ग्वालियर: रशिया के सेंट पीटसबर्ग केंद्र की निदेशिका बीके संतोष दीदी ने कराई तीन योग दिवसीय भट्टी

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रशिया के सेंट पीटर्सबर्ग केंद्र की निदेशिका बीके संतोष दीदी ने ग्वालियर लश्कर सेवाकेंद्र पर कराई तीन योग दिवसीय भट्टी

युवाओं, माताओं और युगलों  ने तीन दिवसीय योग भट्टी का लिया लाभ  

विशेष बनने के लिए दूसरों की कमियां न देख विशेषताएं देंखे – राजयोगिनी संतोष दीदी

ग्वालियर,मध्य प्रदेश। माधौगंज स्थित ब्रह्माकुमारीज प्रभु उपहार भवन में आयोजित तीन दिवसीय योग भट्टी में प्रथम दिवस पर केंद्र प्रभारी बीके आदर्श दीदी ने सभी का स्वागत अभिनन्दन किया और सभी को ध्यान साधना शिविर के उद्देश्य से अवगत कराते हुए कहा कि इस तरह के ध्यान शिविर हमारे जीवन में उन्नति की सीढ़ी बनते है। यह हमारा सौभाग्य है कि आदरणीय दीदी जी हमारे निमंत्रण पर इतनी दूर से हम सबके बीच पधारी है। अतः हम सबको इस अवसर का लाभ लेते हुए स्वयं को आपके अनुभवों से भरपूर करना है।

तत्पश्चात रशिया से पधारी राजयोगिनी बीके संतोष दीदी जी का ने उपस्थित जनसमूह को संबोधित करते हुए राजयोग ध्यान के महत्व और इसके माध्यम से शांति और आत्मिक सशक्तिकरण के तरीकों पर प्रकाश डाला।

उन्होंने कहा कि राजयोग ध्यान न केवल हमारे मन को शांति प्रदान करता है, बल्कि हमें जीवन की चुनौतियों का सामना करने की शक्ति भी देता है ।

उन्होंने कहा कि जब हम देह अभिमान में होते है तो हमारे जीवन में अनेकानेक समस्याएं आती है। लेकिन जब स्वयं के वास्विक स्वरुप आत्मा की स्मृति रखते है तो हम जीवन में ख़ुशी का अनुभव करते है तथा समस्याओं पर भी विजय प्राप्त कर सकते है।

जीवन में ज्यादातर दुःखों का कारण मेरापन है। हम अनेक प्रकार भौतिक साधनों को अपना मानकर चलते है जबकि यह सब अस्थायी है। आपके पास जो कुछ भी है सब ईश्वर का दिया हुआ है इसलिए स्वयं को निमित्त मात्र समझने से दुखों को समाप्त कर सकते हैं।

हम सभी आत्माएं परमधाम निवासी हैं। और परम पिता परमात्मा की संतान है यह स्मृति अवश्य रखें। इस धरती पर पार्ट प्ले करने के लिए आए हुए हैं, यदि यह स्मृति रखते है तो हम दूसरों के पार्ट से प्रभावित हुए बिना अपने पार्ट को बेहतर तरीके से प्ले कर सकते है।

आत्मा ने इस संसार में अनेक बार जन्म लिया अनेक हिसाब किताब कि परते उस पर चढ़ी हुयी है इसकी बजह से जीवन में उतार चढाव आते है। लेकिन इनसे घबराना नहीं चाहिए परमात्मा की याद यह सब ठीक करने में हमें बहुत मदद करती है। जिस प्रकार से हीरा अगर मैला हो जाए तो उसे फेंका नहीं जाता अपितु उसे साफ कर पुनः इस्तेमाल किया जाता है। उन्होंने कहा कि परमात्मा ने इस धरा को स्वर्ग बनाया था। हम सबको मिलकर आपने जीवन से बुराइयों को त्याग कर दिव्य गुणों को धारण कर अपने जीवन को सुंदर और धरती को स्वर्ग बनाना है। और यह तभी संभव है जब हम स्व परिवर्तन करेंगे।

वर्तमान समय के हिसाब से हमें कुछ बातों पर अवश्य ध्यान देना चाहिए-

– हमें स्वयं को चेक कर परिवर्तन करना हैं दूसरों को नहीं देखना हैं।

– घर में या अपने कार्यस्थल पर रहते हुए भी हमें अपने सभी कार्य समयानुसार करना है।

– बेहतर नींद के लिए रात को सोते समय मोबाइल का उपयोग नहीं करना है,

 –  अपने दैनिक कार्यों में ईश्वर कि याद को शामिल करना है, जिससे सभी कार्य सहज हो जायेंगे।

– अपने व्यवहार एवं बोलचाल को स्नेहयुक्त और मधुर बनाने का हर संभव प्रयास करना है।

– स्वयं को इर्ष्या, द्वेष घृणा आदि नकारात्मक भावों से ऊपर उठ एक दूसरे को आगे बढाने का प्रयास करना है।

– दूसरों की कमी कमजोरी न देखते हुए एक दूसरे कि विशेषता देखना और वर्णन करना चाहिए जिससे वह विशेषताएं आपके जीवन का हिस्सा बन जाएँगी।

इसके साथ ही उन्होंने सभी को राजयोग कि गहन अनुभूति कराई।

द्वितीय दिवस  पर संतोष दीदी ने युवाओं को दिए सफलता के मंत्र

ग्वालियर: राजयोग सेंटर प्रभु उपहार भवन माधौगंज में  पर भारत का भविष्य कहे जाने वाले और तन मन कि एनेर्जी से भरपूर हमारे  युवा भाई बहनों को निमंत्रण है और आप सोचेंगे कि हमें ही क्यों निमंत्रण मिला तो उसका भी कारण है क्यों कि आपको तो पता है कि यह विद्यालय है हम खुद भी स्टूडेंट्स है हम कोई अपने को ऐसे टीचर्स समझकर आपके सामने नहीं है हम तो खुद भी स्टूडेंट्स है। कहते है लाइफ इस लर्निंग प्रोसेस, हमेशा अपने को विद्यार्थी समझो तो बहुत कुछ सीख सकते है। उक्त बात रशिया के सेंट पीटर्सबर्ग केंद्र की निदेशिका राजयोगिनी बी के संतोष दीदी ने युवाओं को संबोधित करते हुए कही।

उन्होंने आगे सफलता को परिभाषित करते हुए कहा कि सफलता का मंत्र है क्या कौन सी बातें ऐसी होती है, जिनको हम समझ जाएँ तो कभी भी असफलता का मुंह नहीं देखना पड़ेगा। तो सबसे पहले तो हम इसकी परिभाषा को अच्छी तरह से समझे और किस प्रकार से यह हमारे जीवन में आती है राजयोग पढ़ाई में मुख्य रूप से दो बाते हमें परमात्मा ने समझाई  है। पहली बात कि अगर कोई भी कर्म में हमारे संकल्प की एनर्जी है वो अगर डायलूटेड है इसका मतलब उसमें प्लस माइनस अर्थात निगेटिव एनर्जी भी है, पॉजिटिव एनर्जी भी है। होगा या नहीं होगा, पता नहीं ठीक कर रहा हूँ या नहीं कर रहा हूँ , पता नहीं लोग मानेगे या नहीं मानेगे,  पता नहीं इसका होगा क्या आखिर मेरी जॉब लगेगी या नहीं लगेगी, पेमेंट मिलेगी या नहीं मिलेगी, पास होऊंगा या नहीं होउंगा। तो यह निगेटिव एनेर्जी है। हम मेहनत भी कर रहे है लेकिन साथ साथ हम ऐसा भी सोच रहे है तो ऐसे मन कि स्थिति जो होती है तो उसमें सफलता कि गारंटी नहीं है। तो पहला पहला मंत्र है कि हमें अपनी किसी भी निर्णय रुपी कर्म के बीज को अपने शुद्ध संकल्पों से शुभ भावना से अपने लिए उसको पानी देना है सींचना है किसी भी प्रकार से हमें डाइल्यूट नहीं करना है। अपने उमंग और उत्साह को और दूसरा जब भी हम कोई काम करते हैं आज जो हमारा लेसन था कि उसके अंदर में कितना हम डिटैच रहे, आब्जर्वर रहे। जैसे माली होता है बो बीज बोता है, कितना मेहनत करता है, डेली सींचता है। उसको भी इच्छा है कि गार्डन अच्छा बन जाए फूल आ जाए, फल आ जाए लेकिन पानी भी देता है और उसके साथ साथ देखता भी है कि कीड़े न खा जाए लेकिन फिर जब बाग तैयार हो जाता है तो फिर वो प्रकृति के उपर छोड़ता है। अब प्रकृति कुछ भी उसको देगी उससे डिटैच होगा। क्योंकि उसको पता है मैने अपनी मेहनत की जो मेरे हाथ में था तो ये बहुत बड़ा मंत्र है सफलता का की कहाँ  पर हमें इन्वोल्व होना है। कहाँ पर हमें अपनी मेहनत करनी है। कहाँ पर हमको डिटैच होना है। हम डिटैच होने की जगह पर या जो चीज हमारे हाथ में नहीं है हम उसके लिए इतना कुछ सोचते रहते है और फिर मेहनत करने के समय हमारे पास उतना उमंग उत्साह नहीं रहता न्यारा और प्यारा ये दो शब्द है परमात्मा के।  कोई भी काम करें तो हम अपनी इस स्टेज को मेंटेन करें अगर आप इन बातों को याद रखेंगे तो आप जीवन में सफल भी होंगे और लाभ भी होगा।

तृतीय दिवस पर माताओं को किया संबोधित

– लगन में मगन रहने का आधार – बैलेंस – राजयोगिनी बीके संतोष दीदी

– जीवन में कलाओं का विकास करना ही जीवन को अच्छा बनाना है – संतोष दीदी

– ईश्वर की याद में या लगन में मगन वही रह सकता है जिसके जीवन में बैलेंस हो।

आध्यात्मिकता से हमारे जीवन में बैलेंस आता है, और हमारा व्यवहार भी अच्छा हो जाता है।

आध्यात्मिकता से कार्य बनते है बिगड़ते नहीं। यदि आप आध्यात्मिकता को जीवन में अपनाते है तो हर कार्य आपका व्यवस्थित और सुंदर होगा। उक्त बात ब्रह्मा कुमारीज प्रभु उपहार भवन माधौगंज मे रशिया से पधारी राजयोगिनी बीके संतोष दीदी ने अपने प्रबचन के दौरान कही।

उन्होंने आगे कहा कि मनुष्य अपने जीवन में कलाओं का विकास करे तो जीवन का आनंद ले सकता है। कलाओं को बृद्धि करने का मूल मंत्र हर कर्म को सेवा समझना। कर्म कार्मेन्द्रियों से भोगने के लिए नहीं लेकिन हमारे कर्म का लक्ष्य दूसरों को सुख देना है।

जैसे- सोचने की कला, देखने की कला, बोलने की कला, सुनने की कला, लिखने की कला, खाना खाने की कला, व्यवहार की कला, समर्पण की कला आदि आदि। यह सब वह कलाएं है जो हमारे जीवन को बेहतर बनाने में हमारी मदद करती है। सामान्य रीति से कर्म करना और बेहतर ढंग से कर्म करना दौनों में अंतर है।

सोचने कि कला – सकारात्मक संकल्पों कि रचना करना ही सोचने कि कला है |

देखने की कला – हम अपनी आंखों से जब भी देंखें तो हमारी दृष्टि सदा रहने बाली अविनाशी चीज पर जाए अस्थायी और विनाशी चीजों पर हमारा ध्यान न हो यह देखने कि कला है।

बोलना की कला – बोलना एक कला भी है और बला भी है अगर आपके बोल मधुर और अच्छे है तो वह लोगों को आपके करीब ले आते है लेकिन यदि बोल ठीक नहीं है, बोल में कटुता है, स्वार्थ है। तो यह बोल हमारे और दूसरों के बीच में भाई भाई कि जगह गहरी खायी बना देते है।

हमेशा सकारात्मक और अच्छा सुनना सुनने कि कला को दर्शाता है।

लिखनें कि कला जिससे दिल भी खुल जाए बुद्धि भी खुल जाए।

खाने कि कला – उतना खाना है जितना शरीर को चाहिए और ईश्वर कि याद उसमें शामिल हो तो भोजन भी शक्ति देता है।

व्यवहार कि कला – कौन सा व्यवहार संबंध है और कौन सा व्यवहार बंधन है। यह आपको पता होना चाहिए तो जीवन का आनंद ले सकते है। बंधन होगा तो दुख होगा और संबंध होगा तो सुख मिलेगा।

अब हमें चैक करना है कि हमारा कर्म संबंध है या बंधन। हमेशा याद रहे हमारे कर्म से सेवा हो और यह तब हो सकता है जब हम स्वयं को ट्रस्टी समझें। और जो भी कर्म करते है वह प्रभु को समर्पित करना ही व्यवहार करने कि कला है इसी को व्यवहार और परमार्थ का बैलेंस भी कहते है।

कार्यक्रम में सैकड़ो की संख्या में श्रद्धालु उपस्थित थे।

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