पानीपत,हरियाणा: ज्ञान मानसरोवर रिट्रीट सेंटर के दादी चंद्रमणि यूनिवर्सल पीस ऑडिटोरियम में 2 बहनें (बी.के. मोनिका, बी.के. दीपा, ) का समर्पण समारोह का आयोजन किया गया। इस अवसर पर ज्ञान मानसरोवर के तपस्या धाम में 108 दिन की योग तपस्या भट्टी का शुभारंभ किया गया। इस समर्पण समारोह में 1200 से अधिक भाई बहनों ने भाग लिया।
इस समर्पण समारोह की शोभा बड़ाने के लिए राजयोगिनी सुदेश दीदी, निर्देशिका, ब्रह्माकुमारीज़ यूरोप से मुख्य रूप से पधारी। इस शुभ अवसर पर ब्रह्माकुमारी राज बहन, शामली, ब्रह्माकुमारीज़ प्रेम बहन, करनाल, ब्रह्माकुमारी कमलेश बहन, रानिया, ब्रह्माकुमारी रमेश बहन, युमना नगर, एवं ब्रह्माकुमारी शैली बहन, अम्बाला से भी पधारी। ज्ञान मानसरोवर निदेशक बीके भारत भूषण, सर्कल इंचार्ज राजयोगिनी सरला दीदी और समर्पित होने वाली कन्याओं के साथ उनके मात-पिता एवं सगे सम्बन्धी भी इस अवसर पर उपस्थित रहे।
राजयोगिनी सुदेश दीदी जी, बी. के भारत भूषण, बी. के सरला दीदी जी, समर्पित होने वाली ब्रह्माकुमारी बहने एवं सभी मंचासीन ने मिलकर इस प्रभु समर्पण समारोह का शुभारंभ दीप प्रज्वलित कर के विधिवत तरीके से किया। राजयोगिनी सुदेश दीदी जी ने अपनी आशीर्वचन देते हुए कहा कि जीवन वही श्रेष्ठ है जो प्रभु के नाम समर्पित हो जाये। विश्व कल्याण के लिए इन कन्याओं ने जो अपना सर्वस्व आज समर्पित किया है इससे महान कार्य और कुछ भी नही हो सकता। समर्पित होने वाली बहनों प्रति विशेष शुभ राय देते हुए सुदेश दीदी ने कहा कि जीवन भर ट्रस्टी होकर रहना है।
ज्ञान मानसरोवर निदेशक बीके भारत भूषण ने कहा कि सच्चा समर्पण मैं और मेरे मन का समर्पण, सूक्ष्म विकारों का समर्पण, चिंताओं का समर्पण। हमेशा हमारी बुद्धि में यही रहे कि हमारा कुछ भी नहीं सब उस परमात्मा पिता का है। इस मौके पर राजयोगिनी सरला दीदी जी सर्कल इंचार्ज अपनी शुभकामनाएं रखे। और साथ-साथ सभी मेहमानों का शब्दों के माध्यम से आभार प्रकट किया। उन्होंने कहा अगर हम अपने समय व शक्ति को मानव की भलाई के कार्य में लगाएं तो हमारा जीवन आनन्द से भरपूर हो सकता है।
कार्यक्रम में मंच संचालन बी.के. सुनीता बहन, हुड्डा पानीपत ने किया और कुमारी स्वेता ने स्वागत नृत्य प्रस्तुत किया। इस दौरान समर्पित होने वाली बीके बहनों ने सुनहरे पीले रंग की चुन्नी ओढ़ रखी थी, बहनों ने पूरी सभा के बीच मे ही ब्रह्माकुमारीज़ की धारणाओं को जीवन मे अपनाने का प्रतिज्ञा पत्र भी पढा। साथ – साथ समर्पित होने वाली बहनों के मात-पिता ने खुद अपनी कन्या का हाथ सुदेश दीदी जी के हाथों में सौंप दिया। फिर सुदेश दीदी ने परमात्मा पिता के प्रतीक चिन्ह वाली अगूंठी दोनों बहनों को पहनाई।