अपने अंदर की खूबियों को न भूलें

0
329

वैसे तो सिक्के के दो पहलू होते हैं। यही कहावत भी है। लेकिन कुछ लोगों के कई पहलू होते हैं। उन्हें हम महापुरुष कहते हैं। हमारे जीवन में कई लोग ऐसे होंगे जिनके आने के बाद खुशहाली आती है, प्रगति आती है। ऐसा ही एक महापुरुष हमारे भीतर भी होता है जिसे हम पहचान नहीं पाते। जितना हम अपने भीतर के महापुरुष से अनभिज्ञ रहेंगे उतना ही बाहर ढूंढ़ते रहेंगे। ग्रीक पौराणिक कथाओं में एक राजा मिडास की चर्चा है। वो किसी भी चीज़ को छू लेता था तो वो सोने में बदल जाती थी। ठीक ऐसा ही ‘मिडास टच’ हमारे भीतर है। हम प्रयास करें कि पहले तो अपने ही जीवन को श्रेष्ठ बनायें। परमात्मा जन्म से सबको गज़ब की खूबी देता है। कुछ लोगों की खूबी उनके माता-पिता, लालन-पालन करने वाले, पढ़ाने-लिखाने वाले, उनके साथ जीवन जीने वाले लोग निखार देते हैं। उसके बाद मनुष्य खुद अपनी खूबियों को निखारता है। जब-जब आप बाहर से कुछ ले रहे हों, तब-तब ये न भूलें कि वही खूबी आपके भीतर है। उसको भी स्पर्श करते रहिये।
हम बहुत ही भाग्यशाली हैं कि हमें परमात्म-प्रदत्त खूबियां जो मिली हैं उन्हें हमने जाना भी है और पहचाना भी है। इतना तक ही नहीं, लेकिन उन्हें किस तरह से उपयोग, प्रयोग करना है, ये विधि भी हम जान गये हैं। जैसे कि परमात्मा ने हमें बताया कि मेरा और आपका सम्बंध बहुत ही घनिष्ठ, पिता-पुत्र का है। यानी कि हम पिता के वर्से के अधिकारी हैं। जो भी उनकी जायदाद है, शक्तियां हैं, मिल्कियत है, उनके हम हकदार हैं। दूसरे शब्दों में कहें, तो पिता के पास जो भी है वो उसके बच्चे का, माना हमारा है।
ज़रा सोचें कि पिता के पास क्या-क्या है, तो बहुत लम्बी लिस्ट हमारे मन-मस्तिष्क में उभर आती है। वो शक्तियों का सागर है, ज्ञान का भंडार है, सबको सही राह दिखाने वाला है, बिगड़ी को बनाने वाला है, वो मेरा है, मेरे लिए है आदि-आदि।
जब हम इस तरह से अपनी स्मृतियों को तरोताज़ा करते हैं तो एहसास होता है कि परमात्मा ने जब मुझे भेजा तो खाली हाथ नहीं भेजा, बल्कि मुझमें सारी खूबियां और शक्तियां भर कर भेजा। क्योंकि उसे पता था कि मृत्युलोक में कई सारी समस्याएं, कठिनाइयां, मुश्किलातें होंगी। उसे पार करने के लिए, विजयी होने के लिए उसने पहले ही सारे इंतज़ाम कर दिये।
आज तक हम जो कुछ बाहर से प्राप्त करने का प्रयास कर रहे हैं, इसका मतलब वो हमारे पास नहीं है, यही हुआ ना! जैसे कि मुझे गाड़ी लेनी है, क्योंकि मेरे पास नहीं है। पर अब हमें ये समझ आई कि परमात्मा ने हमें सब कुछ दिया है परंतु उसे न जानने के कारण हम बाहर से प्राप्त करने का प्रयास करते हैं। जो हमारे भीतर मौजूद है, उससे हम अनभिज्ञ रहे, परिणामस्वरूप उसे प्राप्त करने की बेचैनी हममें बनी रही।
अब बात यह आती है कि अपने भीतर मौजूद जो महानताएं हैं, योग्यताएं हैं, शक्तियां हैं, उसे बाहर कैसे निकाला जाये? यहां हमें परमात्मा ने उसका सहज तरीका बताया कि जो-जो आपके पास मौजूद है उसको स्मृति पटल पर लायें, उसका चिंतन करें, स्वयं को निखारें और देखें कि मेरे पास सर्वशक्तियां मौजूद हैं जिससे मैं आने वाली चुनौतियों को पार कर सकता हूँ। मैं एक शक्तिशाली आत्मा हूँ, ये स्मृति लाने से ही हमें ये बात याद आती कि मेरा पिता सर्वशक्तिवान है, तो मैं भी तो वैसा ही होऊंगा ना! जैसे शेर का बच्चा शेर जैसा शेर ही होगा ना! ऐसे वास्तविक और सुंदर चिंतन के साथ हमारी स्थिति वैसी ही बन जाती है और हम अपने आप को शक्तिशाली समझने लगते हैं, अर्थात् हमारे मन और बुद्धि में वो स्वीकार्य हो जाता है कि मैं शक्तिशाली हूँ, मैं हर चीज़ कर सकता हूँ और उन शक्तियों को सही विधि-विधान के तरीके से उपयोग और प्रयोग कर सकता हूँ। इस तरह का चिंतन और दर्शन बारंबार और नियमित रूप से करने से हमारे अंदर वो विश्वास पैदा हो जाता है। हम कमज़ोर नहीं, हमारे पास ऐसा कोई कारण नहीं जिसका हम निवारण न कर सकें।
दूसरी स्मृति ये भी हमारे पास है कि हम ज्ञान स्वरूप आत्मा हैं। क्योंकि ज्ञान सागर बाप के हम बच्चे हैं। ज्ञान के प्रकाश से हम हर चीज़ की जाँच कर सकते हैं, परख सकते हैं और उसे उचित कार्य में लगा सकते हैं। सही व सत्य विधि से किये गये कर्म का फल अवश्य ही सर्वश्रेष्ठ होता है। इसी तरह हमारे भीतर छुपे हुए स्वमान की स्मृतियां बारंबार हमें उमंग देती, उल्लास देती और खुशियां देती हैं। तो भीतर का महान पुरुष जग जाता है और हम दुनिया में महान कत्र्तव्य करने लग जाते हैं। महानता का मतलब, यहां जो आज संसार में व्याप्त समस्याओं के अंबार का अंधकार है, उसका निदान करने में हम सक्षम हैं। इसीलिए ऐसे स्व-चिंतन करके स्व में छिपे हुए पुरुषत्व को बाहर लाना है। इससे हमें बाहर से कुछ भी लेने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी। और हम अंतर्मुखी, सदा सुखी की उक्ति को सार्थक कर पायेंगे। परमात्मा ने जो हमें खूबियां दी हैं, हम बखूबी उसका उपयोग कर सकें। वैश्विक समस्याओं के निदान के भगीरथ कार्य में हम परमात्मा के मददगार बन सकें। शर्त बस इतनी ही है कि हम न सिर्फ नित्य अपनी शक्तियों के साथ जुड़ें अपितु उसका एहसास भी करें। साथ-साथ परम शक्ति के सानिध्य का साथ हमेशा बनाये रखें।

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें