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अलीराजपुर: सुखी हुआ स्वस्थ समाज के निर्माण में माताओ की भूमिका विषय पर कार्यशाला का आयोजन

अलीराजपुर,मध्य प्रदेश। विश्व मातृत्व दिवस के अवसर पर ब्रह्मकुमारी के द्वारा सुखी व स्वस्थ समाज के निर्माण में माताओ की भूमिका विषय पर कार्यशाला का आयोजन हुआ। कार्यक्रम के प्रारंभ में सेवाकेंद्र संचालीका ब्रह्माकुमारी माधुरी बहन ने बताया कि दुनिया मे मां ही जन्मदात्रि है और वही हर मनुष्य की प्रथम शिक्षक व गुरु भी है।मां के दिए संस्कार ही बच्चे का भविष्य निर्माण करते है।उन्होंने कहा कि अगर मां आध्यात्मिक व सकारात्मक सोच वाली होगी तो वही संस्कार उनके बच्चों में भी आएंगे,जिससे एक अच्छे समाज व एक अच्छे देश का निर्माण होगा। आज माताओ का  बच्चों में मोह होने के कारण  जो भोजन हम बनाते हैं वह भोजन में ताकत नहीं होने के कारण  परिवार , बच्चों  के मन पर गलत प्रभाव डाल रहा है।उन्होंने माताओ को राजयोग के अभ्यास की सलाह दी ताकि उनका व उनके बच्चों का आने वाला कल अच्छा हो सके। कार्यक्रम की मुख्य अतिथि अंजू सिसोदिया, प्रिंसिपल ने बताया की मां बच्चों की जननी है वह संस्कार देती है पालन पोषण करती है सुविधाओं का स्त्रोत होती है। मां बच्चों के लिए दुनिया होती है ।मां जिसमें संपूर्णता का संसार होती है  जिससे हम सर्व प्राप्ति कर सकते हैं। श्रीमती प्रार्थना शर्मा , वाइस प्रिंसिपल स्वामी विवेकानंद स्कूल ने बताया आज परिवार टूटते जा रहे हैं , कठोर संस्कार के कारण आज छोटी-छोटी बातों पर माताएं क्रोधित हो जाती है परिवार का विघटन हो जाता है। मां का कर्तव्य कि विवाह के बाद बेटी के जीवन में हस्तक्षेप नहीं करें, स्वतंत्र रीति से वह ससुराल में कार्य करती रहे। घर में अपने बेटे पर ज्यादा ध्यान दें। ब्रह्मा कुमार नारायण भाई ने बताया की एक अच्छे समाज के निर्माण में हमारे जैसे संकल्प होंगे, संकल्प से संस्कार बनते हैं संस्कारों से संस्कृति बनती है। हम अपने विचारों में सबके प्रति वसुदेव कुटुंबकम की भावना रखेंगे तो परिवार, समाज, देश  देवी संस्कृत वाला समाज बन जाएगा जहां सुख शांति आनंद के झरने बहने लगते हैं। हम अपने आत्मिक स्वधर्म धर्म में स्थित रहकर ही एक स्वस्थ समाज के निर्माण में अहम भूमिका निभा सकते हैं। समाज सेवी जूली बहन ने बताया मां का दर्जा कोई ले नहीं सकता है, मां बच्चे की संस्कार दात्री होती है। श्रीमती वंदना अग्रवाल समाज सेविका ने बताया कि राजयोग से हमारे संस्कार श्रेष्ठ बनते हैं जैसे हमारे संस्कार होंगे वैसी संस्कृति होगी। हमारी भावनाओं का प्रभाव अन्य आत्माओं पर अति शीघ्र पड़ता है। भावनाएं हमें सब के प्रति श्रेष्ठ रखेंगे तो इससे समाज का वातावरण शक्तिशाली पवित्र बनेगा इसीलिए परिवार को गृहस्थ आश्रम कहा जाता है।कार्यक्रम का संचालन ब्रह्माकुमारी ज्योति बहन ने किया।

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