परमात्म ऊर्जा

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कोई भी लेन-देन करते हो तो उसी समय एक स्लोगन याद रखना है – बालक सो मालिक। जिस समय विचारों को देते हो तो मालिक बनकर देना चाहिए, लेकिन जिस समय फाइनल होता है उस समय फिर बालक बन जाना है। सिर्फ मालिकपना भी नहीं, सिर्फ बालकपना भी नहीं। जिस समय जो कर्म करना है उस समय वही स्थिति होनी चाहिए। और जब भी अन्य आत्माओं की सर्विस करते हो तो सदैव यह भी ध्यान में रखो कि दूसरों की सर्विस के साथ अपनी सर्विस भी करनी है। आत्मिक स्थिति में अपने को स्थित रखना, यह है अपनी सर्विस। पहले यह चेक करो कि अपनी सर्विस भी चल रही है? अपनी सर्विस नहीं होती तो दूसरों की सर्विस में सफलता नहीं होगी। इसलिए जैसे दूसरों को सुनाते हो ना कि बाप की याद अर्थात् अपनी याद अर्थात् बाप की याद। इस रीति से दूसरों की सर्विस अर्थात् अपनी सर्विस। यह भी स्मृति में रखना है। जब कोई भी सर्विस पर जाते हैं तो सदैव ऐसे समझो कि सर्विस के साथ-साथ अपने भी पुराने संस्कारों का अन्तिम संस्कार करते हैं। जितना संस्कारों का संस्कार करेंगे उतना ही सत्कार मिलेगा। सभी आत्मायें आपके आगे मन से नमस्कार करेंगी। एक होता है हाथों से नमस्कार करना, दूसरा होता है मन से। मन ही मन में गुण गाते रहें। जैसे भक्ति भी एक तो बाहर की होती है, दूसरी होती है मानसिक। तो बाहर से नमस्कार करना- यह कोई बड़ी बात नहीं है। लेकिन मन से नमस्कार करेंगे, गुण गायेंगे बाप के कि इन्हों को बनाने वाला कौन? दूसरा, जो उन्हों के अपने दृढ़ विचार हैं उनको भी आपके सुनाये हुए श्रेष्ठ विचारों के आगे झुका देंगे। तो नमस्कार हुआ ना! मन से नमस्कार करें, यह पुरुषार्थ करना है। बाहर के भक्त नहीं बनाना है, लेकिन मानसिक नमस्कार करने वाले बनाने हैं। वही भक्त बदल कर ज्ञानी बन जायें। जितना-जितना बुद्धि को सदैव स्वच्छ अर्थात् एक की याद में अर्पण करेंगे उतना ही स्वयं दर्पण बन जायेंगे। दर्पण के सामने आने से न चाहते हुए भी अपना स्वरूप दिखाई देता है। इस रीति से जब सदैव एक की याद में बुद्धि को अर्पण रखेंगे तो आप चैतन्य दर्पण बन जायेंगे। जो भी सामने आयेंगे वह अपना साक्षात्कार व अपने स्वरूप को सहज अनुभव करते जायेंगे। तो दर्पण बनना, जिससे स्वत: ही साक्षात्कार हो जाये। यह अच्छा है ना! दूर से ही मालूम पड़ता है ना कि कोई सर्चलाइट है। भले कहाँ भी, कितने भी बड़े संगठन में हों, लेकिन संगठन के बीच में दूर से ही मालूम पड़े कि यह सर्चलाइट है अर्थात् मार्ग दिखाते रहें।

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