हमारे अन्दर जो शक्ति काम करा रही है वो बाबा ही है

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हमारे संस्कार हमारी एक्टिविटी, दृष्टि और शब्दों को प्रभावित करते…
हम एक-दूसरे के बारे में अनुमान न लगायें। अनुमान उठे ही नहीं, अगर उठता है तो हम आपस में स्पष्ट कर लें। मिसअन्डरस्टैंडिंग में न आयें। प्रेम व स्नेह से बात कर लें। जो हम दूसरे के बारे में फाइनल ओपीनियन बना लेते हैं या जजमेंट बना लेते हैं, उसके बजाय उसे इतना तो अधिकार दें जो वह एक दफा स्पष्टीकरण तो कर ले।

जैसा कि पिछले अंक में आपने पढ़ा कि अगर हमारे अन्दर यह हो कि बाबा मिल गया, सब मिल गया, अभी हमें कुछ नहीं चाहिए। योगी जीवन ही सर्वश्रेष्ठ जीवन है। योग से सब सिद्धियां स्वत: मिल जायेंगी, प्रकृति दासी हो जायेगी। जब यह बुद्धि में रहता तो तृष्णायें खत्म हो जाती हैं। योग ठीक हो जाता तो न कोई हमारा अपमान करता, न विघ्न डालता, न दुव्यर्वहार करता। पराकाष्ठा की स्टेज जब प्राप्त हो जाती है तो सब तूफान खत्म हो जाते हैं। लेकिन हम वह न करके पहले तृष्णाओं को पूरा करने की कोशिश करते हैं तो उसका परिणाम यह होता कि हम योग का गहरा अनुभव नहीं कर पाते। अब आगे पढ़ते हैं…

लगाव : लगाव और आसक्ति में भी फर्क है। जो हमारी कर्मेन्द्रियों के विषय हैं, स्थूल पदार्थ हैं उनके प्रति हमारी आसक्तियां होती हैं। लेकिन जिनके साथ हम रहते हैं, जिस स्थान पर बहुत समय रहते हैं उससे विशेष लगाव हो जाता है। जो चीज़ें हमें प्रयोग करने के लिए मिलती हैं, उनसे भी लगाव हो जाता है। जब कोई चीज़ के साथ लगातार सम्पर्क रहता तो उसका परिणाम स्वाभाविक रूप से यही होता है। इसलिए कहा गया है कि बहता पानी ठीक रहता है, खड़ा हुआ पानी गंदा हो जाता है। जब कोई अपना स्थान बनायेगा, साधना बनायेगा तो उसके परिणाम स्वरूप यही होगा जो न चाहते हुए, न ध्यान देते हुए उसके लिए भावना हो जायेगी। कर्मणा में आते-आते उसमें सूक्ष्म लगाव पैदा हो जाता है। इसके परिणाम अनेक प्रकार से निकलते हैं। लगाव होने से बाबा की तरफ जो हमारा खिंचाव चाहिए वह कम हो जाता है। आसक्ति आकर्षणात्मक है लेकिन लगाव अभ्यासात्मक है। यानी रहते-रहते हमें अभ्यास हो जाता है। आसक्ति होती है तो वह चीज़ें हैं खिंचती हैं- यह सुन्दर है। आँख का विषय है सौन्दर्य और जिव्हा का विषय है स्वाद। तो हरेक कर्मेन्द्रिय को अगर कोई खींचता है तो वह हुआ आकर्षणात्मक। लेकिन लगाव का गुण अभ्यासात्मक है। जो चीज़ बार-बार प्रयोग करेंगे, जिसके साथ रहेंगे उससे आपका अभ्यास पड़ जाने से लगाव हो जायेगा। फिर इस लगाव का परिणाम निकलता है- पक्षपात। पक्षपात का परिणाम है अन्याय। फिर सत्य-असत्य का विवेक नहीं रहता। फिर अगर बड़े भी समझायेंगे कि तुम्हारी यह एक्टिविटी गलत है तो भी समझ में नहीं आयेगा। क्योंकि विवेक पर पर्दा पड़ जाता है। जिससे सत्य-असत्य का बोध नहीं होता। कोई अगर राइट बात भी सुनायें कि तुम ठीक नहीं करते हो, तो उसे भी हम राइट न समझकर कहेंगे कि यह तो हमारे पर शक करते हैं, आपको किसी ने हमारी रिपोर्ट की है, विरोधियों ने आपके कान भर दिये हैं। आप हमारी बात नहीं सुनते, उनकी बात सुनकर हमारी बेइज्ज़ती करते हो। तो यह परिणाम है लगाव का।
इन सभी का टोटल परिणाम होता- निराशा। उमंग-उत्साह कम हो जाता है। यही योग में बहुत बड़ा विघ्न है। न सेवा कर पायेंगे, न योग लगेगा। हर तरफ से मन वीरान हो जायेगा, उचाट हो जायेगा। कारण क्या? अन्दर बीमारी भरी हुई है। इसके लिए बाबा कहता है सेल्फ डॉक्टर बनो। अपने आपको आपेही चेक कर लो। जब हम इन सूक्ष्म बीमारियों से मुक्त होंगे, तब अनुभव होगा कि हम बाबा के इन्स्टु्रमेंट हैं। हमारी चाबी उसके हाथ में है। हमारे अन्दर जो शक्ति काम करा रही है वह बाबा ही है। मेहनत कम करनी पड़ेगी, प्राप्ति ज्य़ादा होगी। विघ्न आयेंगे ही नहीं। अनुभव होगा जैसे हमें टोटल बाबा ने अपना बना लिया। हम बाबा के ही प्रभाव के नीचे हैं। जैसे उसके ही हम हो गये।
हम सर्व के सहयोग से सुखमय संसार बनाने का कार्यक्रम कर रहे हैं लेकिन हमारा यह जो दैवी संसार है इसमें हम एक-दूसरे को क्या सहयोग दें? सबसे पहले हमारी जो कमज़ोरियां हैं, भाव-स्वभाव या पुरानेपन की बातें जो हमें खींचती हैं, उसमें हम एक-दूसरे के बीच संघर्ष पैदा न करके, किसको ज्य़ादा नीचे न उतारकर हम उसे ऊंची स्टेज पर रहने का सहयोग दें और स्वयं भी ऊंची स्टेज पर रहें। जैसे हम खुद आगे बढऩे की कोशिश करते हैं वैसे हम दूसरों को भी आगे बढ़ाने का ऐम रखें। दूसरा, हम एक-दूसरे के बारे में अनुमान न लगायें। अनुमान उठे ही नहीं, अगर उठता है तो हम आपस में स्पष्ट कर लें। मिसअन्डरस्टैंडिंग में न आयें। प्रेम व स्नेह से बात कर लें। जो हम दूसरे के बारे में फाइनल ओपीनियन बना लेते हैं या जजमेंट बना लेते हैं, उसके बजाय उसे इतना तो अधिकार दें जो वह एक दफा स्पष्टीकरण तो कर ले। उसके बाद हम अपने दृढ़ विचार बनायें। हम अपने मन में किसी के प्रति कोई धारणा बनाकर मन खराब न करें। हमारा आपसी रिलेशन अच्छा हो। हम एक-दूसरे की क्रिटिसाइज़ न करें। एक-दूसरे को सहयोग दें और आगे बढ़ाने का भाव रखें तो इन सब धारणाओं से हम योग की गहराई का अनुभव कर सकेंगे।

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