फिकर से फारिग कैसे हों?

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बादशाहत दुनिया में किसकी है, जिसको डर नहीं है। कुछ भी खोने का डर हमको गुलाम बनाता है। चाहे वो छोटी-सी चीज़ हो या बड़ी चीज़ हो। परमात्मा के बहुत ही अलौकिक भाव हैं, वे हर बात को अलौकिक तरीके से समझाते हैं। लेकिन अगर इसको सामान्य भाषा में समझें तो कह सकते हैं कि छोटी-छोटी बातों से लगाव हमारे डर को बढ़ा रहा है। हमको गुलाम बना रहा है। इसीलिए दिन-रात हमारा फिकर, चिंता, उदासी में बीतता है। जैसे हमने कोई चीज़ खरीदी और वही चीज़ हमें खुद को प्रयोग में अगर लानी है तो उसे हम कितना सलीके से उपयोग में लाते हैं, क्योंकि उससे हमें मोह है, अटैचमेंट है। वहीं अगर हमें बाहर कहीं किसी की कुछ चीज़ यूज़ करनी है तो हम बेपरवाह हो जाते हैं। क्यों, क्योंकि वो ‘मेरी’ नहीं है। तो जहाँ मेरापन है, वहाँ पर हर पल तकलीफ है, बचाव है, अलगाव है, तनाव है। क्यों है, क्योंकि ‘मेरा’ है।
समाज का हर एक नागरिक वैसे तो स्वतंत्र है, लेकिन स्वयं के मामले में और चीज़ों के मामले में परतंत्र है, इसलिए हर पल फिकर, चिंता में जी रहा है। आज ऐसा नहीं है कि घर, गाड़ी, पैसा आदि की ज़रूरत नहीं है, ज़रूरत है, लेकिन सिर्फ प्रयोग करने के लिए। किसी शायर ने एक बहुत सुंदर बात कही, ‘आप मकान में इसलिए नहीं रहो कि ये मकान मेरा है, आप मकान में इसलिए रहो कि आपने इसे खरीदा है’। माना, कुछ दिन के लिए। आज का जो समय है, उसे आप एक विटनेस(साक्षी या गवाह) बनकर देखो, तो आप पायेंगे कि सभी के निराश और उदास होने का मात्र एक कारण है, वो है, जो हमारे शरीर से स्थूल चीज़ें जुड़ी हुई हैं उन चीज़ों के साथ हमारा गहरा लगाव। हर कोई छुपा-छुपा के हर चीज़ कर रहा है। अगर आप इसका प्रैक्टिकल देखना चाहते हैं, तो कोई अगर बैंक जा रहा है और आप उससे पूछ लो कि आप कहाँ जा रहे हो तो कहेगा मंदिर जा रहा हूँ या कहीं औैर का नाम लेगा। लेकिन सच नहीं बतायेगा क्योंकि उसे डर है कि कोई जान न जाये कि हमारे पास कितना धन है। हर समय इस बात को लेकर कि कोई कुछ हमारे बारे में न जान जाये, इसको छुपाने की भी एक चिंता हमें हर पल जला रही है। जब तक हम जी रहे हैं, तब तक चीज़ों को सुरक्षित रखना हमारी जि़म्मेवारी है, लेकिन उन चीज़ों को आरक्षित करके सभी को बार-बार घर में कहना कि तुम्हारे लिए मैं सुबह से शाम तक काम पर जाता हूँ, तुम्हारे लिए मैं ये करता हूँ, तुम्हारे लिए मैंने सब जमा करके रखा है। तो व्यक्ति को बांधने के लिए मनुष्य एक तरह से लोभ की वृत्ति का प्रयोग कर रहा है जो कि असंभव है। वो भी बिचारा अंदर से सांस नहीं ले पा रहा है कि पापा ने मेरे लिए ये किया, वो किया, मेरे हर चीज़ का ध्यान दिया, पढ़ाया-लिखाया, तो मैं फ्री होकर तो नहीं जी पा रहा हूँ इसी बोझ में कि मुझे भी सब कुछ करना है। वो इस आधार से, भावनात्मक रूप से जी रहा है।
तो हम सबके जीवन को चलाने के लिए, खुश रखने के लिए या फ्री रखने के लिए खर्च कर रहे हैं या बाद में उससे सबकुछ वापिस लेने के लिए या बंधनों में जकडऩे के लिए कर रहे हैं! तो कहीं से भी हम निश्चिंत नहीं हो पा रहे हैं। तो इसका कोई तो समाधान निकले, कोई तो सिक्योरिटी हो। आपको फिकर होना लाज़मी है लेकिन कोई ऐसी निश्चिंतता चाहिए जो हमको इससे निकाल दे। वो है परमात्मा का साथ और उसपर सम्पूर्ण विश्वास। परमात्मा हमसे हर दिन कहते हैं, जो क्रमेराञ्ज है उसे क्रतेराञ्ज कर दो। मतलब ये सबकुछ परमात्मा का दिया हुआ है मेरे पास, मुझे इसका प्रयोग करना है और भूल जाना है। बस इसे अभ्यास में लाओ तो बेफिक्री आयेगी। दुनिया में लोग कहते हैं, आप घर के ट्रस्टी बनो, परिवार के ट्रस्टी बनो, माना सम्भालो लेकिन अटको नहीं। ऐसे ही परमात्मा कहते हैं, मुझे अपनी सारी चिंता, फिकर, दु:ख-दर्द दे दो और मेरे से रूहानियत, रूहानी नशा, ईश्वरीय खुमारी ले लो।
बस यही अभ्यास हमें जि़ंदा रख पायेगा और हम इस जीवन में रहकर के, सबके साथ चलकर के अच्छे से जीवन जी सकते हैं। नहीं तो हर पल, हर क्षण हमारा व्यर्थ चिंतन और चिंता में बीत रहा है। इसलिए जितने भी संकल्प करो, उसमें बार-बार यही डालो कि मेरे पास जो भी है वो परमात्मा का है, उसी ने हमें दिया है उपयोग के लिए, ये उसी का है, ये अभ्यास निरंतर हमारी बुद्धि में चलेगा तो हम हल्के हो जायेंगे। इसलिए फिकर से फारिग होने के लिए अपने को इस अभ्यास के अंदर डाल दो बिना देरी किये।

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