खुशी के लिए आपको भी कुछ करना होगा!

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हम अपनी खुशी के लिए दूसरों की तरफ देखते हैं, उनसे उम्मीद करते हैं, उनमें झांकते हैं, आशा रखते हैं। इसी सम्बंध में एक सुप्रसिद्ध विचारक एक्हार्ट टॉल्ल का कहना है, क्रदुनिया हमें खुशी देने के लिए जि़म्मेदार नहीं है, वो हमें सीखने, मन से जागृत होने का अवसर देने के लिए बनी है।ञ्ज यह छोटी-सी बात नहीं है। इसके विस्तार में सारी उम्मीदों की सच्चाई छुपी है।
हम अपने आसपास के हर इंसान, हर घटना, परिस्थिति से आशा करते हैं कि वो हमारे हिसाब से बने। ऐसे रंग में ढलती रहे कि हम खुश हों। जैसे हम हमेशा उम्मीद करते हैं मेरी हमेशा हर कोई तारीफ करे, मुझे एप्रीशिएट करे, मैं जैसे चाहूँ वैसे ही मेरे सामने पेश आये, मैं जब खेलना चाहूँ तो मेरे साथ खेले, मैं शॉपिंग करने जाऊं तो मेरे साथ चले। कुछ घंटे तो हमारे हित में कोई काम करे। तो हमारी खुशी को ध्यान में रखकर इस तरह की सोच के दो सिरे हैं- पहला, ऐसी सोच रखकर हम दूसरों पर आश्रित हो जाते हैं। अपनी खुशियों, संतोष की कुंजी दूसरों के हाथों में सौंपकर हम अपने आप को परवश बना देते हैं। दूसरा, हम सीखने, भीतर तक संतोष और प्रसन्न कर देने वाले लम्हों, परिस्थितियों या इंसानों की तलाश नहीं करते। कोई और हमें खुशी न दे तो ऐसी जि़द्द के चलते उसके प्रति नाराज़गी होना स्वाभाविक है। उसने हमारे हित के लिए काम नहीं किया, यह विचार साबित करता है कि आप निर्भर हैं। अगर यह सच मान लिया जाए कि दुनिया हमारी खुशियों को बुनने के लिए नहीं बनी है, तो व्यक्ति अपनी तरफ से मेहनत करने की कोशिश करेगा। जल्दी ही जान जायेगा कि कोई और मेरी प्रसन्नता के लिए कुछ करे, इसके पहले या इसके साथ ही मुझे भी कुछ ऐसा करना होगा जो प्रसन्नता के विस्तार का आधार बने। हमारी मानसिकता ऐसी बन गई है कि खुशी हमारी, मन भी हमारा और आशा रखते हैं कि दूसरा कोई खुशी का पानी दे। आपके मन की खुशी के स्वामी आप स्वयं हैं, तो भला उपरोक्त सोच के साथ आप खुश कैसे रह पायेंगे! ये सोचने की बात है। खुशी के लिए मुझे कुछ करना होगा। प्रसन्नता के लिए मेरी सोच को बदलना होगा।
अगर हम इसी सम्बंध में सोचते हैं कि हम जैसी अपेक्षा दूसरों से रखते हैं, वैसी ही दूसरे हमारे से भी रखते होंगे तो हमें क्या करना चाहिए? बेशक हम उनकी खुशी के लिए कुछ करेंगे ना! इसका मतलब ये है कि दूसरों को खुशी देने में हमारी खुशी समाई हुई है। जैसे बगीचे में फूलों को देखकर हमारा मन खुश होता है और हम सुख का अनुभव करते हैं। ये फूल जो खिले हुए हैं, इसकी तह तक जाते हैं तो पता चलता है कि फूल तो गंद से निकले पौधे का अंश है। उस पौधे ने अपनी खुशी के विरुद्ध गंद का साथ लेकर उसमें से अपनी खुशियां फूल के रूप में बाहर लाई। फूल की खुशबू और पौधे की खाद की गंद दोनों विपरीत हैं। लेकिन पौधे ने उनका साथ लेते हुए उसमें से खुशियां ढूंढ़कर फूल के रूप में बाहर लाई। न सिर्फ खुशियां बाहर लाई बल्कि औरों को भी अपनी तरफ आकर्षित करने का व खुशबू बिखेरने का सुख भी दिया। प्रकृति के एक पौधे से हमें ये सीख मिलती है कि सिर्फ दूसरे के आधार पर छोड़ देने से हम खुश नहीं रह सकते, मुझे खुशी और प्रसन्नता के लिए खुद कुछ करना होगा। इस पहलू के आधार पर ही हमारी खुशी टिक पायेगी।
खुशी के लिए हमें आत्मावलोकन पर अपना ध्यान केंद्रित करना होगा। कुदरत ने मुझे बहुत कुछ दिया है, इस सोच को और गहराई से सोचेंगे तो हमें मिलता है कि मेरे पास सोचने के लिए बहुत अच्छी बुद्धि है। मेरे अंदर कुदरत की बख्शिस है, योग्यताएं हैं, कला है, मैं स्वस्थ हूँ, मैं बहुत कुछ कर सकता हूँ, सृजनात्मक पॉवर मेरे पास है जिससे मैं दूसरों को देने में सक्षम हूँ। जब हम दूसरों को देते हैं तो खुश होते हैं। देने में खुशी है, लेने में नहीं। इस तरह से आप अपनी सोच को बनाने की दिशा में आगे बढ़ेंगे तो आप पायेंगे कि खुशी तो मेरे अपने पास ही है। मुझे खुशी के लिए दूसरों से अपेक्षा रखने की आवश्यकता ही नहीं। इन शब्दों को आध्यात्मिक भाषा में हम आत्म-अभिमान कहते हैं। तब तो कहावत भी है, ‘अंतर्मुखी सदा सुखी’।

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