मुख पृष्ठब्र.कु. उषास्वयं परमात्मा शिव ने विश्व परिवर्तन का कार्य ब्रह्मा बाबा को सौंपा…

स्वयं परमात्मा शिव ने विश्व परिवर्तन का कार्य ब्रह्मा बाबा को सौंपा…

कोई भी श्रेष्ठ परिवर्तन के कार्य को सम्पन्न करने के लिए मुख्यत: हिम्मत, साहस और अनुभव की आवश्यकता होती है। परमात्मा ने देखा कि इस समय संसार की हालत बिल्कुल ही जड़-जड़ीभूत हो गई है ऐसे में नयी सतयुगी दुनिया बनाने के लिए योग्य व्यक्ति को चुना। जिनमें ये सारी योग्यताएं एंव कलाएं थी। जिनका नाम रखा प्रजापिता ब्रह्मा। परमात्मा का सिलेक्शन तो सर्वश्रेष्ठ ही होगा ना!

संसार में समय-समय पर ऐसे अनेक महात्माएं होकर गए हैं जिनके त्याग, तपस्या, और प्रभु मिलन की लगन की कहानियों से सारा जग वाकिफ है। अब सभी के मन में एक प्रश्न आता है कि परमात्मा ने ब्रह्माबाबा को ही क्यों चुना? और इसी तरह ये भी समय है कि जब इस समय में भी कोई न कोई महान आत्मा का जन्म होना ही चाहिए। क्योंकि वैसे अगर देखा जाए तो भगवान किसी का भी तन चुनते, इस संसार में किसी का भी तन चुनते तो प्रश्न तो उठना ही था कि भगवान ने इसी व्यक्ति का तन क्यों चुना? लेकिन हम सभी जानते हैं कि चाहे जीजस क्राइस्ट आये, महात्मा बुद्ध आये, ऐसी कई महान आत्माएं आये जिनके द्वारा परमात्मा ने समय प्रति समय कोई न कोई दिव्य कार्य कराया। तब उनके लिए तो ये प्रश्न नहीं उठा?

इस समय में परमात्म को मालूम है उसको कहा ही जाता है जानी-जाननहार, सबकुछ जानते हैं। तो हर व्यक्ति की मनोस्थिति को, उसकी आत्मा की प्युरिटी को वो जानता है। और इस संसार में कौन ऐसी पात्र आत्मा है जो परमात्म कार्य करने के लिए उत्तम हो, उसे पता है। इसलिए ये तो आज ऐसा हो गया दुनिया के अन्दर कि जैसे मनुष्य हर चीज़ को मॉनिटर करना चाहता है तो परमात्मा के कार्य के लिए भी जैसे मॉनिटर करना चाहता है। वास्तव में भगवान को पता है कि उसको किस तन की आवश्यकता है और किस तरह से इस संसार में अधर्म का विनाश और सत् धर्म की पुन: स्थापना करानी है। और उसके लिए पिताश्री जी का तन उचित इसीलिए समझा उन्होंने क्योंकि गृहस्थ धर्म में थे। दूसरा एक बिज़नेसमैन थे, जौहरी थे। हीरे जवाहरात का बिज़नेस करते थे। तो बिज़नेस के कारण भी उनको अनुभव ज्य़ादा था। गृहस्थ धर्म में होने के कारण गृहस्थ जीवन की क्या प्रॉब्लम्स होती हैं उसका भी अनुभव था। तो ये सारा अनुभव होने के कारण वो शायद संसार को अच्छी दिशा दे सकते थे, अपने अनुभव के माध्यम से।

दूसरा कि एक जौहरी के पास अथाह धन था। वैसे परमात्मा ने अनेक गुरुओं के माध्यम से भी कार्य कराया। कई लोगों ने अपने-अपने तन-मन से पूरी समर्पण भावना के साथ, त्याग-तपस्या के साथ कार्य किया। लेकिन ये जो कार्य था कि जब उस समय माताएं-बहनें जैसे मर्यादा में रहती थीं, उन्हें जैसे घर से बाहर जाने की इजाजत नहीं होती थी। ऐसे समय पर परमात्मा ने इस संसार में अवतरण किया। और उस समय परमात्मा ने यही एक विशेष कार्य, या ज्ञान का कलष माताओं-बहनों के सिर पर रखा। यही एक संकल्पना थी ब्रह्मा बाबा की भी कि अगर माताएं-बहनें आगे आयेंगी तो शायद समाज का उद्धार हो सकता है। क्यों? क्योंकि एक माँ के अन्दर ही संस्कार देने की कला होती है, जो और किसी के अन्दर नहीं होती। और इसीलिए परमात्मा ने भी यही समझा कि ब्रह्मा बाबा की भी एक विज़न थी कि ये आध्यात्मिक संस्कार देने का कार्य भी जितना सकुशल माताएं-बहनें कर सकेंगी उतना शायद कोई न कर सकेगा। इसीलिए उन्होंने माताओं-बहनों को आगे किया। और वन्दे-मातरम कहकर ये ज्ञान का कलष दिया समाज के अन्दर। अनेकों को ये आध्यात्मिक संस्कार सींचने का कार्य सौंपा। साथ ही साथ उस समय क्योंकि पिताश्री ब्रह्मा बाबा के माध्यम से परमात्मा ने एक नया मंत्र दिया कि सत् धर्म की स्थापना करने के लिए एक प्युरिफिकेशन बहुत ज़रूरी है। तो पवित्र बनने का एक मंत्र दिया कि योगी बनो और पवित्र बनो।

RELATED ARTICLES

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें

Most Popular

Recent Comments