हार को हार न मान एक अवसर मानें

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जिनकी आँखें नहीं होती, जिनको नेत्रहीन अलग-अलग नाम दिए जाते हैं, बड़े-बड़े काम कर रहे हैं। ऐसे लोग जिनके दोनों हाथ नहीं वो बड़े-बड़े काम कर रहे हैं। ऐसे लोग जिनके पैर कट गये वो भी चमत्कारिक काम कर रहे हैं, तो हम निराश क्यों…!

हमारी खुशी की, हमारी शान्ति की, हमारे जीवन में बहुत वैल्यू है। हमारा खुशनुमा जीवन हमारे जीवन की वैल्यू को बढ़ा देता है। यदि मन में व्यर्थ संकल्प चल रहे हों, बुरे संकल्प चल रहे हों, निराशा के संकल्प चल रहे हों तो ख्ुाशी, शान्ति समाप्त हो जाती है। परंतु हम अपना मन तैयार करें। मना बना लें कि मुझे खुश रहना है। खुशी और शान्ति तो मेरी अपनी सम्पदा है। ये सबको जानना चाहिए जैसे धन हमारा खज़ाना, हमारी सम्पत्ति है। हम उसको बहुत वैल्यू देते हैं- कमाने पर भी और बचाने पर भी। ऐसे ही खुशी और शान्ति बहुत बड़े खज़ाने हैं। शान्ति नष्ट हो जाये तसे टेंशन ही रहने लगे रात-दिन। चिंताओं में जीवन जलने लगे, तो धन-सम्पत्ति भी बेकार नज़र आने लगती है ना! सम्बन्धों में झगड़े हो रात-दिन, खुशी नहीं रहती, लगता है सबकुछ छोड़ खुशी रहनी चाहिए। जैसे देह को खुराक न मिले तो क्या हाल होगा देह का! मन को, आत्मा को खुशी न मिले तो उसका भी हाल बुरा हो जाता है। तो हम तैयार रहें किसी भी कीमत पर मुझे तो अपनी खुशी नहीं छोडऩी है। मनुष्य की जब हार होती है, जब उसे असफलता मिलती है तब उसके संकल्प भी बहुत तेज हो जाते हैं,उसकी खुशी भी चली जाती है।
हम याद रखें हार-जीत जीवन का खेल है। ये जीवन में चलता ही रहेगा। रेस्लर हैं एक की जीत, एक की हार, दो धावक हैं किसी को गोल्ड मेडल, किसी को सिल्वर, किसी को कांस्य पदक मिलेगा तय है। कितना अंतर होता है, बहुत मामूली सा। लेकिन एक धावक जिसको कांस्य पदक मिला वो निराश हो जाये, छोड़ दे हम नहीं दौड़ेंगे आज से। हमारे भाग्य में तो सफलता है ही नहीं। हमारी तो हार ही हो रही है जहाँ-तहाँ। हमने पता नहीं क्या पाप किए, हमारा तो भाग्य ही फूटा हुआ है। संकल्पों की एक लम्बी लाइन उसके मन में लग जाये तो देख लें कि क्या होगा! घर में भी खुशी का माहौल नहीं होगा। एक उदाहरण देता हूँ, एक विद्यार्थी था उसका अपने बोर्ड को टॉप करने का लक्ष्य था। तैयारी वैसी थी लेकिन टॉप कर दिया दूसरे ने। उसका नम्बर सेकण्ड रह गया। अन्तर रहा केवल प्वाइंट टू परसेंट का। देखिए कितना थोड़ा रहा। लेकिन वो निराश हो गया। उसको डिप्रेशन हो गया। उसके माक्र्स भी बहुत थे लेकिन एक एक्सपेक्टेशन(आशा) पूरी नहीं हुई उसने उसको हार मान लिया, असफलता मान ली और इतना सोच लिया, इतना व्यर्थ संकल्प चला लिया कि डिप्रेशन हो गया। डिप्रेशन को दूर करने में साल लगा। तब तक एक साल उसका बेकार हुआ। मैंने उसे कहा जो बच्चे केवल पास हुए 50 प्रतिशत लाकर उनके घरों में मिठाईयां बंट रही है हमारा बच्चा पास हो गया। और तुम 90 प्रतिशत से भी ज्य़ादा लेकर उदास हो गये हो। तुम्हारे चेहरे की रौनक समाप्त हो गई, सम्भलो थोड़ा, बुद्धिमान बनो। ये हमें जानना चाहिए कि सफलता-असफलता, हार-जीत, ये सदा ही चलता आया है। अच्छे-अच्छे योग्य व्यक्ति भी कभी-कभी हार जाते हैं। अच्छे-अच्छे बहादुर लोगों को असफलता का मुंह देखना पड़ता है। बड़ी-बड़ी सेनायें भी कभी-कभी हार मान लेती हैं। हार से हार नहीं मानना है बस ये स्लोगन पक्का कर दो। कहीं भी होने वाली हार मुझे हरा नहीं सकती। मेरी जीत निश्चत होगी, कोई भी हार मेरे मनोबल को गिरा नहीं सकती। ये पॉवरफुल संकल्प करें क्योंकि मैं भगवान की संतान हूँ। वो सर्वशक्तिवान है। तो मैं भी पॉवरफुल हूँ। शक्तिशाली आत्मायें कभी भयभीत नहीं हुआ करती। वो तो निर्भय हैं। वो कभी कदम पीछे नहीं हटाया करती। कुछ भी हो जाये वे तो आगे बढ़ती रहती हैं।
हार हो जाये तो बहुत सारे व्यर्थ संकल्प अपने मन में चलायें नहीं। बार-बार प्रयास करने पर भी मेरी हार होती है। क्या करूँ, इससे तो अच्छा मर जाऊं। इससे तो अच्छा ये काम छोड़कर ये काम कर लूं। अभी मरने का संकल्प बहुतों को आता है। जब असफल हो जाते हैं तो निराश होकर सोचते हैं कि सुसाइड कर लूं। ये कमज़ोर संकल्प कायरता से भरपूर संकल्प हैं। अरे जब अंधे लोग भी, जिनको नेत्रहीन आजकल अलग-अलग नाम दिए जाते हैं, बड़े-बड़े काम कर रहे हैं। ऐसे लोग जिनके दोनों हाथ नहीं हैं वो बड़े-बड़े काम कर रहे हैं। ऐसे लोग जिनके पैर कट गये हैं वो भी चमत्कारिक काम कर रहे हैं। तो हम निराश क्यों हों, ऐसे पॉवरफुल संकल्प करें। तो हमारा एक पॉवरफुल, पॉजि़टिव संकल्प अनेक व्यर्थ संकल्पों को नष्ट करेगा। तो बस ध्यान दें इस व्यर्थ की दलदल में फंसते न जायें क्योंकि ये ऐसी दलदल है जो गहरी होती जाती है, डूबो देती है, नष्ट कर डालती है। इसमें ईश्वरीय ज्ञान और राजयोग बहुत बड़ी भूमिका निभाता है। लेकिन केवल सम्पूर्ण ज्ञान ले लेना काफी नहीं है उसको यूज़ करना, उसको एप्लाई करना उसकी बहुत आवश्यकता होती है जीवन में।
व्यर्थ हमारी चीज़ नहीं है, हमारा जीवन तो समर्थ के लिए है, हम भगवान के बच्चे हैं। अच्छा ही सोचना है। मैं आपको फिर याद दिला दूं हमारे संकल्पों के वायब्रेशन दूर-दूर तक फैलते हैं। और जो बहुत अच्छा पुरुषार्थ करने वाले हैं, श्रेष्ठ योग करने वाले हैं उन्हें जानना चाहिए हमारी पॉजि़टिव और पॉवरफुल, प्युअर संकल्प, समस्त आकाश मंडल को, नक्षत्रों को प्रभावित करते हैं तो क्यों न हम ये महान कार्य करें, क्यों व्यर्थ में रहकर अपनी श्रेष्ठ एनर्जी को नष्ट करें। अपने को ये चिंतन देना है। हम व्यर्थ से मुक्त होते चलेंगे। अच्छे संकल्पों से हमारा मन भरपूर होता चलेगा और हमें ये रोज़-रोज़ रियलाइज़ होगा कि ये सुन्दर संकल्प हमारी पर्सनैलिटी का निर्माण कर रहे हैं, और सुन्दर बना रहे हैं, आकर्षक बना रहे हैं। ये हमारा बहुत बड़ा खज़ाना है और हम बहुत साहूकार हो गये हैं। जब खज़ाना बढ़ता है तो बहुत खुशी होती है। तब हमारा जीवन खुशियों का भण्डार बन जायेगा।

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