”सफलता की चाबी दृढता” – बी. के. शैल, इंदौर(मध्य प्रदेश)

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जीवन एक नाटक है जहाँ हर व्यक्ति को चित्र विचित्र पार्ट खेलना होता है अगर इसे खेल की तरह खेला जाये तो जीवन आनंद से भर जाता है तथा सफलता कदम चूमती है ऐसे ही अपने जीवन का एक आध्याय आज सबके समक्ष रख रही हुँ ।         

 मैं जन्म से बौनी (छोटे कद की)रही हुँ प्राथमिक शिक्षा गांव के ही स्कूल मे ही हुई जो मेरे घर की ही पास थी गांव मे मिडिल स्कूल नही था मेरे माता पिता चिंतित रहते थे कि आगे की पढ़ाई कैसे करेगी समाधान खोजा गया और मुझे छोटी सायकल दिला दी गई क्योंकि उस समय ऑटो रिक्शा भी नही चलती थी सायकल से रोज तीन कि. मी. शहर पढ़ने जाने और घर लौटने में मेरे पैरों में दर्द हो जाता था थक जाती थी स्कूल से घर आने पर माँ पैर दबा देती थी पर मैंने हिम्मत नही हारी और पढ़ाई जारी रखी ऐसा करते समय गुजर गया पता भी नही चला मैं हायर सेकंडरी पास कर ली । अब बारी आयी कॉलेज की पढ़ाई जो पास के शहर में नही थी घर से 50कि. मी. दूर था पिता जी ने वहाँ (नयापारा शहर में ) एक किराया का कमरा लेकर दिया जहाँ मैं माँ के साथ रहकर पढ़ाई करने लगी । वहाँ से भी कॉलेज दूर था इसलिए पिताजी ने एक रिक्शा लगा दिया था।प्रथम वर्ष अच्छे नंबरों से पास हो गई हौसला बढ़ गया कि मैं घर बैठे पढ़ाई कर सकती हुँ और पढ़ाई  करते करते एम. ए.अच्छे नंबरों से पास कर ली। घर रायपुर से ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय का ब्रह्माकुमारी पाठशाला आदरणीय ब्र. कु. कमला दीदी के निर्देशन में हमारे घर में ही चलता था। मैं भी वहाँ 5वर्ष की उम्र से क्लास अटेंड करती थी और सभी नियमों का पालन करती थी इसी बीच रविशंकर विश्व विद्यालय से डिग्री  प्राप्त की और कुछ समय पी डब्लू डी में गौरमेन्ट सर्विस सहायक अधिकारी के रूप में की मुझे बचपन से इच्छा थी कि राजयोग शिक्षिका बनू वह इच्छा भी पूरी हो गई । जब इंदौर जोन के निर्देशक आदरणीय ओमप्रकाश भाई जी ने राजयोग शिक्षिका के रूप में प्रेमनगर क्षेत्र के प्रिकांको कालोनी सेंटर का कार्यभार दिया यहां रहकर मै ब्र.कु.हेमा दीदी, शशि दीदी और दामिनी दीदी के सानिध्य में ईश्वरीय पालना ले रही हुँ और यहां के भाई बहनों का भी बहुत प्यार और सहयोग मिला इस तरह अध्यात्म के पथ में चलते उमंग उत्साह बढ़ता गया । अभी कुछ समय पहले इंदौर में ही रहकर मैं मूल्य और अध्यात्म पर आधारित विषय पर पी जी डिप्लोमा कोर्स किया इसमें भी फस्ट डिवजन से पास हुई । हमारे अंदर दृढता है तो सफलता कदम चूमती है और यह शक्ति अध्यात्म से आती है।


मुश्किलें दिल के इरादे आजमाती हैं, हुस्न के परदे निगाहों से हटती हैं, 

हौसला मत हार गिर कर ओ मुसाफिर, ठोकरें इन्सान को चलाना सिखाती हैं
जब  टूटने  लगे  होसले  तो  बस  ये  याद  रखना

बिना मेहनत के हासिल  तख्तो  ताज  नहीं  होते, 

ढूंड लेना अंधेरों  में  मंजिल अपनी, जुगनू  कभी  रौशनी  के  मोहताज़  नहीं  होते।


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