रीवा, मध्य प्रदेश। राष्ट्रीय किसान दिवस का यह शुभ अवसर रीवा जिले के प्रतिष्ठित कृषि विज्ञान केंद्र में उत्साह, आशा, और प्रेरणा से भरपूर एक ऐतिहासिक आयोजन का गवाह बना। यह केंद्र, जो जवाहरलाल नेहरू कृषि अनुसंधान केंद्र, जबलपुर से मान्यता प्राप्त है, आज कृषि और आध्यात्मिकता के संगम का प्रतीक बन गया। कार्यक्रम में प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय की क्षेत्रीय संचालिका बीके निर्मला जी का मुख्य उद्बोधन शाश्वत यौगिक खेती के महत्व पर था, जिसने किसानों के दिलों में नई ऊर्जा और आत्मविश्वास का संचार किया।
इस कार्यक्रम का संचालन रीवा संभाग के कमिश्नर बीएस जामोद जी ने बड़ी गरिमा के साथ किया। “ओम शांति” से अपने अभिवादन की शुरुआत करते हुए उन्होंने ब्रह्माकुमारी संस्थान की कार्यशैली और बीके निर्मला जी के विचारों की सराहना की। उन्होंने भावनात्मक लहजे में कहा, “किसानों की मेहनत केवल अनाज नहीं उगाती, बल्कि देश का भविष्य भी संवारती है।” कमिश्नर जामोद जी ने शाश्वत यौगिक खेती को एक अभिनव पहल बताते हुए इसे कृषि क्षेत्र के लिए क्रांतिकारी कदम कहा।
कार्यक्रम के दौरान माउंट आबू स्थित ब्रह्माकुमारी मुख्यालय से बीके सुमंत भाई जी ने वर्चुअल माध्यम से अपने विचार साझा किए। उनके शब्दों ने किसानों के मन में नई चेतना जगाई। उन्होंने किसानों को समझाया कि प्रकृति के साथ सामंजस्य बिठाकर खेती करना न केवल उनकी फसलों के लिए, बल्कि उनके स्वयं के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के लिए भी लाभदायक है। इस दौरान कमिश्नर जामोद जी की आंखों में उत्साह और उम्मीद की झलक थी, जब उन्होंने कहा, “मैंने पहली बार शाश्वत यौगिक खेती का नाम सुना और यह मेरे लिए एक अद्भुत अनुभव है।”
कार्यक्रम में उपस्थित वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक जोशी जी ने भी बड़े प्रभावशाली ढंग से प्राकृतिक खेती की जरूरत पर बल दिया। उन्होंने मोटे अनाज, जैसे कोदो और कुटकी, की विशेषताओं को विस्तार से समझाया और कहा, “ये अनाज सिर्फ हमारी सेहत को नहीं, बल्कि हमारी संस्कृति और परंपरा को भी जीवित रखते हैं।” जोशी जी के शब्दों में किसानों के लिए गहरी चिंता और सम्मान झलक रहा था।
रीवा एग्रीकल्चर कॉलेज की डीन एसके त्रिपाठी जी ने अपने संबोधन में किसानों को हृदय से धन्यवाद दिया। उन्होंने कहा, “हम भले ही अनुसंधान और तकनीकों से कृषि क्षेत्र में क्रांति ला रहे हैं, लेकिन अगर हम अपने मूल्यों और परंपराओं को भूल गए, तो यह प्रगति अधूरी होगी।” उनकी इस बात ने सभा में मौजूद किसानों और वैज्ञानिकों को आत्मनिरीक्षण के लिए प्रेरित किया।
कार्यक्रम का सांस्कृतिक पक्ष भी उतना ही समृद्ध था। कवि बृजनाथ पांडे जी ने अपनी कविताओं से किसानों की मेहनत और उनके संघर्षों को इतनी भावनात्मक अभिव्यक्ति दी कि सभा में बैठे कई लोगों की आंखें नम हो गईं। वहीं, ब्रह्माकुमारी आश्रम की बीके ममता दीदी ने बघेली भाषा में अपनी प्रस्तुति से किसानों के दिलों को छू लिया। उन्होंने अपनी कविता में कहा, “मिट्टी में बसी है हमारी जिंदगी, और यह मिट्टी हमें जीवन देती है।” उनकी भावपूर्ण अभिव्यक्ति ने कार्यक्रम में एक खास रौनक ला दी।
कार्यक्रम का सबसे प्रभावशाली हिस्सा बीके निर्मला बहन जी का उद्बोधन था। उन्होंने न केवल किसानों की समस्याओं को समझा, बल्कि उनके समाधान के लिए ठोस और आध्यात्मिक दृष्टिकोण भी प्रस्तुत किया। उन्होंने कहा, “आज भौतिक इच्छाएं हमारी आत्मिक शांति को निगल रही हैं। राजयोग मेडिटेशन हमें आत्मा के मूल गुणों—शांति, प्रेम, पवित्रता और आनंद—से जोड़ने का माध्यम है।” उनकी आवाज में आत्मीयता और करुणा थी, जो सीधे किसानों के दिलों तक पहुंची।
निर्मला दीदी ने अपने संबोधन में इस बात पर जोर दिया कि हमें अपने कर्मों की गहराई को समझना चाहिए। उन्होंने किसानों को सरल शब्दों में समझाया कि “यदि हम प्रकृति और मानवता के साथ न्याय करेंगे, तो ईश्वर का आशीर्वाद हमारे जीवन में समृद्धि लाएगा।” उनके शब्दों ने सभा में बैठे हर व्यक्ति को आत्ममंथन के लिए मजबूर कर दिया।
कार्यक्रम का समापन किसानों के अनुभवों और विशेषज्ञों के साथ प्रश्नोत्तर सत्र के साथ हुआ। इस दौरान किसानों ने अपनी समस्याओं को साझा किया और उनके समाधान के लिए ठोस सुझाव प्राप्त किए। यह देखना दिलचस्प था कि किस तरह किसानों के चेहरों पर आशा और विश्वास लौट आया था।
कुल मिलाकर, यह कार्यक्रम न केवल किसानों के लिए एक नई दिशा तय करने वाला साबित हुआ, बल्कि मानवता के लिए एक प्रेरणा स्रोत भी बना। यह आयोजन सिर्फ कृषि और पर्यावरण तक सीमित नहीं था, बल्कि मानव जीवन के गहरे मर्म और आध्यात्मिकता के महत्व को भी उजागर करता था। कार्यक्रम ने किसानों को उनकी मेहनत और महत्व का एहसास कराया और उन्हें अपने भविष्य के प्रति आशावान बनाया।








