विश्व परिवर्तन की आधारशिला-महाशिवरात्रि पर्व

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परिवर्तन प्रकृति का स्वाभाविक नियम है। लेकिन फिर भी परिवर्तन के लिए मानव प्रयास करता ही है और आज तो हम उन परिस्थितियों से गुज़र रहे हैं जबकि हर मानव की अन्तरात्मा की यही आवाज़ है कि अब तो इस विश्व में कुछ जल्दी से ही परिवर्तन होना चाहिए, क्योंकि आज धर्मसत्ता और राज्यसत्ता, दोनों ही शक्तिहीन हो गये हैं। मानव दु:ख को सुख में, अशांति को शांति में, घृणा को प्रेम में, अज्ञान को ज्ञान में परिवर्तन कर पवित्रता-सुख-शांतिमय जीवन व्यतीत करना चाहता है। सर्व आत्माओं की मनोकामना पूर्ण करने वाला एक परमपिता परमात्मा ही है,जिसके अवतरण की यादगार हर वर्ष क्रशिवरात्रिञ्ज के रूप में मनाते हैं।
यदि शिवरात्रि के आंचल में छिपे आध्यात्मिक रहस्य को पूर्ण रूप से समझा जाये तो विश्व परिवर्तन सहज ही हो सकता है। क्योंकि शिवरात्रि सिर्फ शैव सम्प्रदाय के भक्तों का पर्व नहीं है, लेकिन सारे विश्व के प्रमुख धर्म, प्राचीन सभ्यता और प्राचीन संस्कृति को देखें तो स्पष्ट होता है कि यह पावन पर्व विश्व की सर्वात्माओं के लिए ही है। उदाहरण के तौर पर महाभारत में भी लिखा है कि ”सबसे पहले जब यह सृष्टि तमोगुण और अंधकार से आच्छादित थी तब एक अण्डाकार ज्योति प्रगट हुई और वह ज्योतिर्लिंग ही नये युग की स्थापना के निमित्त बना। उसने कुछ शब्द कहे और प्रजापिता ब्रह्मा को अलौकिक रीति से जन्म दिया।” मनुस्मृति में भी यही लिखा है कि सृष्टि के आरंभ में एक अण्ड प्रगट हुआ जो हज़ारों सूर्यों के समान तेजस्वी और प्रकाशमान था। इसी प्रकार शिव पुराण में ‘धर्म संहिता’ में लिखा है कि कलियुग के अंत में प्रलयकाल में एक अद्भुत ज्योति लिंग प्रगट हुआ जो कि कालाग्नि के समान ज्वालामान था,वह न घटता था और न बढ़ता था, वह अनुपम था और उस द्वारा ही सृष्टि का आरंभ हुआ। देखा जाये तो सिर्फ भारत के धर्म ग्रंथों में ही नहीं बल्कि यहूदी, ईसाई, मुसलमानों की पुरानी धर्म पुस्तक, ‘तोरेत’ का आरंभ भी ऐसे ही होता है, सृष्टि संरचना की प्रक्रिया इस प्रकार से है कि सृष्टि के आरंभ में ईश्वर की आत्मा पानी पर डोलती थी और आदिकाल में परमात्मा ने ही आदम और हव्वा को बनाया जिनके द्वारा स्वर्ग रचा। भगवान का नाम ‘जिहोवा’ मानते हैं जोकि शिव का ही पर्यायवाची है। भारत के तो कोने-कोने में शिव की ही यादगार है। पूरब(काशी) में विश्वनाथ, उत्तर में अमरनाथ, दक्षिण में रामेश्वरम्, पश्चिम में सोमनाथ, उज्जैयनी में महाकालेश्वर, हिमालय में केदारनाथ, बिहार में वैद्यनाथ, मध्यप्रदेश में ओंकारनाथ, द्वारिका में भुवनेश्वर आदि-आदि, केवल भारत में ही नहीं, लेकिन भारत से बाहर विश्व की प्रमुख संस्कृतियों पर भी शिव की छाप है, जैसे नेपाल में पशुपतिनाथ।
इसी प्रकार से बेबीलोन, मिस्र, यूनान और चीन में भी किसी समय शिव की मान्यता किसी न किसी नाम से थी। बेबीलोन में शिव को ‘शिउन’ कहा जाता है। मिस्र में ‘सेवा’ नाम से पूजा होती, रोम में ‘प्रियप्स’ कहते हैं। इटली के गिरिजा घरों में आज भी शिव की प्रतिमा पाई जाती है। चीन में शिवलिंग को ‘हुवेड हिफुह’ कहा जाता है। यूनान में ‘फल्लुस’,अमेरिका के पुरूविया नामक स्थान में आज भी ईश्वर को ‘शिवु’ कहते तथा काबा में भी पहले शिव की प्रतिमा थी। इससे सिद्ध होता है कि शिव पिता परमात्मा ने विश्व के कल्याणकारी परिवर्तन के लिए ऐसा विशेष कार्य किया है। इसलिए आज तक शिव की विश्वव्यापी मान्यता है।

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