आगरा: अंतर्राष्ट्रीय नृत्य दिवस पर “कला संवाद”आयोजित

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आगरा, उत्तर प्रदेश: अंतर्राष्ट्रीय नृत्य दिवस पर नृत्य ज्योति कथक केंद्र एवं ब्रह्माकुमारीज के कला व संस्कृति प्रभाग द्वारा ईदगाह स्थित प्रभु मिलन केंद्र प्रांगण में आयोजित “कला संवाद” में संगीत, फिल्म, कला,थिएटर, लेखन,पत्रकारिता,आध्यात्मिक क्षेत्र से जुड़े विषय विशेषज्ञ मनीषी जनों ने  बढ़ते सांस्कृतिक प्रदूषण पर गंभीर चिंता जताई । संवाद में उपस्थित केंद्र प्रभारी बीके अश्विना  बहन ने कहा कि हमें स्वयं ही देखना होगा कि हमारे और हमारी संस्कृति के संरक्षण के लिए क्या जरूरी है क्या श्रेष्ठ है। और क्या अनावश्यक है। हमें अपनी प्रकृति और संस्कृति दोनों को ही बचाना है।  स्वयं को आध्यात्मिकता  से जोड़कर ही इनको बचाया जा सकता है।

विषय प्रवर्तन करते हुए नृत्य ज्योति कथक केंद्र की संचालिका  ज्योति खंडेलवाल ने कहा कि भारत में पारंपरिक शास्त्रीय नृत्य गायन व संगीत परंपराएं  लंबे समय से अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और गहन कलात्मक अभिव्यक्तियों के लिए पूजनीय रही है। लेकिन हाल के वर्षों में आधुनिक लोकप्रिय और समकालीन रुझानों ने अपने प्रभाव से इन पारंपरिक कला रूपों को प्रदूषित कर दिया है।

राजा मानसिंह तोमर संगीत एवं कला विश्व विद्यालय के कुलपति एवं विभागाध्यक्ष प्रो. लवली शर्मा ने कहा कि संगीत  आत्मिक सुख और शांति के लिए है।इस पुरानी विरासत में आधुनिक परिवर्तन  वहां तक ठीक है जब तक वे हमारे प्राचीन स्वरूप को नष्ट नहीं करते। फ़िल्म लेखक, निर्देशक, भ्राता सूरज तिवारी ने कहा कि संगीत प्रदूषण बाजार वाद का परिणाम है और पाश्चात उच्च ध्वनि वाद्य यंत्रों के कारण है।

वरिष्ठ सांस्कृतिक पत्रकार डॉ महेश धाकड़ ने कहा कि मंदिर में प्रार्थना ,मस्जिद की अजान चर्च की प्रेयर और गुरुद्वारों का ग्रंथ पाठ गीत,संगीत का पुरातन रूप था जो आधुनिक संगीत में पिछड़ गया है। साहित्यकार बहन श्रुति सिन्हा ने कहा कि आज महिला संगीत व उत्सवों के दौरान ढोलक मंजीरे विलुप्त हो गए हैं ।
पर्यावरण विद और वरिष्ठ पत्रकार ब्रिज खंडेलवाल ने रिवर कनेक्ट अभियान के बारे में बताया।

वरिष्ठ रंग कर्मी अनिल जैन ने कहा कि आज भी रंगमंच के जरिये प्राचीन विरासत भगत नाट्य शैली के माध्यम से युवाओं को जोड़ने का कार्य चल रहा है और यह एक सशक्त माध्यम है। कथक केंद्र के प्रतिभाशाली कलाकारों ने यमुना नदी की दुर्दशा पर एक हृदय स्पर्शी प्रस्तुति दी।

आयोजन में कहा गया कि युवा पीढ़ी को आकर्षित करने और लगातार विकसित हो रहे मनोरंजन उद्योग में प्रासंगिक बने रहने के दबाव के कारण पारंपरिक और आधुनिक शैलियों के बीच की सीमाएं हल्की हो गयी हैं।किसी भी कला के  विकास के लिए नवाचार व प्रयोग आवश्यक है।परंतु अंतर्निहित परम्पराओं की उचित समझ या सम्मान के बिना आधुनिक प्रभा वों को शास्त्रीय प्रदर्शनों में शामिल कर देना भी उचित नहीं है।

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