भय और चिंता को समाप्त कर रिश्तो को मजबूत बनाएं
इंदौर, मध्य प्रदेश। आज मनुष्य भविष्य की अनेक प्रकार की अनिश्चितता को लेकर भयभीत है, चाहे स्वयं के प्रति या अपने संबंधियों के भविष्य को लेकर माता-पिता बाल्यकल से ही बच्चों में भय के अंदर भय बिठा देते हैं। अकेले बाहर नहीं जाना, अंधेरे में नहीं जाना, पानी में नहीं जाना, डूब जाएगा आदि आदि। पढ़ाई में नंबर अधिक लाने का दबाव डालते हैं, अपनी इच्छाओं अपेक्षाओं का बोझ बच्चों के ऊपर रखते हैं। तुम्हें इतना नंबर लाना ही होगा। इससे बच्चों के बालमन पर गलत प्रभाव पड़ता है। इससे बच्चों का मन कमजोर होने लगता है। वे माता-पिता से दूर भागने लगते हैं। इसके बदले माता-पिता बच्चों की बौद्धिक क्षमता को पहचान कर जीवन में आगे बढ़ने का सही मार्गदर्शन देवें।बच्चों के अंदर अच्छे संस्कार डालने के लिए मेहनत करें। बच्चों को किसी कार्य को नहीं करने के पीछे उसकी सत्यता को समझाएं।
उक्त विचार ज्ञानशिखर ओमशांति भवन में चल रहे पांच दिवसीय शिविर ‘आध्यात्मिकता के पथ पर जीवन उत्सव’ के अंतर्गत मुंबई से पधारे अंतरराष्ट्रीय मोटिवेशनल स्पीकर प्रोफेसर ई वी गिरीश ने उच्चारे।
आगे आपने बताया कि जो कभी बीमारी, कभी अहित होने की शंका से भयभीत है। उसे सबसे बड़ा भय मृत्यु कब है होता है। अतः सभी चिताओं और भय से मुक्त होने के लिए जो भी परिस्थितियाँ आती हैं उसे स्वीकार कर लें। स्वीकार करने से मन की शक्ति बढ़ जाती है। परिस्थिति के साथ-साथ आपसी संबंधों में भी एक दूसरे को स्वीकार कर लें। मोह के बदले एक दूसरे से शुद्ध आत्मिक प्रेम रखें। हर एक के अंदर गुण देखे। ईर्ष्या- द्वेष की जगह सबको आगे बढ़ाने की भावना रखें। आध्यात्मिकता हमें स्वीकार करने की शक्ति देता है।
कल संध्याकालीन सत्र में शिविर के प्रथम दिन दीप प्रज्वलंकर शुभारंभ किया गया जिसमें नगर निगम के एडिशनल कमिश्नर माननीय अभय राजनगांवकर एवं एडिशनल कमिश्नर तथा सिटी ट्रांसपोर्ट के सीईओ मनोज पाठक ने दीप प्रज्वलित कर अपनी शुभ कामनाएं देते हुए कहा कि यहां आकर हमें महसूस हो रहा है कि शहर को स्वच्छ बनाने के साथ-साथ हमें अपने मन को भी स्वच्छ बनाना जरूरी है क्षेत्रीय निदेशिका हेमलता दीदी ने अपने आशीर्वचन दिए।