बिना शुभ भावना के रिस्पेक्ट रख नहीं सकते

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मैं और मेरापन की हदें बहुत नुकसान करती हैं, अब इन हदों से बाहर निकलो। जैसे बाबा बेहद का है, ऐसे बेहद दिल वाले बनो

बाबा कहते बच्चे सदा आज्ञाकारी बनो। आज्ञाकारी अर्थात् हाँ जी, यही हमारा साइन है। जो यहाँ हाँ जी, हाँ जी करेंगे उनकी वहाँ हाँ जी, हाँ जी होगी। हाँ जी करने वाले कभी डगमग नहीं हो सकते। क्यों, क्या, कैसे… इन प्रश्नों में वे अपना माथा गर्म नहीं करेंगे। उनका दिमाग शीतल कुण्ड होगा क्योंकि हाँ जी का पाठ गर्मी निकाल देता है। शीतल काया वाले योगी बन जाते हैं।
मेरे दिल में सबके लिए रिस्पेक्ट हो। रिस्पेक्ट वही रख सकते जिनके अन्दर शुभ भावना है। अगर अनुमान और नफरत होगी तो प्यार भी गंवायेंगे, मान भी गंवायेंगे। यूनिटी भी नहीं रह सकेगी। भल तुम्हें गिराने लिए कोई ने गड्ढा खोदा हो, लेकिन अगर तुम सच्चे हो, तुम्हारे दिल में उसके प्रति शुभ भावना है तो बाबा तुम्हारी रक्षा ज़रूर करेगा। तुम्हें बचा लेगा। अन्दर में कभी भी अशुभ भाव न हो। ऐसे नहीं सोचो – देखना यह मेरे लिए ऐसा करता, धर्मराज बाबा इसे कितना दण्ड देंगे। मैं कोई श्राप देने वाला दुर्वासा नहीं हूँ। मैं क्यों कहूँ यह मुझे तंग करता- देखना इसकी क्या गति होगी! मैं क्यों बुरा सोचूँ! अगर मैंने अशुभ सोचा तो मुझे उसका 100 गुणा दण्ड मिलेगा क्योंकि मैं दुर्वासा बनी। राजयोगी दुर्वासा नहीं बन सकते। आप अपनी ऐसी स्थिति रखो तो कभी इन्द्रियों की चंचलता आयेगी ही नहीं। तुम बाबा को मनाओ तो आपेही सब मान जायेंगे। कई हैं जो भावना रखते सर्विस की और करते हैं डिसर्विस। आपस में नहीं बनती तो लड़ पड़ते। कहेंगे मुझे मान नहीं मिलता, उसे मिलता मुझे क्यों नहीं मिलता।
हमें बाबा ने श्रीमत दी है- बच्चे क्षीरखण्ड होकर रहो। स्वप्न में भी लूनपानी(खारा पानी) नहीं होना। मैं क्षीरखण्ड वाली लूनपानी क्यों होती! अगर लूनपानी होते तो ब्रह्माकुमार-कुमारी कहला नहीं सकते। मेरा काम है दूध चीनी होकर रहना। अगर मेरे में नमक होगा तो दूसरे भी मेरे ऊपर नमक डालेंगे। लूनपानी होने का मुख्य कारण है देह अभिमान। अगर मैं इस दुश्मन से किनारा कर क्षीरखण्ड रहूँ तो कोई भी बात मेरे सामने आयेगी ही नहीं। आयेगी तो हवा की तरह चली जायेगी। सदा क्षीरखण्ड रहो माना एकता में, यूनिटी में रहो।
पढ़ाई छोडऩा माना लूला-लंगड़ा बनना। मुरली में बाबा ने जो भी श्रीमत दी है उसे पालन करना मेरा स्वधर्म है। चेक करो मेरे में श्रीमत पालन करने की कितनी शक्ति है? मेरा सारा व्यवहार श्रीमत के अन्दर है? मुझे श्रीमत है- तुम देहधारी की आकर्षण में नहीं जाओ। अगर आकर्षण होती है तो वह श्रीमत की लकीर छोड़ता। उन्हें रावण ज़रूर अपनी शोकवाटिका में ले जायेगा। हमें श्रीमत है तुम अपना तन-मन-धन, बाबा की सेवा में लगाओ। अपनी दिनचर्या को श्रीमत के अनुसार चेक करो।
ईष्र्या के वश कभी भी किसी को गिराने का ख्याल नहीं करो। अगर स्वयं को चढ़ाने का संकल्प और दूसरे को गिराने का संकल्प है तो यह बहुत बड़ा पाप है।
भक्ति में कहते हैं हृदय में भगवान बैठा है। यह हृदय हमारे बाबा का घर है। जिनके हृदय में प्रेम है, उनके हृदय में बाबा की याद है। जिनके हृदय में बाबा है, उनके हृदय में बाबा के सब रत्न हैं। बाबा के सब फूल हैं। अगर कहते यह मेरा स्टूडेंट है। बाबा के कहने पर चल रहे हैं फिर तुम क्यों कहती- यह मेरा स्टूडेंट तुम्हारे सेन्टर पर नहीं जा सकता। मैं तो कहती जो ऐसा सोचते वह बहुत बड़ा पाप करते हैं। चुम्बक हमारा बाबा है, चलाने वाला बाबा है। बाबा के सब प्यारे बच्चे हैं। बेहद की भावना रखो। हदों में नहीं आओ। मैं और मेरापन की हदें बहुत नुकसान करती हैं, अब इन हदों से बाहर निकलो। जैसे बाबा बेहद का है, ऐसे बेहद दिल वाले बनो।

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