मोहाली :ब्रह्माकुमारीज़ ने जगदम्बा-सरस्वती का 59वां स्मृति दिवस मनाया

0
89

मां जगदम्बा को श्रद्वांजली हेतू विश्व में शांति, प्रेम व सद्भावना का बीजारोपण करें-बी.के.प्रेमलता

मोहाली, पंजाब: ब्रह्माकुमारीज़ की अंतरराष्ट्रीय संस्था ने आज यहां सुख शांति भवन फेज़ 7 में संस्था की प्रथम प्रशासनिक प्रमुख परम आदरणीय परमपूज्य देवी जगदम्बा-सरस्वती जी का 59वां स्मृति दिवस बहुत ही श्रद्वा, स्नेह व उमंग-उत्साह से मनाया जिसमें लगभग 360 श्रद्वालु शामिल हुए जिन्होंने अपने श्रद्वासुमन अर्पित किये ।
इस अवसर पर सार्वजनिक सभा भी हुई जिसमें ब्रह्माकुमारीज़ के मोहाली-रोपड़ क्षेत्र के राजयोग केंद्रों की संचालिका ब्रह्माकुमारी प्रेमलता व सह-संचालिका बी.के.रमा बहन जी ने मातेश्वरी जगदम्बा जी के जीवन सबंधी अनेक घटनाओं, शिक्षाओं व प्रेरणाओं का विस्तार से वर्णन किया । इस अवसर पर रोटरी क्लब मोहाली के प्रधान श्री के.के.सेठ, स्टेट बैंक आफ इंडिया के मुख्य प्रबंधक श्री विपिन अग्रवाल, बेवरली ऐस्टेट के मालिक श्री मनमोहन आदि ने भी अपने श्रद्वासुमन अर्पित किये । ब्रह्माकुमारी प्रेमलता बहन जी ने जगदम्बा-मां को त्याग, तपस्या व सेवा की त्रिवेणी बताया और कहा कि उन्होंने समूची मानवता के कल्याण के लिए अपना जीवन समर्पित कर उदाहरण प्रस्तुत किया कि कैसे नारी अपने निजी सुखों को त्याग कर मानवीय गुणों के विकास में अग्रिम भूमिका निभा सकती है । उनके सम्पर्क में आने वाले नर-नारी छल -कपट, झूठ-फरेब, क्रोध-अशांति, दुर्गुणों, परचिंतन, चिंताओं, नशों व तनाव से मुक्त हो विश्व कल्याण में सहयोगी बन जाते थे । उन्होंने आगे कहा कि मां-सरस्वती में आत्मिक शक्ति, योगबल, दिव्यता, पवित्रता व आध्यात्मिकता की चुम्बकीय ताकत थी जो लोगों को विकारों व विकर्मों की तपन से बचाकर उन्हें देवत्व की ओर अग्रसर कर देती थी । अतः आओ हम जगदम्बा-मां के जीवन से शिक्षा धारण कर विश्व में शांति, प्रेम, सद्भावना, एकता, शुभ भावनाओं का बीजारोपण करें, यही उनके प्रति सच्ची श्रद्वांजली होगी । बी.के.रमा बहन जी ने इस अवसर पर जगदम्बा-मां की जीवनी पर प्रकाश डाला और कहा कि गौरव की बात है कि ओम राधे नाम की वह असाधारण कन्या पंजाब के अमृतसर में 1919 में जन्मी थी जिसने 17 वर्ष की अल्पायु में प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय में जीवन समर्पित कर समाज के सभी वर्गों के लोगों को बुराईयों, कमजोरियों व विकारों से बचने की प्रेरणा दी । वे कठिन परस्थितियों में भी सदा निश्चिंत, निडर व नम्रचित बनी रही । उन्होंने 45 वर्ष की आयु में 24 जून 1965 को अपनी भौतिक देह का त्याग किया तथा मानवता की सूक्ष्म सेवा में लीन हो गई । उन्होंने सदा शिक्षाएं दी कि श्वासों का कोई भरोसा नहीं इसलिए इन्हे सफल करो, कभी भी भूल को मत दोहराओ, बीती को बीती कर परमात्म स्मृति से पापों को दग्ध कर अपने संस्कारों को दिव्य, पवित्र व श्रेष्ठ बनाओ आदि आदि ।

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें