दिव्यता की प्रकाशपुंज…दादी प्रकाशमणि

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प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय के विशाल आध्यात्मिक संगठन का सफल नेतृत्व करते हुए दादी प्रकाशमणि जी ने अपने जीवन काल में विश्व कल्याण का परचम लहराया। ऐसी महान विभूति का जन्म दीपावली के शुभ दिन पर सन् 1922 में अविभाजित भारत के सिंध प्रांत के हैदराबाद शहर में हुआ था। दादी जी बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि थे। उनका इस संस्था में एक स्नेहमयी, लगनशील, आज्ञाकारी कुमारी के रूप में पदार्पण हुआ। उस समय इस संस्था को ओम मंडली के नाम से जाना जाता था। उन्होंने 14 वर्ष की अल्पायु में ही अपना जीवन मानव कल्याण हेतु ईश्वर अर्पण कर दिया। आप परमात्म शिक्षा से प्रेरित होकर अपने जीवन में पवित्रता, शांति, प्रेम, सरलता, दिव्यता, नम्रता और निरहंकारिता जैसे विशेष गुणों को अपनाकर आध्यात्मिक प्रकाश को फैलाने और मानव को महान बनाने के कार्य में सफल रहे।
सन् 1969 में प्रजापिता ब्रह्मा ने अव्यक्त होने के पूर्व अध्यात्म की मशाल दादी जी को सौंप दी और स्वयं सम्पूर्ण बन गये। पिताश्री जी के अव्यक्त होने के पश्चात् दादी जी ने सम्पूर्ण मानवता की सेवा करते हुए एक विशाल आध्यात्मिक संगठन को साथ लेकर विश्व सेवा का अद्वितीय उदाहरण प्रस्तुत किया। उन्होंने विभिन्न जाति-वर्ग, रंग-भेद को दूर करने के लिए मानवता में विश्व बंधुत्व एवं वसुधैव कुटुम्बकम की भावना को जगाने के लिए सभी को आध्यात्मिक एवं प्रभु संतान की स्मृति दिलाई तथा परमात्म अवतरण के ईश्वरीय संदेश को अल्प समय में सम्पूर्ण विश्व के क्षितिज पर गुंजायमान किया।
आपके कुशल नेतृत्व के कारण संस्थान को संयुक्त राष्ट्र संघ में गैर सरकारी संस्था के तौर पर आर्थिक एवं सामाजिक परिषद् का परामर्शक सदस्य बनाया एवं युनिसेफ ने भी आपको अपने कार्यों में सहभागी बनाया। आपके नेतृत्व में संस्थान ने विश्व शांति हेतु कई रचनात्मक एवं सार्थक कार्यक्रम अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर आयोजित किये। आपकी उपलब्धियों को देखकर संयुक्त राष्ट्र संघ ने सन् 1987 में एक अंतर्राष्ट्रीय तथा पाँच राष्ट्रीय स्तर के क्रशांतिदूतञ्ज पुरस्कार प्रदान कर सम्मानित किया। कुशल प्रशासिका दादी जी के कत्र्तव्यों, गुणों, चरित्रों और महानताओं की झलक सर्व को अपनी ओर आकर्षित करती थी। ऐसी विशालहृदयी व्यक्तित्व की धनी थीं दादी प्रकाशमणि जी, जिनके दर्शन मात्र से ही दु:ख, अशांति एवं चिंताएं दूर हो जाती थीं। आपके सरल, हृदयस्पर्शी एवं पवित्र भाव के कारण आप सबके दिलों में अमर हैं।
ऐसी महान आत्मा को हमें भी नज़दीक से देखने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। हमने देखा, दादी जी न केवल संस्थान की हेड थीं किंतु वे एक ईश्वरीय परिवार की मुखिया भी थीं। दादी जी का हृदय इतना विशाल व सरल था कि वे विशाल परिवार के संगठन के मध्य पूछती थीं कि आप सभी दादी से संतुष्ट हो? ये दादी का कहना अपने आप में कितना निश्छल एवं आत्मविश्वास से भरपूर महसूस होता था। दादी जी इस विशाल ईश्वरीय परिवार में हरेक की हर आवश्यकताओं का न सिर्फ ख्याल रखती थीं बल्कि उसे त्वरित पूरा भी करती थीं।
दादी का स्नेहमयी प्रशासन एक अद्भुत मिसाल की तरह हमारे सामने है। हर कोई कहता, दादी मेरी है, हृदय से निकली हुई इन दुआओं की दादी धनी थीं। हर कोई बेझिझक उन्हें मिल सकता था और अपनी बात रख सकता था। दादी जी का प्रेमपूर्ण व्यवहार आज भी भूले नहीं भुलाया जा सकता। हमने तो दादी जी के नज़दीक रहकर उनकी खूबियों को न सिर्फ देखा बल्कि अपने अंदर भी उन जैसे कार्य करने का उमंग और उत्साह भरने की प्रेरणा ली। ऐसी महान विभूति दादी जी ने 25 अगस्त 2007 को अपने भौतिक देह का त्याग कर नई दुनिया के निर्माण हेतु अव्यक्त यात्रा को प्रस्थान किया। उन्हें सर्व ईश्वरीय परिवार एवं देश-विदेश की ओर से पंद्रहवें पुण्य स्मृति दिवस पर शत् शत् श्रद्धासुमन अर्पित।

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