हंस बुद्धि बन मन के प्रदूषण को दूर कर जल प्रदूषण रोकना है मानो तो मैं गंगा मां हूं, ना मानो तो बहता पानी
छतरपुर,मध्य प्रदेश। प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय द्वारा गंगा सप्तमी के उपलक्ष्य में सभी भाई बहनों द्वारा हंस बनाए गए और उनके माध्यम से गंगा की भांति बुद्धि को स्वच्छ बनाने का संदेश दिया गया। उक्त कार्यक्रम जल जन अभियान के अंतर्गत प्रताप सागर तालाब पर किया गया जिसमें बीके कल्पना ने कहा कि गंगाजल की अपनी एक अलग महिमा है, गंगा का पानी नहीं कहते गंगाजल कहते हैं क्योंकि पानी एक साधारण शब्द हो जाता है लेकिन जब उसको जल कहते हैं तो उसका पूजनीय स्वरूप हमारे सामने आता है। जब हम देवी देवताओं के मंदिरों में जाते हैं तो यह नहीं कहते कि पानी चढ़ाने जा रहे हैं हम कहते हैं जल चढ़ाने जा रहे हैं। जब कोई संकल्प लिया जाता है तो यही कहते हैं कि मैं जल को साक्षी मानकर यह संकल्प लेता हूं इसका अर्थ यही हुआ कि जल एक देवता है क्योंकि जो देता है वही देवता है इसलिए हमारा फर्ज है कि हमें जल को बचाना चाहिए उसमें गंदगी नहीं फैलानी चाहिए। हमें जल प्रदूषण को बचाने के लिए मन का प्रदूषण हटाना पड़ेगा इसके लिए हमें हंस बुद्धि बन व्यर्थ का कंकड़ पत्थर छोड़ गुण रुपी मोती चुगना सीखना पड़ेगा।
इस अवसर पर सभी ने मिलकर जल आरती की और मछलियों को दाना खिलाया तत्पश्चात हंस और संत बनने के लिए संकल्प लिए और बीके सुमन, मोहिनी द्वारा जल बचाने की प्रतिज्ञा कराई गई।