मन की दवाई कहीं बाहर नहीं मिलती…

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प्यारा बाबा, अपने एक-एक बच्चे को देख कितना खुश होता है। हर एक के आगे बच्चों की कितनी महिमा करता है। अभी टाइम ज्य़ादा नहीं है तो बाबा चाहता क्या है? दुनिया की सेवा तो कर ही रहे हो लेकिन साथ में अभी साथियों की भी सेवा करनी है। कईयों की तबियत खराब होती है और मौसम ऐसा है जो तकलीफ हो ही जाती। बाबा भी ऐसे टाइम पर हर एक बच्चे को जो तकलीफ में हैं उन पर अपनी दृष्टि से ऐसे नज़र डालता है, जो देखते ही लगता है कि यह नज़र उसे निरोगी व निर्विघ्न बना रही है। बाबा की वह दृष्टि आपके सामने आ गई ना! आ गई! देख रहे हो! बाबा कितना प्यार से देख रहे हैं, बीमारी कैसी भी हो, ठीक होनी ही चाहिए, ऐसी भी कई बीमारियां हैं लेकिन बाबा की दवाई महापुण्यकारी है। दृष्टि देना बाबा का काम है लेकिन बाबा की दृष्टि का लाभ लेना यह हम बहन-भाइयों का काम है। बाबा के नयन उनके नयनों से मिलते हैं तो उसमें शक्ति आ जाती है।
आजकल सबको दया बहुत आती है क्योंकि पेशेन्ट बहुत बढ़ते जाते हैं। कोई भी बीमारी आये उसमें हमको अशरीरी बनना पड़े, बाबा ने हमें जो अशरीरी बनने का तरीका सिखाया है उससे हम शरीर से परे हो जाते हैं, लेकिन इसके लिए बहुत समय का अभ्यास चाहिए। नहीं तो दर्द के समय अशरीरी बन नहीं सकेंगे। शरीर खींचता है। इसके लिए डबल बटन दबाना पड़ता है, इसमें फुल पॉवर चाहिए। इसके लिए विशेष समय निकालकर योग में बैठना होता है। बीमारी में विशेष सबकी परीक्षा होती है। अगर योगी की आदत नहीं होगी तो उस समय योग लगेगा नहीं। कमज़ोरी की ऐसी-ऐसी बातें सामने आ जाती हैं, जो बुद्धि भटक जाती है। योग लगाना शुरू भी करते हैं, फिर थोड़े दिन के बाद चेक करते हैं तो कहते फायदा तो बहुत कम है। तो सबसे बड़ी दवाई कौन-सी है? जैसे उन दवाइयों में कॉमन लोगों के लिए तो इंजेक्शन है, थोड़े समय के लिए आराम मिल जाता है। लेकिन बहुत समय की बीमारी थका देती है। अगर कोई ऐसा डॉक्टर मिलता है जो उनकी मुश्किल को सहज कर देता है, लेकिन सबसे सहज इलाज योग ही है। कई बार पेशेन्ट को उन दवाईयों का इतना इन्टे्रस्ट आ जाता है जो वो छोडऩा ही मुश्किल है। तो अभी योग बल और मेडिकल बल दोनों ही चलाने की कोशिश करते हैं, लेकिन उससे कुछ समय तक ही फायदा लगता है। फिर दवाई का एक कोर्स पूरा करते हैं, थोड़े समय के बाद दूसरा कोर्स शुरू हो जाता है। फिर वह करते-करते थक जाते हैं इसीलिए बाबा कहता है सब रोगों का इलाज है आध्यात्मिकता, जिससे वो रोग ही नहीं आये। इसमें पहले कन्ट्रोल चाहिए अपने ऊपर, वह भी सिर्फ बाहर का कन्ट्रोल नहीं चाहिए। ज्ञान-योग का बल चाहिए। नियमों की भी पालना चाहिए, लेकिन कोई-कोई नियम लोगों को ऐसे लगता है कि हम पालन नहीं कर सकते हैं, ऐसे समझके छोड़ देते हैं। योग की ड्रिल करने के लिए, सवेरे उठना भी कईयों को मुश्किल लगता है, तो बीमारी खत्म कैसे होगी! मन की बीमारी की दवाई कोई बाहर नहीं है, वह तो मन के अन्दर ही है।

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