निंदा के गंदे नाले में न बहने दें

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अब ये संसार पाप के गंदे नाले में बहा जा रहा है। जो पाप कर रहे हैं वो खुश हैं, लेकिन कोई पुण्य करने लगे तो लोग उसकी निंदा करेंगे कि ये गंदे नाले को छोड़कर पवित्र गंगा में क्यों नहाने लगा। करेंगे ना, आप सब जानते हैं ना!

हमारा जीवन बहुत मूल्यवान है। यदि हम व्यर्थ संकल्पों में रहेंगे तो हम बड़े कार्य कैसे कर पायेंगे, सब चिंतन करें। हमें ईश्वरीय कार्य में भी बड़ा सहयोग करना है। और अपने लौकिक कार्यों को भी हर कदम, हर दिन सफल करना है। यदि हम व्यर्थ के शिकार रहे तो ये दोनों ही मंजि़ल नहीं मिलेंगी। हम बहुत पीछे रह जायेंगे। एकाग्रता तो नष्ट हो ही जाती है ये सभी जानते हैं। पढ़ाई में बच्चे ज्य़ादा सोचने लगें तो एकाग्रता न होने से मेहनत बहुत पड़ेगी, और याद कम होगा। परेशानियां, निराशा बढ़ेंगी इसलिए मन में सुन्दर संकल्प करें। मुझे अपने मन को व्यर्थ संकल्पों से मुक्त रखना है। और जो चीज़ें व्यर्थ को बढ़ाने वाली हैं उनको छोड़ देना सीधी-सी बात।
किसी पेशेन्ट को अपने को डायबिटीज से मुक्त रखना है तो उसे चीनी, मीठा छोडऩा ही पड़ता है ना! ये तो नहीं कि शुगर भी कंट्रोल करनी है और मिठाई भी खूब खा रहे हैं। नहीं चलेगा ना! जब हमें व्यर्थ संकल्पों को समाप्त करना है तो वो चीज़ें जो व्यर्थ को बढ़ावा दे रही हैं उन्हें पहचान लें। कई लोगों को पहचान नहीं होती। और कई लोग ऐसे हैं युवा जिनको पता है कि हम बहुत ज्य़ादा सोचने लगे हैं, व्यर्थ सोचने लगे हैं लेकिन कंट्रोल नहीं कर पाते। दोनों ही चीज़ों में चर्चा करनी है। हम चर्चा कर रहे थे कि निंदा होती है तो मनुष्य अपने कदमों को रोकने लगता है, निराश भी होता है और उसका उमंग-उत्साह भी कम होता है। और व्यर्थ का वेग बढ़ जाता है। हम चिंतन करेंगे देखिए इस संसार में जितने भी महान पुरुष हुए, आपने जिनकी भी बायोग्राफी या उनके बारे में कुछ सुना हो, बायोग्राफी पढ़ी हो। आपको पता चलेगा कि उसने जितने भी बड़े कार्य किए उसकी निंदा बहुत हुई। अब श्रीकृष्ण को ही ले लीजिए। वो तो इस सृष्टि की सबसे महान आत्मा, सबसे पॉवरफुल जिसके हाथ में सब सत्तायें थीं, हम ऐसा कह सकते हैं। लेकिन कितनी निंदा हुई! महाभारत सीरियल सबने देखा है, उसके निंदकों की कोई कमी नहीं थी। महात्मा गांधी को ही देख लीजिए… हमारे देश में उसके कार्यों की, उसकी प्लानिंग की, उसके आंदोलनों की निंदा करने वालों की क्या कमी थी! स्वामी विवेकानंद को ले लीजिए, स्वामी दयानंद सरस्वती को ले लीजिए जितना व्यक्ति आगे बढ़ता है, जितनी उसकी प्रशंसा होती है, जितना वो दुनिया से हटकर कार्य करता है उतनी उसकी निंदा होती है।
अब ये संसार पाप के गंदे नाले में बहा जा रहा है। जो पाप कर रहे हैं वो खुश हैं, लेकिन कोई पुण्य करने लगे तो लोग उसकी निंदा करेंगे कि ये गंदे नाले को छोड़कर पवित्र गंगा में क्यों नहाने लगा। करेंगे ना, आप सब जानते हैं। तो हम सभी जिनको भी महान कार्य करना है चाहे वो स्टूडेंट हो, बड़ा कम्पटीशन आपको क्लीयर करना है, बड़ी जॉब आपको पानी है, आप बिज़नेसमैन हो, आपको दिनोंदिन उन्नति करनी है। आप कोई उद्योगपति हैं,आपको आगे बढ़ते रहना है। नया-नया उद्योग शुरू करना है कम्पीटिशन भी है, आलोचक भी बहुत होंगे, निंदा करने वाले होंगे लेकिन जो मनुष्य निंदा सुनकर रूकता नहीं, जो निंदा सुनने पर अपने प्रयासों को छोड़ नहीं देता, जो निंदा सुनकर व्यर्थ की दलदल में फँसकर निराशा के अंधकार में डूब नहीं जाता ऐसा व्यक्ति सदा विजयी होता है, आगे बढ़ता है।
आपने सुना होगा कि कोई एक पैर वाले लोगों ने एवरेस्ट की चोटी फतेह कर ली। लोग उनका मज़ाक नहीं कर रहे होंगे! लंगड़ा वो चला है एवरेस्ट चढऩे। लेकिन उन्होंने अपनी हिम्मत-उमंग वो नहीं छोड़ा। इसलिए स्वीकार कर लें महिमा होती है तो निंदा भी होगी। महान कार्य करेंगे तो निंदा भी होगी, लेकिन हमें सीखते भी चलना है। अपने को चेंज करते भी चलना है। अपने को व्यर्थ के प्रभाव से रोकना है। कई बहुत ज्य़ादा सोचते हैं कि अगर हम अच्छा काम करें तो लोग बोलते हैं और बुरा करें तो भी बोलते हैं। हमें अपने को इतना सेंसिटिव नहीं बनाना है, कमज़ोर नहीं करना है। बड़े कार्य हम तभी कर सकेंगे जब व्यर्थ को समाप्त करने के लिए निंदा-स्तुति, मान-अपमान, हार-जीत में हमें समान रहना है। हमें इतना पॉवरफुल बनना है। ये स्वीकार कर लें तो बहुत सारे व्यर्थ संकल्प समाप्त हो जायेंगे कि ये मेरी निंदा थोड़े हो रही है। प्राइम मिनिस्टर देखो कितने बड़े-बड़े काम कर रहे हैं उनके अगर सौ प्रशंसक हैं तो दस-बीस निंदक भी होंगे। अब वो परेशान हो जायें निंदा सुनके, उनकी नींद खत्म हो जाये, वो रात-दिन व्यर्थ सोचने लगें, दूसरों के लिए बुरा सोचने लगें, इन्हें नष्ट करता हूँ तो कैसे चलेगा! इसलिए अपने व्यर्थ को रोकना है।
हम बहुत शक्तिशाली हैं, व्यर्थ के चक्रव्यूह में हम उलझ नहीं सकते। व्यर्थ आ गया तो बड़े काम नहीं कर पायेंगे। हमारे हर संकल्प से एनर्जी जनरेट होती है, पैदा होती है। वो सबसे पहले ब्रेन में जाती है, पूरे शरीर में फैलती है, चारों ओर फैलती है फिर वातावरण को चेंज करती है। हमारे चारों ओर औरा बनाती है, आभामंडल बनाती है ये भूलेंगे नहीं। इसलिए व्यर्थ से मुक्त होने का संकल्प करें। और जो ज्ञानी आत्मायें हैं, जो राजयोग के पथ पर हैं उन्हें जान लेना चाहिए जब हम व्यर्थ संकल्पों से पूरी तरह से मुक्त हो जायेंगे तब हम सम्पूर्ण बन जायेंगे। लक्ष्य तो यही है ना सभी का! तो ज्ञान की प्वाइंट्स को यूज़ करके जिसे हम कहते हैं ज्ञान का बल है उसे यूज़ करके हम व्यर्थ को स्टॉप करना सीखें। व्यर्थ में दूर तक न निकल जायें, ये ध्यान रखना है। दूर तक निकल गये, गाड़ी बहुत फास्ट चलाने लगे और ब्रेक मारने पड़े तो मुश्किल हो जायेगी। मन बहुत फास्ट भागने लगा हम चाहें तो उसको मन को रोकना शायद असम्भव ही हो जायेगा। इसलिए उसकी गति को फास्ट होने ही न दें। तो अच्छे-अच्छे स्वमान अपने पास रख लें। मैं आज आपको स्वमान दे रहा हूँ। मैं विश्वकल्याणकारी हूँ, मुझे अपनी मनसा शक्ति के द्वारा भी विश्व का कल्याण करना है। सबको सुख देना है, दु:ख हरने हैं ये संकल्प करेंगे। तो व्यर्थ संकल्पों की गति धीमी हो जायेगी और जीवन सुखी हो जायेगा।

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