बोकाजान में सिमेंट कारपोरेशन ऑफइंडिया लिमेटेड में एक दिवसीय तनाव मुक्ति पर वरिष्ठ अधिकारियों के लिए सेमीनार
दीमापुर (नागालैंड): वर्तमान कि विभिन्न विपरीत परस्थियाही मन में तनाव पैदा करती है दिनरात ऐसी अनगिनत घटनाएँ, अवस्थाएँ एवं परिस्थितियाँ सामने आती रहती हैं, जो हमारे लिए अप्रिय ही नहीं असहनीय भी होती हैं। दिन-रात हमें ऐसे सवालों और ऐसी समस्याओं से जूझना पड़ता रहता है, जिनके कारण मन की शांति भंग हो जाती है और मानसिक संतुलन बिगड़ जाता है, हम परेशान या चिंतित हो उठते हैं। चिंता और परेशानी से भरी यही स्थिति मानसिक तनाव कहलाती है। आधुनिक जीवन में जैसे-जैसे जटिलताएँ बढ़ रही हैं, कठिनाइयाँ बढ़ रही हैं, समस्याएँ बढ़ रही हैं, वैसे-ही-वैसे समाज का एक बड़ा वर्ग तनाव जैसे मानसिक रोग से ग्रस्त होता जा रहा है। पुरुष, महिलाएँ या बच्चे, कोई भी वर्ग ऐसा नहीं है, जो किसी-न-किसी कारण मानसिक तनाव से पीड़ित न हो। आज नगरों और महानगरों के रहनेवाले ही नहीं, ग्रामीण अंचलों के निवासी भी समान रूप से इस रोग की चपेट में आ जाते हैं। शिक्षित ही नहीं, अशिक्षित भी। गरीब भी और अमीर भी। आज का समाज व्यापक स्तर पर तनावग्रस्त होता जा रहा है। हम कह सकते हैं कि जिस तरह प्राकृतिक वातावरण में प्रदूषण बढ़ रहा है, उसी तरह सामाजिक वातावरण को यह बढ़ता हुआ मानसिक तनाव प्रदूषित करता जा रहा है। इससे उत्पन्न शारीरिक रोगी की रोकथाम यदि शीघ्र ही नहीं की गई तो स्थिति भयावह हो सकती है। उक्त उदगार माउंट आबू राजस्थान से ब्रह्माकुमारीज के मुख्यालय से पधारे हुए बी के भगवान भाई जी ने कहा | वे बोकाजान में सिमेंट कारपोरेशन ऑफ इंडिया लिमेटेड में एक दिवसीय तनाव मुक्ति पर वरिष्ठ अधिकारियों के लिए सेमीनार में बोल रहे थे |
उन्होंने बताया कि मानसिक तनाव चाहे सामाजिक एवं सामूहिक कारणों से हो, विपरीत एवं अप्रिय परिस्थितियों के कारण हो अथवा किसी और कारण से, होता व्यक्तिगत ही है। यानी व्यक्ति को इससे अपने स्तर पर ही निबटना पड़ता है। वह या इससे मुक्त होने के उपाय खोजता है या विवश होकर स्वयं को इसके आगे समर्पित कर देता है। जो व्यक्ति मानसिक तनाव के आगे हथियार डाल देते हैं, दरअसल, वे अपने मन या अपने मस्तिष्क का रक्त उस जौंक को पीते रहने की अनुमति दे देते हैं, जो उसके जीवन को नरक बना देती है।
भगवान् भाई ने बताया कि मानसिक तनाव इन दिनों जिस तेज़ी से विकराल रूप धारण करता जा रहा है, तनावग्रस्त रोगियों की संख्या बढ़ती जा रही है। उनमें से बहुत से लोग मादक पदार्थ का सेवन कर सुख–शांति प्राप्त करने की चेष्टा करते हैं, जो अपने दुःखद परिणामों के कारण उन्हें और भी बुरी स्थिति में पहुँचा देते हैं। मादक औरषधियाँ तनाव दूर करने की सामायिक विधि तो हो सकती है; वे स्थायी इलाज नहीं हैं। फिर यह विधि अपने अंतिम परिणाम में पहले से भी अधिक घातक हो जाती है।
उन्होंने कहा कि ‘चिंता से चिता बेहतर’ इस छोटी–सी कहावत में गहरा सामूहिक अनुभव छिपा है।
आर के सरोज DGM जी ने कहा की तनावग्रस्त व्यक्ति महसूस तो ऐसा करता है कि वह केवल मानसिक रूप से परेशान है, किंतु उसकी यह मानसिक व्यग्रता धीरे-धीरे उसकी संपूर्ण शारीरिक व्यवस्था को विकृत कर देती है। कितनी ही शारीरिक बीमारियाँ केवल मानसिक तनाव, टेंशन, डिप्रेशन, अवसाद अथवा चिंता के कारण उत्पन्न हो जाती हैं। हम यहाँ एक-एक करके