करने से जीवन में पुण्य का उदय होता है उसी प्रकार माउण्ट आबू अर्थात् मधुबन में चार धाम साकार पिताश्री ब्रह्मा बाबा के तपोभूमि, कर्मभूमि, वरदानी भूमि, प्रत्यक्षफल प्राप्त करने की भूमि हैं। जहाँ का यात्रा करने से वास्तव में हमारे जीवन में पुण्य का उदय हो जाता है। ब्रह्माबाबा का कमरा, बाबा की कुटिया, हिस्ट्री हॉल, शांति स्तम्भ और सूक्ष्मवतमन इन चार धामों का मॉडल यहाँ पर बनाया गया है।
ब्रह्मा बाबा का कमरा, अर्थात् बाबा का तपस्या स्थल हैं जिसमें बैठकर ब्रह्मा बाबा तपस्या करते थे। इस कमरे में बैठने मात्र से ब्रह्मा बाबा जैसा बनने और दिव्यगुणों की अनुभूति होती है,
बाबा की कुटिया अर्थात् कुटियाँ में बाबा सभी मनुष्य आत्माओं के समस्याओं का निदान करते थे उन्हें खुशी और स्नेह प्रदान करते थे इसलिये यहाँ प्रेम की अनुभूति होती है, हिस्ट्री हॉल अर्थात् प्रभु मिलन करवाते थे और ज्ञान का आदान- प्रदान करते थे इसलिये यहाँ बैठने से व्यर्थ समाप्त होता है और समर्थ स्मृतियों की उत्पत्ति होने लगता हैं और शांति स्तम्भ अर्थात् पिताश्री ब्रह्मा बाबा 18 जनवरी 1969 में अव्यक्त होने के बाद उनके पार्थिव शरीर का अन्तिम संस्कार किया गया। यहाँँ पर बैठने से शक्ति की अनुभूति होती है। तथा सूक्ष्मवतन अर्थात् ब्रह्माबाबा के सम्पन्न एवं सम्पूर्णता को प्राप्त करने एवं फरिश्ते जैसा बनने का यादगार है।

ततपश्चात् पिताश्री ब्रह्मा बाबा को भोग स्वीकार कराया गया।

ब्रह्माकुमारीज़ से संस्था से जुडे़ भाई- बहनें ब्रह्ममूहूर्त से लेकर रात तक मौन में रहकर योग- तपस्या कर विष्व में शांति का प्रकम्मन फैलाये।

शहर के गणमान्य लोग एवं ब्रह्माकुमारीज़ संस्था से जुडे़ लगभग 500 भाई- बहनों ने भी शांति स्तम्भ पर पुष्प अर्पित कर साइलेंस की अनुभूति किया।

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