एकरस स्थिति बनाने की भिन्न-भिन्न युक्तियां

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एकरस स्थिति बनाने के लिए देखते हुए भी न देखो – यह अच्छी साधना है। कोई कहते देखते हुए भी न देखें फिर भी दिखाई पड़ता है। कितना इसका अभ्यास करने बिना एकरस स्थिति बन नहीं सकती। जिसे घर की याद होगी, उपराम वृत्ति होगी – वह देखते हुए भी नहीं देखेंगे। जिसके अन्दर पुरानी दुनिया से सन्यास की वृत्ति होगी, जो अन्दर से चेकिंग करते मेरा कहीं लगाव-झुकाव तो नहीं है, वह भी देखते हुए नहीं देखेंगे। किसी के तरफ रग जाना ही नुकसान है। बगुल के तरफ रग है तो वह खींचकर अपने समान बनायेगा। यदि दिखाई पड़ता है – यह हंस है और रग गई तो भी फरिश्ता नहीं बन सकते।
जब तक रीयल रुहानियत की खुशबू नहीं आई है तब तक एकरस स्थिति नहीं बन सकती। रुहानियत का रस सुख-शान्ति देने वाला रस है। रग है तो खुद भी उस रस में नहीं रह सकता है, जहाँ रग जाती है उसकी खींच होगी, बाबा से रुहानी रस खींच नहीं सकता। जैसे बहुत सूक्ष्म माँ के गर्भ में नाभी से बच्चे को खाना मिलता है। इतना सूक्ष्म सम्बन्ध जितना मात-पिता से है, उतना मात-पिता की सूक्ष्म शक्ति उसे जन्म देने व पालना देने में मदद करती है। जिन्हें वह रस मिला है उनकी कहाँ रग नहीं जा सकती। यह रस अनुभव किये बिना ईश्वरीय संतान का नशा नहीं चढ़ेगा। शूद्र से ब्राह्मण बन गये बहुत अच्छा, पर ब्राह्मणों में भी नम्बरवार हैं। ब्राह्मण एक धामा खाने वाले होते हैं, गृहस्थी के हाथ का भी खा लेते हैं। दूसरे पुष्करणी ब्राह्मण होते हैं कोई रास्ता दिखाने वाले पण्डे होते हैं, कोई जन्मपत्री वाचने वाले होते। कोई किसकी ग्रहचारी हटाने वाले, किसी की सगाई कराने वाले होते। जन्म-मृत्यु, शादी किसी भी कार्य में ब्राह्मण के बिना काम नहीं चल सकता। तो देखना है हम ब्राह्मण किस योग्य हैं। कोई करनीघोर भी होते हैं, मरे हुए का कपड़ा पहन लेंगे। जैसे भूखे ब्राह्मण हैं। जैसा ब्राह्मण होता है उसको वैसा ऑफर करते हैं। उसे वैसी दक्षिणा, वैसा खाना मिलता है। अपने को देखना है – हम ब्रह्मा मुख वंशावली हैं, सो मेरी स्थिति कैसी है। पुरानी दुनिया से मुख मोडऩे में भी जो युद्ध करते वो सच्चे ब्राह्मण नहीं हैं, जिसकी पूरी इंगेजमेन्ट नहीं हुई है वो दूसरे की शादी क्या करायेंगे।
बाबा का बच्चा बनते ही अपनी स्थिति पर ध्यान हो। हमारी स्थिति कोई हिला नहीं सकता, नीचे-ऊपर नहीं कर सकता। कितने भी विघ्न आयें, एक बल एक भरोसे के आधार पर स्थिति बहुत अच्छी बनती है। जिस आधार से स्थिति अच्छी बनती है वो लिस्ट अपने पास रखनी चाहिए। जिस बात का लक्ष्य रखकर अनुभव करना हो उसकी लिस्ट बनानी चाहिए। समझो मुझे एकरस स्थिति बनानी हो तो किस-किस बात की लिस्ट बनाऊं? पहले अन्तर्मुख रहूँ। बाह्यमुखता घड़ी-घड़ी खींचे नहीं फिर एकाग्रचित्त रहने की आदती बनने जायेंगे। एकाग्रचित्त बनने के लिए समेटने की शक्ति, समाने की शक्ति, सहनशक्ति चाहिए। कोई भी शक्ति की कमी है तो एकाग्रचित्त नहीं बन सकते। सहनशक्ति की कमी एकाग्रचित्त बनने नहीं देती। विस्तार से बोलने वाला, विस्तार से सोचने वाला एकाग्रचित्त नहीं बन सकता। समाने की शक्ति है तो मास्टर ज्ञान सागर बन सकते। एकाग्रचित्त बनने के लिए सहनशक्ति, समेटने की शक्ति, समाने की शक्ति ऐसी हो जो बीती तो बीती कर दे। पास्ट को पास्ट कर दे, फुलस्टॉप लगा दे। एकाग्र होकर बाबा को याद करना शुरू कर दे। कुछ भी हो रहा है – रिंचक मात्र भी हलचल न हो। क्या हुआ, कैसे हुआ, क्यों हुआ, यह न हो। फुलस्टॉप देने की जब तक आदत नहीं है तक तक एकाग्रचित्त नहीं बन सकते। एकाग्रचित्त नहीं बन सकते तो एकरस स्थिति दूर हो जाती है। एकाग्रचित्त रहने वाला बाबा से गुप्त शक्ति ले सकता है। फिर ऐसे फील होगा कि यह शक्ति आत्मा को चला रही है। फालतू बातों में समय गंवाना छोड़ दो। बाबा से लिंक जुटी हुई हो। आनन्दय स्थिति बन सकती है। एकरस स्थिति बनाना माना आनन्दमय स्थिति को पाना उस आनन्द में सुख-शान्ति-प्रेम तक समाया हुआ है, अलग नहीं है। जब आनन्दमय स्थिति में चले जाओ तो सुख-शान्ति-प्रेम सब आ जाता है। आनन्दमय स्थिति मात-पिता के समान बनने में मदद करती है। तो सब बातों को छोड़ पिता को फॉलो करो। जो एक बाबा को देखता है उसे और कुछ दिखाई नहीं पड़ता। जो बाबा को फॉलो करता है उसके हर कदम में कल्याण है।

हम कितने भाग्यशाली हैं जो कल्याणकारी बाबा के कदमों पर कदम हैं। देवताओं के कदमों में पदम इसीलिए दिखाये जाते हैं। क्योंकि उन्होंने हर कदम पर फालो फादर किया है।
बाबा ने हम बच्चों को याद दिलाया है – बच्चे यह तुम्हारा अन्तिम जन्म है, तुम देह सहित देह के सभी सम्बन्धों को भूलो। बाबा ने हमें यज्ञ सेवाधारी बनाया तो हम ब्राह्मण बनें। ब्राह्मण न बने तो देवता नहीं बन सकते। बाबा ने गोद में लिया, यज्ञ रख सेवा कराने के लिए। बाबा का बच्चा बनने से, सेवाधारी बनने से ब्राह्मण बन गये। जैसे शिवबाबा का नाम गुणवाचक है, ऐसे हमारे गुण कत्र्तव्य पर नाम मिला ब्राह्मण। हमारा बाप वृक्षपति है, कल्याणकारी है, जिसे यह याद है उसके ऊपर ग्रहचारी आ नहीं सकती। ग्रहचारी किस पर आती है? धन, सम्बन्ध औरशरीर। इन तीनों पर ग्रहचारीआ नहीं सकती। जब वृक्षपति बाप के बच्चे बने तो शरीर की ग्रहचारी भी चली गई, सम्बन्ध में सुख है, झगड़ा हो नहीं सकता। सम्पत्ति में भी किसके सामने हाथ नहीं फैला सकते। दाता के बच्चे हैं। ब्रहस्पति की दशा है। वृक्षपति बाप के बच्चों को सुख देखना है ज़रूर। मैं वृक्षपति बाप का बेटा हूँ – यह वरदान सदा याद रहे। अगर ब्रह्मामुखवंशावली हूँ तो सबो जन्मपत्री वाचने देखने वाला हूँ। सफलता का सितारा हूँ – हमारे ऊपर ग्रहचारी आ नहीं सकती। अगर आती है तो हटा देनी चाहिए। हट सकती है। जो अच्छे ऊंचे ब्राह्मण हैं वो औरों की भी ग्रहचारी हटा देते हैं। नीच ब्राह्मण जादू मंत्र डालने वाले होते हैं। वो हैं जैलसी वाले ब्राह्मण। किसी को सुखी देख सहन नहीं कर सकते। कोई ऐसे भी हैं जो एक दो को काम्पटीशन करते रहें, भेंट करना, क्रिटिसाइज करना – यह ऊंचे ब्राह्मणों का धंधा नहीं है। उनकी एकरस स्थिति बन नहीं सकती। उन्हें अन्दर से सबकी दुआयें मिल नहीं सकती। अगर स्थिति अच्छी है तो सबकी दुआयें मिलेंगी। वो किसी को भी न देख एक ईश्वर को देखेगा। न पुरानी दुनिया को देखेगा न यहाँ किसी को देखेगा। क्या हो रहा है, कैसे हो रहा है, हमको क्रूा करना है। क्या मुझे चेकिंग करने की डयूटी मिली हुई है। हरेक को डयूटी मिली है – अपने आपको सम्भालने की। जो अपने आपको नहीं सम्भालता उसे बाबा कोई डयूटी नहीं देता। मुझे कोई नहीं सम्भाले नहीं तो बर्डन हो जायेगा। मैं कोई छोटी बेबी थोड़े ही हूँ, जो घड़ी-घड़ी हमें कोई सम्भालता रहे। हमारा ध्यान रखे। इतना छोटा तो नहीं बनना है। तो मुख्य बात है अपनी स्थिति को अन्दर मजबूत बनाना है। सयाना वह है जो अन्दर की लगन में मगन रहे। लगन को कम न करे। तो एकरस स्थिति बनाने के लिए अन्तर्मुखी बनो।
बीती बातों का ख्याल कर रोना नहीं है, अगर रोते हैं तो एकरस स्थिति नहीं है। स्थिति नीचे ऊपर तब होती है जब हमारी मर्जी से काम नहीं होता है। मेरी मर्जी कहाँ से आई। हमारी सदा शुभ भावना शुभ कामना रहे। ड्रामा की नूँध है। हम कभी लड़ाई झगड़ा कर नहीं सकते क्योंकि हमें अपकारियों पर उपकार करना है। मुख चलाना नहीं है। अगर मुँह बदल भी जाता है तो यह भी ठीक नहीं है। अब तक भी इस प्रकार के संस्कार हैं तो ठीक नहीं। अब तक भी इस प्रकार के संस्कार हैं तो ठीक नहीं। इसके लिए जितना चेक करेंगे उतना अच्छा है। चेक वह कर सकता है जो अन्तर्मुखी है, जिसे एकरस स्थिति बनाने का लक्ष्य है। किसी भी बात को नदेख अपने को देखो। सी फादर…। जो बाबा को नहीं देखता उसे बाबा नहीं देखता। जो अपने को चेक करता है उसे फट से पता चलता है मेरे में क्या कमी है। जो अपनी कमी को स्वीकार करता है बाबा उसे इशारा देता है, किसी के द्वारा दे देगा या स्वप्न में दे देगा। हमको कम्पलीट बनना है, बाबा को बनाना है। तो बाबा कोई कमी रहने नहीं देगा। अगर मुझे अपने में कोई कमी नहीं रखनी है तो कमी का पता ज़रूर चलेगा। सम्पूर्ण देवता बनने वाले बच्चे इशारे से समझते हैं। जिसको एकरस स्थिति बनानी है वह इशारे से समझ जायेंगे। विस्तार से बताने की ज़रूरत नहीं है। तो मुख्य बात है सब बातों को छोड़ अन्दर से सन्यास वृत्ति रखो। सबसे बड़े सन्यासी तो हम हैं। सारी दुनिया को छोड़कर जा रहे हैं। इससे कोई भी प्रीत नहीं।
सच्चाई और स्नेह हमारी भावना से निकल न जायें। जहाँ सच्चाई की भावना है। वहाँ कुछ भी कहो, सामने वाले को भाता है। जहाँ स्नेह नहीं है, शब्द हैं तो वो दिल को लगते हैं। हमारा हर आत्मा के प्रति सच्चा स्नेह हो। कल्याण की भावना हो। बाबा जितना स्नेह हमें देता है उससे हम अच्छा बनकर दिखायें। एक्जैम्पल बनें।

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