राम को देखना नहीं… राम को जीना है

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जन्म का महत्त्व जन्मदिवस के साथ बढ़ जाता है। हम सभी अपने जन्म की तिथि-तारीख और समय को याद रखते हैं और उसी आधार से कुंडली बनाते हैं। कुंडली बनाते हुए ज्योतिषी उस तिथि-तारीख और समय के हिसाब से आपके भविष्य को तय करता है, लेकिन साथ में यह भी कह देता है कि यह आपके पूर्व तिथि-तारीख और समय के आधार से भविष्य है लेकिन कर्म के आधार से यह बदल भी सकता है। अष्टमी पहले आती है और नवमी बाद में आती है तो निश्चित रूप से कृष्ण पहले आये और राम बाद में आये। ऐसी मान्यता है कि राम दशरथ के सर्व पुत्रों में सबसे बड़े और विवेकशील थे। तो आज हम राम के चरित्र को देखेंगे कि कैसे वो विवेकशील थे और किस तरह से उन्होंने इसका अपने जीवन में प्रयोग किया।
दुनिया में सभी लोग कहते हैं कि हम अपने पिता के नक्शे कदम पर चल रहे हैं, पिता ही हमारे लिए भगवान हैं, ये आप लोग भी कहते ही हैं। लेकिन पिता राम के भी थे राजा दशरथ जी। उनकी तीन रानियां थीं, लेकिन राम के पास तो केवल एक थीं सीता। तो उन्होंने तो अपने पिता को पिता का स्थान दिया लेकिन पिता के नक्शे कदम पर तो नहीं चले। ये विवेक की बात है, समझने की बात है कि राम मर्यादित थे, राम सुलझे हुए थे। ये एक मानसिक दशा का वर्णन तुलसीदास की तरफ से है कि जब व्यक्ति चाहे वो कितना ही शक्तिशाली क्यों न हो लेकिन उसका विवेक जब काम नहीं करता है तो अपने आप को वो अनेक लोगों से जोड़ता चला जाता है, उलझता चला जाता है। आप देखो, जितना नाम राम का है, उतना दशरथ का नहीं है। थे वो उनके पुत्र। कारण, कि दशरथ जी ने अपने मन-बुद्धि और संस्कारों को लिप्त किया और-और कार्यों में। लेकिन राम ने उद्धार किया, किसका, पूरे विश्व का। जिसमें आप लोग सुनते हैं, अहिल्या का, शबरी का, मारीच का, रावण का सबका उदाहरण आपके सामने है। तो ये उदाहरण क्यों बने क्योंकि उन्होंने अपने मन- बुद्धि को आकर्षण में नहीं फंसाया। तो ये कहानी एक राम की तो नहीं हो सकती। निश्चित रूप से आत्मा राम की हो सकती है जो हर घट(शरीर) में है, जो अपने मन-बुद्धि को दुनिया के आकर्षण में लिप्त करके बैठा है। अगर उसका विवेक जागृत हो जाये तो वो भी विदेही(सीता) से विवाह कर लेगा और अपने आप को हमेशा विदेही रखेगा। इसीलिए राम को सीता के साथ दिखाया जाता है। दूसरा, आपने देखा होगा कि राम और लक्ष्मण को अपने साथ कौन ले गया, विश्वामित्र ले गये। सिर्फ इन्हीं को क्यों ले गये, और भी तो दो भाई थे, भरत और शत्रुघ्न, उनको भी ले जा सकते थे। उनको क्यों नहीं लिया? कहते हैं, वो उस समय ननिहाल में थे। अब ये हम सबकी गाथा है कि ननिहाल कौन बार-बार जाता है, किसको ननिहाल बहुत पसंद होता है? जो बच्चे अपने आप को लाडला समझते हैं, माँ के साथ रहते हैं और नाना-नानी के प्यार को बहुत महत्त्व देते हैं। अगर एक शब्द में कहा जाये तो जो काम से जी चुराते हैं, जो आराम से बैठना चाहते हैं। एक कहावत है, कि कहां गये, तो कहीं ननिहाल तो नहीं चले गये! अब आप इसको पूरी तरह से शाब्दिक रूप से ना ले लें, इसके भावार्थ में जायें कि जिनको निरंतर लक्ष्य का ध्यान है, जिनको आगे बढऩे का मन है, जिनको उद्धार करने का मन है, वो कभी भी रिश्तेदारी में नहीं जाता। माना अपने आप को भटकाता नहीं, आकर्षण में नहीं जाता, व्यर्थ से खुद को नहीं जोड़ता। वो निरंतर अपना कार्य करता है। इसलिए पूरे विश्व का मित्र बनना अर्थात् क्रविश्वामित्रञ्ज बनने के लिए हमें लक्ष्य को छोडऩा नहीं होता। इसलिए लक्ष्मण राम के साथ हमेशा दिखाये जाते हैं। यही तो आज हम सबकी स्थिति है। उदाहरण तो छोटे बच्चे का है, हम सब तो चलो ननिहाल नहीं जा रहे, लेकिन हमारा ननिहाल आज औरों के साथ जुडऩा, बाहर जाना, जो जगह पसंद है वहां बैठना, जो खेल पसंद है उसमें अपने आप को जोड़े रखना, समय बर्बाद करना आदि उसी के उदाहरण हैं। तो वो व्यक्ति कहां से विवेकशील है, कहां से लक्ष्य प्राप्त कर सकता है और कहां से वो किसी का उद्धार कर सकता है! तो इस रामनवमी में राम के जन्मदिवस पर राम जैसा चरित्रवान और विवेकशील बनने का हम क्या प्रण नहीं ले सकते! तुलसीदास जी ने राम के चरित्र को अर्थात् आत्मा राम के चरित्र को मानसिक रूप से तैयार करके आपके सामने रखा। उसको विभिन्न परिस्थितियों से गुज़ारा, अलग-अलग बातों को उसके साथ जोड़ा ताकि हर कोई उस चरित्र को सुने पढ़े देखे और उससे कुछ सीखे। नहीं तो किसने उस राम को देखा है! बस जो आपने सीरियल(धारावाहिकों) में देखा है, उसको आप देख तो लेते हो लेकिन उसके अर्थ और भावार्थ पर नहीं जा पाते हो तो उसको जीवन में उतार भी नहीं सकते। जब तक राम जीवन में उतरेंगे नहीं तब तक हम राम के चरित्र को समझ भी नहीं सकेंगे। इसलिए राम के चरित्र को समझने के लिए हमें सिर्फ त्योहार मनाना नहीं है, बल्कि मनन-चिंतन के द्वारा उसके भावार्थ के साथ जीना है।

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