रांची,झारखण्ड: प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय के साथ उसकी सहयोगी संस्था राजयोग एज्यूकेशन एण्ड रिसर्च फाउण्डेशन के ग्राम विकास प्रभाग द्वारा आत्मनिर्भर किसान अभियान कार्यक्रम का आयोजन चौधरी बगान, हरमू रोड, रॉची में किया गया। कार्यक्रम का उद्घाटन दीप प्रज्ज्वलन के साथ किया गया। कार्यक्रम का उद्घाटन करते हुए डॉ अरूण कुमार तिवारी, बिरसा कृषि विश्वविद्यालय, बागवानी विभाग के प्रधान वैज्ञानिक ने कहा इस पृथ्वी पर आदिकाल सतयुग का जब प्रारंभ हुआ, उस समय की प्रकृति सम्पूर्ण सतोप्रधान थी, खेतों द्वारा पौष्टिक शुद्ध अन्न, फल, सब्जियां दूध आदि प्राप्त होते थे, इसलिए हरएक की काया सम्पूर्ण निरोगी थी। हर मानव मन और तन की शुद्धता के फलस्वरूप दिव्य गुणों से सम्पन्न देवी-देवता कहलाते थे। आपसी स्नेह, सहयोग, सद्भावना, सुख, शांति, पवित्रता के कारण भारत सुख-शांति, धन्यधान्य सम्पन्न सोने की चिड़िया थी।
कार्यक्रम में बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के शिक्षा प्रसार विभाग के प्रधान वैज्ञानिक डॉ बी.के.झा ने कहा सृष्टि चक्र के नियम प्रमाण धीरे-धीरे मनुष्य आत्मा के साथ-साथ प्रकृति के पांचों तत्व भी सतोप्रधान से सतो, रजो, तमो अवस्था में आते गये, जिसके फलस्वरूप आत्मा और प्रकृति दोनों की शक्तियां क्षीण होती गई। मध्यकाल में आत्मा अपने मूल पवित्र स्वरूप को भूल कर देह-अभिमान के वशीभूत हो गई, जिससे उसमें सब विकार प्रवेश हुए, फलस्वरूप जनसंख्या में वृद्धि होती गयी, आवश्यकतायें बढ़ती गई। अधिक अन्न उपजाने की लालसा से अनेक नई-नई विधियाँ अपनाई गई। रासायनिक खाद तथा कीटनाशकों का इस्तेमाल किया जाने लगा, जिसके कारण धरती की शक्ति क्षीण होने लगी। प्रकृति के सभी तत्व अपना संतुलन खोने लगे।
कार्यक्रम में सुभाषचन्द्र गर्ग, उप महाप्रबंधक, नाबार्ड ने कहा मानव की मूलभूत आवश्यकतायें जैसे अन्न वस्त्र निवास सहज प्राप्त हो सके इसके लिए हमें सचेत रहना होगा ताकि आने वाली नई पीढ़ी भी सुख शांति से रह सके। इसकी पूर्ति के लिए जमीन, जल, वनस्पति, पशु, पंछी एवं जैविक विविधता का योग्य संवर्धन शाश्वत यौगिक खेती उत्पादन के द्वारा पर्यावरण को संतुलित रखना जरूरी है।
कार्यक्रम में शैलेन्द्र कुमार, सहायक निदेशक, कृषि विभाग ने कहा उन्नत खेती उत्पादन स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण है। अतः अब समय की पुकार है अपने शाश्वत स्वरूप को पहचान कर यौगिक प्रक्रिया को समझकर और अपनाकर शाश्वत और यौगिक खेती का प्रयोग तथा प्रसार किया जाय। प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय के साथ उसकी सहयोगी संस्था राजयोग एज्यूकेशन एण्ड रिसर्च फाउण्डेशन के ग्राम विकास प्रभाग द्वारा पिछले कुछ वर्षों से भारत वर्ष के किसान भाई बहिनों को शाश्वत यौगिक खेती के विषय में जागृत किया जा रहा है।
कार्यक्रम में बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के कनीय वैज्ञानिक, कृष्ण प्रसाद ने अपने उद्गार व्यक्त करते हुए कहा आधुनिक वैज्ञानिकों द्वारा विश्व आबादी को ध्यान में रखते हुए, उत्पादन को बढ़ाने के लक्ष्य से आधुनिक वैज्ञानिक रीति से खेती शुरू की गई। पहले कुदरती खाद का उपयोग करते थे तब हमारी धरती भी शक्तिशाली थी, लेकिन जब उसे रासायनिक खादों द्वारा और टॉनिक मिला तो उससे ज्यादा फसल मिलने लगी। अचानक किसानों को जब बढ़त दिखाई दी तो उसने उसी प्रक्रिया को अपनाना शुरू कर दिया। मेहनत के साथ जिसमें फायदा मिले, उसे किसान जल्दी अपनाते हैं। परंतु जैसे जैसे रसायनिक खादों का उपयोग बढ़ता गया, जमीन के अन्दर की उत्पादन क्षमता कम होती गई। परिणाम स्वरूप और भी नये नये अनुसंधान हुए। जैसे कोई बीमार पड़ते हैं तो उन्हें टॉनिक दिया जाता है, शक्तिवर्धक दवाईयां दी जाती है लेकिन यह शक्ति की दवा खुराक तो नहीं है। बस, शरीर के अन्दर जो बिटामिन्स की कमी होती है उसे वह पूर्ण करती है जिससे हमारी खुराक अच्छी हो जाये और अन्दर की कमी कमजोरी दूर हो जाये। लेकिन यदि कोई उसी टॉनिक को खुराक मानकर लेते जाये तो यह सही नहीं है। अकेली दवा लेती रहे और खुराक नहीं लें तो स्वस्थ कैसे हो सकेगें ? इसी प्रकार अभी जमीन की हालत हो गयी है।
डॉ चन्द्रशेखर, वैज्ञानिक, बिरसा कृषि विश्वविद्यालय ने कहा जमीन की हालत सुधारने के लिए एकमात्र उपाय है, शुद्ध संकल्पों का योग वा प्रयोग। इस यौगिक खेती द्वारा हम जो उत्पादन लेगें उसके अंदर जंतुनाशक दवाई अथवा रासायनिक खादों का उपयोग न होने से शुद्ध अन्न मिलेगा। इस शुद्ध अन्न से मन शक्तिशाली बनेगा और काया भी निरोगी हो जाएगी। वर्तमान समय में जो कैन्सर, डायबिटीज, ब्लडप्रेशर, आर्टरी की ब्लॉकेज कम उम्र में ही हो रही है, इसका कारण है रासायनिक दवाईयाँ। अगर हम यौगिक खेती करते हैं तो पहले हम अपने परिवार को अच्छी खुराक दे सकते हैं, अच्छी सब्जियाँ वा अच्छे फल दे सकते हैं, इससे रोगों के पीछे होने वाला खर्च भी बच जाएगा।
कार्यक्रम में डॉ हरिहरण, सेवानिवृत, निदेशक प्रभारी, कृषि व्यवसाय प्रबंधन ने कहा कि तपस्या अर्थात् योग के अन्दर एक अदभूत शक्ति समायी हुई होती है, जिससे असंभव भी संभव दिखाई देता है। परमात्मा ने हमें अति सहज योग सिखाया है। जिसे राजयोग कहते हैं। राजयोग हमें कर्मयोग की प्रेरणा देता है। राजयोग के अभ्यास से आत्मा की बैटरी फिर से चार्ज होती है। सर्वशक्तिमान परमात्मा से, जो सर्वगुणों व शक्तियों का स्रोत है संबंध जोड़ने से आत्मा में इन गुणों
और शक्तियों का संचार होता है इससे आत्मा स्वयं को भरपूर अनुभव करने लगती है। इस अवस्था में एकाग्र होने से इन गुणों एवं शक्तियों के प्रकम्पन आत्मा से निकलकर शरीर के माध्यम से बाहर फैलने लगते हैं और प्रकृति सहित सभी को इसका अनुभव होने लगता है।
ब्रह्माकुमारी निर्मला बहन ने कहा राजयोग का प्रयोग फसल पर करने के लिए सबसे पहले हमें प्रकृति के पॉचो तत्वों पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि, आकाश तथा सभी ग्रह और तारे इन सभी को परमात्म शक्तियों का प्रकम्पन देना आवश्यक है जिनके सहयोग से वनस्पति बढ़ती है, अनाज या फल का निर्माण होता है। इस प्रकार के शुद्ध अन्न का सेवन से जीवन की समस्याओं का अन्त होगा। कहा गया है जैसा अन्न वैसा मन, अर्थात् अन्न का प्रभाव हमारे मन एवं शरीर पर गहरा प्रभाव पड़ता है। किसानों का नशा छुड़ाना भी अभियान का उद्देश्य है।
कार्यक्रम में “आत्मनिर्भर किसान” थीम के आधार पर नृत्य प्रस्तुत किया गया। कार्यक्रम में उपस्थित प्रतिभागियों को प्रसाद बॉटा गया। रॉची सेवाकेन्द्र की संचालिका राजयोगिनी ब्रह्माकुमारी निर्मला बहन ने आशीर्वचन व्यक्त किये।
कार्यक्रम में विभिन्न क्षेत्रों से आऐ हुए कृषि से संबधित पदाधिकारीगण एवं किसानों ने इस कार्यक्रम में भाग लिया।