पिथोरा (छत्तीसगढ़):
राजयोग द्वारा आंतरिक शक्तियों व सद्गुणों को उभार कर व्यवहार में निखार लाया जा सकता है। इंद्रियों पर संयम रखने से मनोबल बढ़ता है। राजयोग के विशेष अभ्यास से सहनशीलता, नम्रता, एकाग्रता, शांति, धैर्यता व सद्गुणों का विकास होता है | दूसरों को देखकर चिंतित होना, नकारात्मकता से घिर जाना पतन की जड़ है। ऐसा व्यक्ति जीवन में कभी भी सुखी नहीं हो सकता। उक्त उद्गार प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय माउंट आबू से आए राजयोगी ब्रह्माकुमार भगवान भाई ने कहे। वे स्थानीय ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विद्यालय की शाखा में राजयोग द्वारा गृहस्थ में रहते भी खुशहाल जीवन विषय पर एक दिवशीय राजयोग साधना उद्घाटन कार्यक्रम में बोल रहे थे।
भगवान भाई ने कहा कि पर चिंतन करने वाला व दूसरों को देखने वाला हमेशा तनाव में रहता है, जबकि स्वचिंतन से आंतरिक कमजोरियों की जांच कर उसे बदला जा सकता है। उन्होंने राजयोग के अभ्यास से स्वचिंतन का महत्व समझाया। उन्होंने कहा कि हमारा जीवन हंस की तरह अंदर व बाहर से स्वच्छ रखने की आवश्यकता है। गुणवान व्यक्ति ही समाज की असली संपत्ति है। राजयोग की विधि समझाते हुए उन्होंने कहा कि खुद को देह न मानकर आत्मा मानें और परमात्मा को याद करते हुए सद्गुणों को धारण करें। ऐसा करने से काम, क्रोध, माया, मोह, लोभ, अहंकार, आलस्य, ईष्या, द्वेष पर जीत हासिल की जा सकती है।
भगवान भाई जी ने कहा कि ‘मैं’ मनुष्य के पतन का कारण है। इसकी बलि चढ़ाकर शरीर रूपी घर में आत्मा रूपी दीपक जलाओ। ईष्र्या रूपी कचरे को पॉजिटिव सोच से साफ करो तो आपके घरों में संपन्नता निवास करने लगेगी। उन्होंने कहा वर्तमान में हर व्यक्ति तनाव से ग्रसित है। इस कारण जीवन में कोई रस नहीं आता बल्कि दूसरों में बुराई नजर आती है। नकारात्मक सोच मनुष्य को गर्त में ले जाती है व सकारात्मक सोच परम आनंद के साथ परमात्मा से जोड़ती है।
भगवान भाई जी ने कहा कि सुकून भरे पलों से अंतर्मन को भरपूर करने के लिए एवं स्वयं को को सशक्त बनाने के लिए जीवन का हर क्षण सकारात्मक चिंतन से सींचे। उन्होंने कहा हम अपने घर की सफाई तो रोज करते हैं लेकिन अपने मन की सफाई पर ध्यान नहीं देते हैं। जिसमें मन अवाछंनीय खरपतवार रूपी अशुद्ध विचार उग आते हैं। इस कारण मनुष्य के जीवन में सुख की जगह दु:खों का सृजन होता है। शरीर पांच तत्वों से बना हुआ है और इसमें हम चैतन्य शक्ति के रूप में आत्म विराजमान है। हम आत्मा आपस में भाई-भाई हैं, अविनाशी हैं। इस विस्म्रति से जीवन में दु:ख और समस्याएं बढ़
भगवान भाई ने कहा स्वयं के गुणों की विशेषता, कला, धन और पद का अभिमान ही मनुष्य के पतन का कारण बनता है। अभिमान वाला व्यक्ति सदा तनाव में रहता है जिसके कारण वह अनेक गलतियां कर बैठता है।उन्होंने कहा वर्तमान समय में मनुष्य स्वयं के सच्चे अस्तित्व को भूलने के कारण सदा देह अभिमान में रहता है। देह अभिमान के कारण ही वह काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार, ईष्र्या, घृणा, नफरत आदि मनोविकारों के वश में हो गया है। उन्होंने बताया वास्तव में हम सभी का असली स्वरूप आत्मा है।
ब्रह्माकुमारी संस्था कि राजयोग शिक्षिका बी के तोमेश्वरी बहन जी ने कहा की जब मनुष्य के अंदर अभिमान पनपने लगता है तो उसके विचारों में नकारात्मकता आने लगती है। अभिमान करने से एकाग्रता भंग हो जाती है। जिस कारण तनाव पैदा हो जाता है। उन्होंने कहा वर्तमान परिस्थितियों का सामना करने के लिए आध्यात्मिक ज्ञान की बहुत आवश्यकता है। आध्यात्मिक ज्ञान से हम अपने व्यवहार में निखार ला सकते हैं।
स्थानीय ब्रह्माकुमारी राजयोग सेवाकेन्द्र की प्रभारी बी.के. पुष्पा बहन जी ने कहा कि ब्राह्मणों के जीवन में पवित्रता की शक्ति विषय पर संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि सुख, शांति और आनंद के लिए जरूरी है कि हमारे जीवन में पवित्रता हो। पवित्रता ही सुख-शांति की जननी है।पवित्रता से ही जीवन में सुख-शांति आएगी। जीवन आनंदमय बनेगा। परमात्मा कहते हैं कि मेरे बच्चों एक जन्म पवित्र रहो तो तुम्हें 21 जन्म पवित्र दुनिया का मालिक बना दूंगा। राजयोगी जीवन का पवित्रता आधार है। इससे ही हम योग की गहराई में जा सकते हैं। परमात्म दुआ का पात्र बन सकते हैं।
कार्यक्रम कि शुरुवात दीप प्रज्वलन से किया गया | सारे दिन जीवन में आनेवाली समस्याओं के विभिन्न विषय पर चर्चा किया| राजयोग साधना कर सभी सकारात्मक रहने का संकल्प किया |
कार्यक्रम में भानुराम दीवान , रामनाथ सुनावनी , बुधतम गजेन्द्र , सावित्री बहन भी उपस्थित थी |