एकनाथ के पास एक सेठ आए, बोले-आपका जीवन कितना शान्ति से भरा है। कोई उपाय बताइए, ताकि कभी भी हमें अशान्ति न प्राप्त हो। सदैव आनंद ही आनंद हो। एकनाथ बोले- पहले तो तू अपने आठ दिनों की चिंता कर। तू इतने दिन का ही मेहमान है। इस अवधि में अच्छा जीवन जी ले। उदास मन से वह लौटा तो, पर आते ही वह बदल-सा गया। अपने बुरे व्यवहार के लिए पहले पत्नी से, फिर बच्चों से, फिर मित्रों से क्षमा मांगी। अपने ग्राहकों से भी मिलता रहा। सबसे विनम्र भाव से क्षमा मांगता और प्रभु से निरंतर प्रार्थना करता कि अंत कष्टमय न हो। नौवें दिन वह एकनाथ के पास पहुँचा और पूछा-हे नाथ! आठ दिन तो बीत गए, अब अंतिम घड़ी कब आए? एकनाथ ने पूछा कि यह बता कि तेरे ये आठ दिन कैसे बीते? वह बोला- प्रभु! मुझे मृत्यु के अलावा कुछ भी नहीं दिख रहा था। मुझे मेरे सारे दुष्कर्म याद आए। पश्चाताप ही करता रहा। एकनाथ बोले- तो याद रख! इसी तरह सारी जि़ंदगी जी। हम भी सारा जीवन इसी सोच के साथ जीते हैं। यह देह क्षणभंगुर है। यह याद रखकर परमात्मा का स्मरण करते हुए काम कर। क्या हम भी यह संदेश याद रखकर जी सकते हैं?



