एक राहुल नाम का व्यक्ति था। स्वभाव से बहुत ही गंभीर था। उसकी पढ़ाई पूरी हो चुकी थी,लेकिन कोई नौकरी नहीं थी। दिन-रात वो काम की तलाश में इधर-उधर भटकता रहता था। राहुल एक ईमानदार मनुष्य भी था इसलिए भी उसे काम मिलने में मुश्किल आ रही थी। दिन इतने खराब हो चुके थे कि उसे मजदूरी करनी पड़ी। रोजी रोटी के लिए उसके पास अब कोई विकल्प नहीं था। राहुल पढ़ा लिखा था जो उसके व्यवहार से साफ जाहिर होता था।
एक दिन एक सेठ के घर राहुल मजदूरी कर रहा था। सेठ का ध्यान राहुल के ऊपर ही था। सेठ को समझ आ रहा था कि राहुल एक पढ़ा-लिखा समझदार लड़का है, लेकिन परिस्थिति वश उसे ऐसे मजदूरी का काम करना पड़ रहा है। सेठ को अपने एक विशेष काम के लिए एक ईमानदार व्यक्ति की ज़रूरत थी। उसने राहुल की परीक्षा लेने की सोची।
उसने एक दिन राहुल को अपने पास बुलाया और उसे पचास हज़ार रूपये दिए जिसमें सो-सो के नोट थे और कहा भाई तुम ईमानदार लगते हो ये पैसे मेरे एक व्यापारी को दे आओ। राहुल ने ईमानदारी से पैसे पहुँचा दिए।
दूसरे दिन, व्यापारी ने राहुल को फिर से पैसे दिए इस बार उसने राहुल को बिना गिने पैसे दिए कहा खुद ही गिन लो और व्यापारी को दे आओ।
राहुल ने ईमानदारी से काम किया।
सेठ पहले से ही गल्ले में पैसे गिनकर रखता था पर वो राहुल की ईमानदारी की परीक्षा लेना चाहता था। रोज़ वो सेठ उसे पैसे देने भेजता था। राहुल की माली हालत तो बहुत ही खराब थी। एक दिन उसकी नियत डोल गयी और उसने सो रूपये चुरा लिए। जिसका पता सेठ को लग गया पर सेठ ने कुछ नहीं कहा। फिर से राहुल को रूपये देने भेजा। सेठ के कुछ न कहने पर राहुल की हिम्मत बढ़ गयी। उसने रोज़ाना चोरी करनी शुरू कर दी।
सेठ को उम्मीद थी कि राहुल उसे सच बोलेगा लेकिन राहुल ने नहीं बोला। एक दिन सेठ ने राहुल को काम से निकाल दिया। वास्तव में सेठ अपने जीवन का एक सहारा ढूंढ रहा था। उसकी कोई संतान नहीं थी। राहुल को भोला-भाला जानकर उसने उसकी परीक्षा लेने की सोची थी। अगर राहुल सच बोलता तो सेठ उसे अपनी दुकान सौंप देता।
जब राहुल को इस बात का पता चला है तो उसे बहुत दु:ख हुआ और उसने स्वीकारा कि कैसी भी परिस्थिति हो ईमानदारी ही सर्वोच्च नीति होती है।
शिक्षा: कैसा भी मुकाम आये व्यक्ति को लेकिन ईमानदारी का साथ नहीं छोडऩा चाहिए। ईमानदारी जीवन की वो कमाई है जो मुश्किल है लेकिन कभी गलत अंत नहीं देती।