हमारे अंतर मन की चाहत थी कि भगवान के दर्शन हो जाएं बस! मेरा जीवन धन्य हो जाए। दिल की चाह भगवान ने न सिर्फ सुन ली किंतु उनके दर्शन भी हुए, हमें भी दर्शनमूर्त बनाया। आखिर वो तो भगवान है ना! हमने दिल से एक कदम आगे बढ़ाया, बाबा ने हज़ार गुणा कदम आगे बढ़ाये। तभी तो उन्हें भगवान कहते हैं। भोलानाथ कहते हैं। हमारा भी सौभाग्य है, उनसे रूबरू भेंट हुई, मिलन हुआ। हम धन्य हो गये। पर ज़रा सोचें भगवान की भी कुछ आश होगी ना! क्या हम भगवान के अरमान पूरे कर सकते हैं? जिसमें हमारा भी अरमान समाया हुआ है?
ये संगमयुगी जीवन जो हीरे तुल्य है इसको ऐसेे ही समाप्त कर दिया तो क्या किया? सब कुछ लुटाके होश में आये तो क्या फायदा? हर कोई चाहता है मेरा जीवन विशेष हो। बाबा (शिव परमात्मा) कहते हैं हर ब्राह्मण आत्मा विशेष है। भगवान सत्य स्वरूप है इसलिये उनके बोल भी सत्य हैं। उनका एक-एक अक्षर सत्य है। मिश्री को आप जिधर से भी चखेंगे उसमें मिठास ही होगी, नमकीन नहीं होगी। मिश्री का स्वभाव ही यह है, स्वरूप भी यह है। सत्य स्वरूप भगवान, उनके द्वारा कही हुई हर बात सत्य है। वह हमें कहता है कि आप मेरे विशेष बच्चे हैं। आप सबमें विशेषताएँ हैं क्योंकि करोड़ों में से आप एक हैं। आपको मैं उनमें से चुन-चुनकर लाया हँू। भगवान का हमारे लिये एक प्लैन(योजना) है। वह चुनकर ऐसे ही तो नहीं लाया है! हम कोई चीज़ ढूढकर लाते हैं या बाज़ार से खरीद कर लाते हैं तो हमारे मन में कोई उद्देश्य होता कि इसको ऐसे प्रयोग करेंगे या इससे ऐसा काम लेगें। भगवान तो परम बुद्धिवान है, उन जैसे बुद्धिवान तो कोई है ही नहीं। वह बुद्धिवानों का भी बुद्धिवान है। वह हमें लाया है करोड़ों में से, वह भी सिक से ,प्यार से। वह भविष्य सृष्टा भी है। कई बार कहा जाता है कि प्राचीन ऋषि-मुनी भविष्य दृष्टा थे, लेकिन उन्होंने भविष्य देखा भी था क्या! चलो, मान भी लेते हैं थोड़ा बहुत देख भी लिया होगा, परंतु भविष्य सृष्टा तो नहीं थे! उन्होंने कोई सतयुग की स्थापना तो नहीं की! युग परिवर्तन तो नहीं किया! मनुष्य मात्र के भाग्य की रेखा तो नहीं बदली! परंतु परमात्मा तो विधि के विधाता हैं। नये जग के निर्माता हैं। अगर उन्होंने हमें चुना है, तो किस उद्देश्य से चुना है? उनको नये जगत का निर्माण करना है इसलिए चुनकर लाया है। उनके मन में भी यही है कि नये जगत के लिए इनको लायक बनाऊंगा। ये उनके ही मन में है। भगवान का संकल्प अटल है, उसका जो चिंतन होता वह अमर चिंतन होता है, अमोघ(अचूक, अव्यर्थ), चिंतन होता है। उसके रास्ते को कोई पहाड़ मोड़ नहीं सकता, कोई तूफान रोक नहीं सकता। सारे मनुष्य एक तरफ हो जायें, लेकिन भगवान का संकल्प व्यर्थ नहीं जा सकता, खाली नहीं जा सकता। उसका हर एक तीर अचूक है, निशाने पर ही बैठता है। क्योंकि वह सर्वशक्तिवान है, परम पवित्र है और भविष्य को स्पष्ट रूप से जानता है, देखता है। वैसे ही करने में समर्थ है, इसलिए उसका वार कैसे खाली जा सकता है? वह स्वयं कह रहा है कि आप मेरे बच्चे हैं, मैं स्वयं आपको लेकर आया हँू। शेर का बच्चा, शेर ही होगा ना! ऐसे ही सर्वशक्तिवान का बच्चा मास्टर सर्वशक्तिवान ही होगा ना!
बाबा यह भी कहते हैं कि सतयुग के निर्माण के लिए आप विधायक(लॉ मेकर्स) हो। तो लॉ मेकर्स विधि निर्माता को क्रमनुञ्ज क हते हैं, जिसने मनुस्मृति लिखी। उसने और भी ग्रंथ लिखे हैं, लेकिन उन में से क्रमनु स्मृतिञ्ज प्रसिद्ध है। धर्म क्या है, अधर्म क्या है, मनुष्य को क्या करना चाहिए जो नियम हैं, मर्यादाएं हैं, द्वापरयुग से चले आते हैं, उनको मनु ने लिपि-बद्ध किया जिसका नाम हुआ क्रमनु स्मृतिञ्ज। आज तक लोग उसे धर्मशास्त्र मानते हैं। उसके अनुसार ही ब्राह्मण लोग, पण्डित-पण्डे-पुजारी वर्ग चलते हैं। नियम बनाने वालों को क्रमनुञ्ज कहते हैं।
परमात्मा का फरमान है कि यही मेरे बच्चे जो विधायक हैं, श्रेष्ठ दुनिया के निर्माण में अहम रोल निभाने वाले हैं, पूर्वज हैं, सर्वविघ्नहर्ता हैं, सारी सृष्टि से दु:खों के नामों-निशान मिटाने वाले हैं। ऐसी उम्मीद हमारे प्यारे बाबा ने हममें रखी है। दुनिया की अंतिम अहुति में चारों ओर आग लगी है, शीतल जल डालने वाले, हर एक को ठंडक की छाया देने वाले यही बच्चे हैं। उन सबका भी भाग्य जगाने वाले हैं। ऐसे श्रेष्ठ अरमान हम पर रखे हैं जिसमें हमारा भी अरमान समाया हुआ है उसे पूरा करेंगेे ना! क्या कह रही आपके दिल की धड़कनें, हम नहीं करेंगे तो और भला कौन करेगा! ये तो हमारा परम सौभाग्य है, परमात्मा की उम्मीदों पर खरा उतर बाबा के दिल तख्त पर बैठ जायें। यह अवसर व्यर्थ ना चला जाये।