मुख पृष्ठब्र.कु. अनुजअध्यात्म का सफर

अध्यात्म का सफर

हम सबकी जीवन यात्रा का मूल क्या है? सुख-शान्ति के साथ जीना। लेकिन भटकाव के कारण हम सभी यात्रा में कुछ न कुछ अड़चन अपने लिए पैदा करते हैं। शारीरिक ज़रूरतों को पूरा क रते-करते बहुत सारे विकारों की प्रवेशता हम सबके अन्दर होती चली जाती है और हम भारी होते चले जाते हैं।
अध्यात्म दो लाइनों का है। पहला हमें जो मिला वो परफेक्ट है और दूसरा हमारा यहां कुछ भी नहीं है। अध्यात्म का ये सफर आसान तो नहीं है लेकिन कठिन भी नहीं है। यात्रा निर्बाध चले उसके लिए सबसे पहले आवश्यकता है कि हमको सब कुछ गहराई से समझ आए। कहने का भाव ये है कि हमें पता है कि हमारा सब कुछ छूट जायेगा, यहीं रह जाएगा फिर भी हम पूरा दिन, पूरी रात जुटाने में लगे हैं। माना कि ये चीज़ें ज़रूरी हैं, आवश्यक हैं लेकिन ये जीवन तो नहीं है। अगर जीवन होता तो हमेशा आप जी रहे होते लेकिन आप तो जि़ंदगी काट रहे हैं।
अध्यात्म का पहला नियम है कि जो कुछ हम प्रयोग में लाते हैं उसके बाद उसको याद नहीं रखना होता, हां उसका ध्यान अवश्य रख सकते हैं लेकिन भूलना अति आवश्यक है। इसको ऐसे समझ सकते हैं कि चीज़ों से, लोगों से लगाव हमारे अंदर डर पैदा करता है और उस डर के कारण हम निर्णय नहीं ले पाते और झल्लाते रहते हैं, परेशान रहते हैं चीज़ों को लेकर। कहने का भाव कुछ भी छूटने क ा डर या भय हमसे भूलें करवाता है, टेंशन लाता है और यहीं से आध्यात्मिकता गुम हो जाती है। आप किसी चीज़ के मालिक नहीं बन सकते इस दुनिया में, आप सिर्फ इसका प्रयोग कर सकते हैं। इससे क्या होगा कि आप रहेंगे तो इसी दुनिया में लेकिन कोई किसी बात से परेशान नहीं होंगे। स्थूल और सूक्ष्म बातें ही हमारे सफर में बांधा है, जैसे मान लीजिए ये आर्टिकल मैंने लिखा और इस भाव से लिखा कि इसको खूब पढेंगे और इसका फायदा उठायेंगे। ये बात जो मैंने लिखी या बोली इसमे एक चिंता भी है, एक डर भी है कि पता नहीं सही लिखा है कि नहीं, इसकी चिंता और कौन कितना पंसद करेगा, नहीं करेगा इसका डर। तो लेख में वो भाव नहीं डाल पाऊंगा जो मुझे डालना चाहिए। ऐसे जि़ंदगी में जितने भी हम काम करते हैं सबमें डर, भय, चिंता लगी है इसलिए उस काम को हम कर तो रहे हैं लेकिन एन्जॉय नहीं कर रहे हैं।
तो डर लगना, चिंता लगना, वस्तु से, व्यक्ति से, चीज़ों से आपने जो काम किया उससे लगाव ही तो है तभी तो उस काम को परफेक्शन के साथ नहीं कर पा रहे हैं। और यही बांधा है, यही सबसे बड़ी रूकावट है। अगर इस सफर को आसान बनाना चाहते हैं तो चीज़ें इस दुनिया में हैं, कर रहे हैं, उसको करके भूलना ही अध्यात्म का प्रथम सोपान है इसलिए परमात्मा हमको रोज़ देह के संबंधी, देह के पदार्थों को भूलने के लिए कहते हैं। इसको भूले माना आध्यात्मिक हो गए। ऐसे इस सफर को जियो तो जीवन का सफर आसान लगेगा।

RELATED ARTICLES

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें

Most Popular

Recent Comments