एक आदर्श विद्यार्थी में…

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विद्यार्थी में स्वयं सीखने की प्रवृत्ति आवश्यक है, जिससे जीवन में अनुभव बढ़ता है। शिक्षक, माता-पिता एवं बड़े लोगों का सम्मान करना और उनका आशीर्वाद, स्नेह प्राप्त करना, ये भी एक आदर्श विद्यार्थी का लक्षण है।

विद्यार्थी का उद्देश्य ज्ञान का अर्जन करना है। विभिन्न विषयों के अर्जित ज्ञान से ही उसकी पहचान होती है। अगर हम एक आदर्श विद्यार्थी को परिभाषित करें तो विषयी-ज्ञान के साथ-साथ उसके अंदर श्रेष्ठ मानसिक गुणों एवं मानवीय मूल्यों का होना आवश्यक होता है। परंतु विद्यार्थियों का जिज्ञासु एवं कोमल मन संसार की अनेक बुराइयों की ओर सहज आकर्षित हो जाता है। इससे वह न केवल अपने उद्देश्य से भटक जाता है बल्कि नशीले पदार्थों के सेवन का शिकार भी हो जाता है। जिस कारण उसके जीवन का सबसे ऊर्जावान, कीमती समय, गोल्डन टाइम यूं ही नष्ट हो जाता है। मूल्य शिक्षा विद्यार्थियों का मार्गदर्शन करके उनके जीवन के मंजि़ल की राह को सहज बनाती है।
आदर्श विद्यार्थी का पहला लक्षण है कि उसे सदा पहले लक्ष्य को निर्धारित करके ही आगे बढऩा चाहिए। लक्ष्य-विहीन शिक्षा प्राप्त करना अनियंत्रित घोड़े के समान है, जो केवल दौड़ता तो रहता है परंतु उसकी कोई दिशा नहीं होती। कोई भी विद्यार्थी हो, परिस्थितियां तो स्वाभाविक रूप से प्रत्येक के जीवन में आती ही हैं परंतु मानसिक दृढ़ता पूर्वक उसका सामना करते हुए लक्ष्य की ओर सदा गतिमान रहना चाहिए। अगर उसमें वो असफल रहता है तो वो दिशा भटक जाता है। आत्मबल और मानसिक दृढ़ता के आगे सभी समस्याएं और परिस्थितियां हार जाती हैं। विद्यार्थी में स्वयं सीखने की प्रवृत्ति आवश्यक है, जिससे जीवन में अनुभव बढ़ता है। शिक्षक, माता-पिता एवं बड़े लोगों का सम्मान करना और उनका आशीर्वाद, स्नेह प्राप्त करना, ये भी एक आदर्श विद्यार्थी का लक्षण है। बड़ों का आशीष प्राप्त करने से उसकी मंजि़ल आसान होती है। विषय को रटने के बजाय अपने ढ़ंग से प्रस्तुत करने की शक्ति से नये वस्तुओं के निर्माण और अनुसंधान करने की प्रवृत्ति का विकास होता है। शिक्षक व स्टूडेंट का सम्बंध ही है, नया-नया जानना, उसे सही रूप में समझना और नया आविष्कार करना।
बचपन में कहते थे, ‘विद्या विनयेन शोभते।’ इसे सही अर्थ में समझें तो सिर्फ विषय-वस्तु द्वारा रटे ज्ञान से ये संभव नहीं। उसके लिए आध्यात्मिक ज्ञान का होना भी बहुत ज़रूरी है। आध्यात्मिक ज्ञान उसे निरंतर शांति, प्रेम, पवित्रता, ज्ञान और सत्यता तथा प्रसन्नता की ओर प्रेरित करता है, उसका मार्गदर्शन करता है। जिससे वो नकारात्मकता से बचा रहता है। आध्यात्मिक ज्ञान से मन और बुद्धि पर आंतरिक अनुशासन स्थापित होता है। जिससे वो निगेटिव, तनाव, नकारात्मक चिंतन से उत्पन्न होने वाली परेशानियों से मुक्त रहता है। परिणामस्वरूप वो आज के दूषित वातावरण में नशीले व मादक द्रव्यों से अपने को बचाने में समर्थ होता है। अपने लक्ष्य को हासिल करने हेतु अपने व्यवहार में मृदु भाव ले आने के लिए लौकिक विषयों के ज्ञान के साथ अलौकिक यानी कि आध्यात्मिक मूल्यों को भी अपनाने पर वो एक आदर्श विद्यार्थी की श्रेणी में आने में सफल हो सकता है। ये दोनों ज्ञान होने पर वो ज्ञानी भी बनता है, साथ-साथ विनम्र भी। जिससे वो दूसरों के लिए आदर्श और अनुकरणीय बनता है।

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