कहीं… उनके आदेशों की अवज्ञा तो नहीं हो रही…!!

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सम्पूर्ण सत्य ज्ञान बाबा ने हमें दे दिया है। अब हमें कहीं भी भटकने की आवश्यकता नहीं, न मन से और न ही तन से। अब हमारा सब कुछ एक बाबा के लिए है।

जिस दिन बहुत लगन में मगन होकर बाबा को याद करते हैं तो फिर घंटों आवाज़ में आना अच्छा नहीं लगता, हमें अपने आप में बाबा की याद में इतना आनंद आता रहता जो हमें बात करने की इच्छा नहीं होती, और अब समय भी बाबा ने जैसा बताया वापिस घर जाना है, तो बाबा पूर्व तैयारी करा रहा है। ताकि अंत में सहज ही हम देह से निकल सकें। कोई चीज़ें हमें खींचे नहीं, कोई व्यक्ति की याद हमें आये नहीं। याद की प्रैक्टिस कैसी करनी है? जो अंत में और किसी की याद न आए, अंत में एक बाबा ही याद आए, ये इच्छा है ना सभी को कि अंत में एक बाबा ही याद आये, हमारी बुद्धि कहीं भी भटके नहीं, क्योंकि ‘अंत मति सो गति’ ये महावाक्य कई बार हमें सुनाते हैं बाबा, तो ये भी सिर्फ सुनना नहीं है लक्ष्य बनाना है।
हमारा व्यक्तिगत लक्ष्य हो कि अंत में बाबा की याद में हमारा शरीर छूटे, भक्ति में कहते हैं कि गंगा का तट हो, यमुना का वंशी वट हो, कृष्ण हो, मुरली हो, देखो, भक्तों की कितनी लगन है! वो भी तो ग्रहस्थी थे! पर इच्छा क्या है? देखो, कि भगवान की याद के आनंद में शरीर छूटे, हमें भी ये लक्ष्य बनाना है। हमारी भी ये इच्छा हो। ब्राह्मण जीवन की शुरूआत में ही पहला ही आदेश बाबा का क्या है? कि देह सहित देह के सर्व धर्म-संबंध छोड़, एक मुझे याद करो, एक मेरी शरण में आओ, ब्राह्मण जीवन की शुरूआत में ही बाबा का यह आदेश है। दूसरा बाबा ने कहा सब कुछ मेरे हवाले कर दो, तो इस अंतिम जन्म में महापरिवर्तन की वेला पर भगवान का हम बच्चों के लिए क्या आदेश है? सब कुछ भूल जाओ और एक मुझे याद करो। सब संग छोड़, एक मुझ संग योग लगाओ। तो इन सब आदेशों को सुनकर क्या चिंतन करते हो? उसे प्रैक्टिकल करने के लिए कोई चिंतन करते हो! अगर निश्चय है भगवानुवाच, अगर निश्चय है ये परिवर्तन की वेला है तो चिंतन चलना चाहिए कि मुझे अपने जीवन में इसे कैसे प्रैक्टिकल करना है। और सभी से बुद्धियोग हट जाये, ये समझ में आ जाए कि किसी की याद से कोई फायदा नहीं। हाँ, और किसी को क्यों याद करते हैं? कोई फायदा हैं क्या? तो अपने आप को समझाना है।
ज्ञानी हो या अज्ञानी हो,और किसी की याद से कोई फायदा नहीं। ये पक्का निश्चय हो जाए कि एक बाबा की याद ही मुझ आत्मा को पावन बनाने वाली है, मुझ आत्मा में शक्ति भरने वाली है। मुझे बाबा से लगन लगानी है, बाबा में ही बुद्धि लगानी है। भक्त तो इसलिए भटकते हैं कि उनको तो सत्य का पता ही नहीं कि भगवान आया है। पर हमें तो पता है ना कि भगवान आया है। महापरिवर्तन हो रहा है। सम्पूर्ण सत्य ज्ञान बाबा ने हमें दे दिया है। अब हमें कहीं भी भटकने की आवश्यकता नहीं, न मन से और न ही तन से। अब हमारा सब कुछ एक बाबा के लिए है। हमारा समय, श्वास, संकल्प, शक्ति, दिल, दिमाग सब कुछ अब बाबा के लिए है। ये निर्णय किया है? बाकी सब कुछ निमित्त मात्र है बाबा ही मेरा सर्वस्व है।
जब समय को पहचान लिया, बाबा को पहचान लिया, अपने आप को पहचान लिया, अब हमारा निर्णय है कि न संकल्प व्यर्थ करना है, न वाणी व्यर्थ करनी है। न व्यर्थ कर्मों में जाना है। जो आवश्यक दुनियावी कार्य हैं घर-ग्रहस्थ के वो हमें करने हैं, बाकी हमारा समय बाबा के लिये है, हमारा मन-बुद्धि बाबा के लिये है। सत्य ज्ञान को समझने का अर्थ ही है कि हम हमारी कोई भी एनर्जी वेस्ट ना करें। संकल्प शक्ति, शब्द शक्ति या कर्म शक्ति या समय हम व्यर्थ न करें, और इसलिए बाबा ने कहा है कि इस अंतिम जन्म में कार्मिक अकाउन्ट से जो संबंध हमें मिले हैं, वो तोडऩे नहीं हैं। क्योंकि कार्मिक अकाउन्ट से जो संबंध मिलते हैं वो हिसाब चुकाने ही होते हैं। ना तोडऩे हैं, ना नये संबंध जोडऩे हैं। संबंधों का विस्तार नहीं करना है इसलिए बाबा कहते हैं कि श्रीमत पर चलो, खुद भी ज्ञान में चलो, बच्चों को भी चलाओ, परिवार को भी ज्ञान में चलाओ। हमें सत्य ज्ञान मिला है, हमें जीवन पवित्र मिला है। हमारा जीवन सुखी बना है।
बाबा ने हमें कितनी फिकरों से फारिग किया है, तो हमारा लक्ष्य हो कि हमारे संबंध-सम्पर्क में जो भी हैं हमें उनको भी बाबा से जोडऩा है। ना तोडऩा है, ना जोडऩा है, बाबा ने क्या कहा है तोड़ निभाना है। ये प्रैक्टिकल करना है। अब हमें सबसे बुद्धियोग निकालना है। अलौकिक परिवार में भी अलौकिक रहना है, ऐसा नहीं कि लौकिक से छोड़ा और अलौकिक में अटक गये। अलौकिक बनकर चलना है।
यहाँ लौकिकता नहीं लानी है आपस में, शुरू से स्टेप बाय स्टेप, बाबा हमें डिटैच करते चले हैं। बाबा के बने,बाबा ने हमें कहा कमल फूल समान बनो। बाबा की श्रीमत क्या है? घर-ग्रहस्थ में रहते हुए कमल फूल समान रहो, न्यारा और प्यारा रहो, अनासक्त रहो, कर्मयोगी बनकर, कमल अलिप्त रहता है। हमें भी इस पतित दुनिया में रहते हुए विकारों से अलिप्त रहना है।

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