450 बेटियां बनीं शिवप्रिया, संयम के पथ पर चलते हुए ईश्वरीय सेवा में समर्पित किया जीवन
– दुल्हन की तरह सज-धजकर पहुंची समारोह में, खुशी में किया डांस
– बेटियों के माता-पिता बोले- ऐसी साक्षात दैवी स्वरूपा बेटियों को पाकर धन्य हो गया जीवन
– खुशी में माता-पिता के छलके आंसू, बोले- हर जन्म में ऐसी बेटी मिले
– ब्रह्माकुमारीज के मुख्यालय में ऐतिहासिक दिव्य अलौकिक समर्पण समारोह आयोजित
आबू रोड/राजस्थान। ब्रह्माकुमारीज संस्थान के अंतरराष्ट्रीय मुख्यालय शांतिवन में एक दिव्य अलौकिक विवाह हुआ। विवाह भी ऐसा जिसमें एक दूल्हा (परमात्मा शिव) थे और 450 दुल्हनें। इन दुल्हनों में किसी ने सीए किया तो कोई डॉक्टर, इंजीनियर, एमटेक, एमएससी, फैशन डिजाइनर, स्कूल शिक्षिका। 15 हजार बाराती इस दिव्य विवाह के साक्षी बने। खुशी में भावुक माता-पिता बोले- आज हमारा जीवन धन्य हो गया। परमात्मा से यही कामना है कि हर जन्म में ऐसी शक्ति स्वरूपा, कुल उद्धार करने वाली बेटी मिले। खुद को भाग्यशाली महसूस कर रहा हूं कि आज मेरी बेटी समाज कल्याण के लिए संयम का मार्ग अपना रही है। अपने लिए तो सभी जीते हैं लेकिन मेरी बेटी अब विश्व कल्याण के लिए जिएगी।
संस्थान के इतिहास में पहली बार एक साथ 450 बेटियों ने ब्रह्मचर्य व्रत धारण कर ब्रह्माकुमारी के रूप में आजीवन समाजसेवा का संकल्प लिया। इन बेटियों को खुशी में नाचते देख हर कोई भावुक हो उठा। इनके चेहरों पर कुछ पाने की खुशी को साफ देखा जा सकता था। समारोह में बेटियों के माता-पिता ने अपनी-अपनी लाड़लियों का हाथ संस्थान की मुख्य प्रशासिका राजयोगिनी दादी रतनमोहिनी, संयुक्त मुख्य प्रशासिका राजयोगिनी मुन्नी दीदी, राजयोगिनी संतोष दीदी के हाथों में सौैंपा।
अलसुबह 3.30 बजे से शुरू हुई बहनों की दिनचर्या-
परमात्म पर अपना जीवन समर्पण करने वालीं सभी बहनों की दिनचर्या अलसुबह ब्रह्ममुहूर्त में 3.30 बजे से शुरू हुई। सबसे पहले सभी बहनों ने परमपिता शिव परमात्मा, शिव बाबा का एक घंटे ध्यान किया। इसके बाद सुबह 7 बजे से आठ बजे तक सत्संग (मुरली क्लास) में भाग लिया। इसके बाद दिनभर में अपने साथ आए नाते-रिश्तेदारों के साथ बिताया। एक-दूसरे को बधाइयों का दौर चलता रहा। शाम 4 बजे से दिव्य अलौकिक समर्पण समारोह में मुख्य कार्यक्रम आयोजित किया गया। समारोह में देशभर से आए लोगों को खाने में स्पेशल पनीर, हलुवा आदि का ब्रह्माभोजन कराया गया।
शिव की शक्ति बनकर सदा जीवन में आगे बढ़ते रहें-
समारोह में संयुक्त मुख्य प्रशासिका राजयोगिनी बीके मुन्नी दीदी ने कहा कि आज एक साथ इतनी बहनों का समर्पण देखकर मन खुशी से झूम रहा है। ये बेटियां बहुत भाग्यशाली हैं। महासचिव बीके निर्वैर भाई ने कहा कि सभी बहनों जीवन में अपने कर्मों से समाज में नए उदाहरण प्रस्तुत करें। अतिरिक्त महासचिव बीके बृजमोहन भाई ने कहा कि अपना जीवन परमात्मा पर अर्पण करने से बड़ा भाग्य कुछ नहीं हो सकता है। कार्यकारी सचिव बीके मृत्युंजय भाई ने कहा कि आपकी वाणी दुनिया के कल्याण का माध्यम बने। आपका एक-एक कर्म उदाहरणमूर्त हो। धरती से अंधकार मिटाने और ज्ञान प्रकाश फैलाने में शिव की शक्ति, भुुजा बनकर, साथी बनकर सदा जीवन में आगे बढ़ते रहें। मधुर वाणी ग्रुप के कलाकारों ने गीत प्रस्तुत किया।
कटक के कलाकारों ने दी एक से बढक़र एक प्रस्तुति-
समारोह में विशेष रूप से कटक से आए कलाकारों ने एक से बढक़र एक प्रस्तुति दी। खासतौर पर एंजल ग्रुप की आठ साल की बालिकाओं की प्रस्तुतियों ने सभी का मन मोह लिया।
एशिया के सबसे बड़े हॉल में हुआ समारोह-
समर्पण समारोह एशिया महादीप के सबसे बड़े बिना पिलन के डायमंड हॉल में आयोजित किया गया। यह हॉल एक लाख वर्गफीट में बना हुआ है। समारोह के लिए खासतौर पर सौ फीट लंबी और 40 फीट चौड़ी स्टेज तैयार की गई। इसमें समर्पित होने वालीं वरिष्ठ बहनों को स्टेज पर बैठाया गया, वहीं छोटी बहनों को सामने बैठाया गया।
चुनरी, माला पहनकर दुल्हन की तरह सजीं बहनें-
सभी 450 बहनें श्वेत वस्त्रों में चुनरी ओढक़र, माला पहनकर, बिंदी के साथ सज-धजकर पहुंचीं। जहां एक-एक बहनों ने अपने परिजन के साथ मुलाकात कर फोटो निकलवाई। साथ ही खुशी में डांस किया।
पांच साल सेवाकेंद्र पर रहने के बाद होता है चयन-
राजयोग मेडिटेशन कोर्स के बाद छह माह तक नियमित सत्संग, राजयोग ध्यान के अभ्यास के बाद सेंटर इंचार्ज दीदी द्वारा सेवाकेंद्र पर रहने की अनुमति दी जाती है। तीन साल तक सेवाकेंद्र पर रहने के दौरान संस्थान की दिनचर्या और गाइडलाइन का पालन करना जरूरी होता है। बहनों का आचरण, चाल-चलन, स्वभाव, व्यवहार देखा-परखा जाता है। इसके बाद ट्रॉयल के लिए मुख्यालय शांतिवन के लिए माता-पिता का अनुमति पत्र भेजा जाता है। ट्रॉयल पीरियड के दो साल बाद फिर ब्रह्माकुमारी के रूप में समर्पण की प्रक्रिया पूरी की जाती है। समर्पण के बाद फिर बहनें पूर्ण रूप से सेवाकेंद्र के माध्यम से ब्रह्माकुमारी के रूप में अपनी सेवाएं देती हैं।
अब तक 50 हजार ब्रह्माकुमारी बहनें विश्वभर में समर्पित-
वर्ष 1937 में ब्रह्माकुमारीज की नींव रखी गई। तब से लेकर अब तक 87 वर्ष में संस्थान में 50 हजार ब्रह्माकुमारी बहनों ने अपनी जीवन मानव सेवा के लिए समर्पित किया है। ये बहनें तन-मन-धन के साथ समाजसेवा, विश्व कल्याण और सामाजिक, आध्यात्मिक सशक्तिीकरण के कार्य में जुटी हैं। संस्थान द्वारा संपूर्ण भारतवर्ष को 12 विभिन्न जोन में बांटा गया है। इन जोन में एक मुख्य निदेशिका और फिर स्थानीय सेवाकेंद्र में जिला स्तर पर मुख्य निदेशिका होती हैं जो अपने-अपने जिलों में सेवाएं देती हैं। शुरुआत में नई बहनें बड़ी बहनों के मार्गदर्शन में रहती हैं फिर उन्हें नया सेवाकेंद्र खोलने की अनुमति प्रदान की जाती है।
मुख्यालय में साल में एक बार होता है समर्पण समारोह-
ब्रह्माकुमारीज के मुख्यालय शांतिवन में साल एक बार ही बहनों का समर्पण समारोह आयोजित किया जाता है। इसके अलावा जोनल सेवाकेंद्रों, सबजोन सेवाकेंद्रों पर समय प्रति समय अलग से कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। जिनमें 11, 21, 51 बहनों का समर्पण किया जाता है। सभी जगह समर्पण के कार्यक्रम में एक ही प्रक्रिया अपनाई जाती है। जिसमें संस्थान के मुख्यालय से वरिष्ठ दीदी-दादियां शामिल होती हैं।
समर्पण के बाद अपने सेवास्थान पर रहेंगी बहनें-
जिस सेवा स्थान से यह बहनें आती हैं वहीं पर ही वह समर्पण होने के बाद अपनी सेवाएं देती हैं। ब्रह्माकुमारी बहनें के लिए विशेष शैक्षणिक योग्यता का नियम नहीं है। जो भी बहन संस्थान के नियमों का पूरी तरह से पांच साल तक पालन करती हैं तो वह समर्पित हो सकती हैं।
राजयोग की शिक्षा देना ही मुख्य सेवा-
संस्था की सेवा का मुख्य आधार राजयोग मेडिटेशन की शिक्षा देना है। इसके अलावा संस्था द्वारा बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ, महिला सशक्तीकरण, जल संरक्षण, पर्यावरण संरक्षण, जैविक-यौगिक खेती, नशामुक्त भारत अभियान, जेल में बंदी सुधार, युवा सशक्तीकरण, स्वच्छता अभियान, स्किल डवलपमेंट, पॉजीटिव थिंकिंग आदि सेवाएं सामाजिक कल्याण के लिए की जा रही हैं।
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ब्रह्माकुमारी बनकर सात फेरों के साथ सात संकल्प लिए-1. मैं दृढ़ संकल्प के साथ निश्चय पूर्वक यह कहती हूं कि सारे विश्व की आत्माओं के पिता कल्याणकारी परमात्मा शिव ज्योतिर्बिंदु स्वरूप हैं। वे वर्तमान समय हर कल्प के अनुसार इस धरा पर अवतरित होकर प्रजापिता ब्रह्मा के साकार माध्यम द्वारा गीता ज्ञान एवं राजयोग की शिक्षा द्वारा हम आत्माओं को पावन बना रहे हैं।
2. मुझे यह निश्चय है कि परमात्मा इस ज्ञान के द्वारा नई सतयुगी सृष्टि की स्थापना के लिए प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय कार्यरत है।
3. मैंने अपने स्व विवेक, स्व इच्छा और अनुभव के आधार पर यह निर्णय लिया है कि अब मैं अपना सारा जीवन परमात्मा के इस पुनीत कार्य में समर्पित कर सफल करुं।
4. आज शुक्रवार 30 जून 2023 को ब्रह्माकुमारीज की मुख्य प्रशासिका परमश्रद्धेय आदरणीय दादी रतनमोहिनी जी के पावन सानिध्य में आयोजित समारोह के इस सौभाग्यपूर्ण अवसर पर प्राणप्यारे अव्यक्त बापदादा एवं सर्व ब्राह्मण परिवार के समक्ष यह प्रतिज्ञा करती हूं कि मैं अपने दिल में सदा एक दिलाराम शिव बाबा को ही दिल में बसाऊंगी। सदा श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ शिवबाबा की श्रीमत पर पूर्णत: चलूंगी।
5. सदा शिवबाबा और उनके द्वारा रचित यज्ञ के प्रति आज्ञाकारी, ईमानदार और वफादार बनकर सच्चाई और दिल की सफाई के साथ चलूंगी। मन-वचन और कर्म से पवित्रता के व्रत का पालन करुंगी।
6. शिव बाबा मुझे जहां बिठाएं, जो खिलाएं, जो पहनाएं इस कथन को अपने जीवन का आधार बनाकर चलूंगी। सादगी को अपने जीवन का शृंगार बनाऊंगी।
7. ऐसा कोई कर्म नहीं करुंगी, जिससे लौकिक और अलौकिक परिवार का नाम बदनाम हो। सदा ब्राह्मण कुलदीपक बनकर ब्राह्मण कुल का नाम रोशन करुंगी।
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बेटियों के माता-पिता ने भी लिया संकल्प-
1. मैं अपनी लौकिक बच्ची को परमात्मा को समर्पित करती हूं।
2. सर्व के सुखदाता, विश्व के कल्याणकारी, सर्व के आधारमूर्त, उद्धारमूर्त, प्यारे मात-पिता बापदादा तथा निमित्त बनी हुईं रतनमोहिनी दादीजी हम अपनी कुमारी के लौकिक मात-पिता अच्छी तरह से इस ईश्वरीय कार्य को जानते हैं।
3. हमें बहुत खुशी है कि ऐसे विश्व परिवर्तन के श्रेष्ठ कार्य में हमारी पुत्री को सहयोगी बनने का सौभाग्य मिला।
4. हमारी लौकिक पुत्री सेवाकेंद्र में सेवारत है। उसका पवित्र, निर्मल, शांत और आनंदमय जीवन देखकर इन्हें इस ईश्वरीय कार्य अर्थ समर्पित करने की दिल से शुभ इच्छा उत्पन्न हुई है। सो आज समर्पण के शुभ दिन पर हम इस विशाल सुंदर और श्रेष्ठ कार्य के लिए अपनी इच्छा व प्यार से इन्हें समर्पित कर रहे हैं।
5. हमें यह भी पता है कि प्रेम तथा कायदे के संतुलन से स्वयं भगवान व विश्व के सर्व आत्माओं की दुआएं होती हैं। इस ईश्वरीय विश्व विद्यालय के भाई-बहनों के पवित्र, त्यागमय, सेवामय जीवन की श्रेष्ठ धारणा, पवित्रता के नियम को भी हम जानते हैं।
6. यदि इस नियम में पूर्ण रीति से मेरी बच्ची न चल सके व ईश्वरीय मर्यादाओं के विरुद्ध कोई कर्म करे तो इसके जीवन के प्रति हम संपूर्ण जिम्मेदार हैं। आप इसके जीवन के प्रति जो भी कदम उठाएंगी उसमें हम संपूर्ण सहमत रहेंगे।
7. अंत में हम यही कहेंगे कि भगवान के इस कार्य में हमारी बच्ची दिनोंदिन तन-मन से संपूर्ण सहयोगी बन अपना श्वांस, समय, मन, वचन, कर्म सफल करेंगी और अन्य का कराएंगी।